विनोद कुमार झा
हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत-चीन संबंधों को लेकर एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि दोनों देशों को एक-दूसरे की सफलता में सहयोगी बनना चाहिए और सीमा विवादों को आपसी संबंधों की प्रगति में बाधा नहीं बनने देना चाहिए। वांग यी के इस दृष्टिकोण का विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि भारत और चीन के रिश्ते केवल सीमा विवाद तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि व्यापार, कूटनीति और वैश्विक शक्ति संतुलन के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने चाहिए।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। 1962 के युद्ध से लेकर हाल ही में पूर्वी लद्दाख में हुए सैन्य गतिरोध तक, दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर मतभेद बने रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों ने सैन्य तनाव को कम करने की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। वांग यी ने इस प्रगति को स्वीकार करते हुए कहा कि सीमा विवाद को भारत-चीन संबंधों की संपूर्ण परिभाषा नहीं बनाना चाहिए।
चीन और भारत, एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हैं, भले ही इनमें असंतुलन देखा जाता रहा हो। भारत ने हाल के वर्षों में चीन से आयात को नियंत्रित करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की कोशिश की है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं परस्पर निर्भर हैं और एक संतुलित व्यापार सहयोग दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है।
वांग यी ने यह भी कहा कि यदि भारत और चीन मिलकर काम करें, तो दुनिया में शक्ति संतुलन स्थापित किया जा सकता है। यह विचार महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका, यूरोप और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ भारत और चीन के संबंध बदलते रहे हैं। चीन, अमेरिका के बढ़ते टैरिफ और व्यापार प्रतिबंधों से नाखुश है, जबकि भारत भी अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन बनाने की दिशा में काम कर रहा है। ऐसे में, भारत और चीन के लिए परस्पर सहयोग एक रणनीतिक विकल्प हो सकता है।
भारत और चीन के बीच मतभेदों के बावजूद, दोनों देशों के पास एक साथ आगे बढ़ने के कई कारण हैं। सीमा विवादों को हल करने के लिए निरंतर संवाद आवश्यक है। साथ ही, व्यापार और वैश्विक सहयोग के नए रास्ते तलाशने की जरूरत है। यदि भारत और चीन अपने मतभेदों को नियंत्रित करते हुए सहयोग का रास्ता अपनाते हैं, तो इससे न केवल दोनों देशों को बल्कि पूरे एशिया और विश्व को लाभ होगा। कूटनीतिक संतुलन और आर्थिक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ते हुए ही दोनों देश अपने संबंधों को स्थायी रूप से मजबूत कर सकते हैं। यदि दोनों देश एक-दूसरे की सफलता में भागीदार बनते हैं, तो यह पूरे क्षेत्र की स्थिरता और प्रगति को सुनिश्चित करेगा।