क्या ममता बनर्जी बंगाल में रोक पाएंगी बीजेपी के बढ़ते कदम?

विनोद कुमार झा

पश्चिम बंगाल की राजनीति में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच संघर्ष लगातार तेज होता जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में बीजेपी पर तीखा हमला बोलते हुए दावा किया कि उनकी पार्टी  2027 से 2029 के बीच बंगाल से बीजेपी को पूरी तरह खत्म कर देगी। यह बयान न केवल उनके आत्मविश्वास को दर्शाता है, बल्कि राज्य की आगामी राजनीतिक लड़ाई की तीव्रता को भी स्पष्ट करता है।  2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बंगाल में अप्रत्याशित रूप से 18 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था। इसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 77 सीटें हासिल कीं, हालांकि यह आंकड़ा अपेक्षित जीत से काफी कम था। बावजूद इसके, बीजेपी ने बंगाल में खुद को एक मजबूत विपक्षी पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है।

 बीजेपी ने बंगाल में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकास को लेकर एक वैकल्पिक राजनीति का निर्माण किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार बंगाल का दौरा कर इसे पार्टी के लिए प्राथमिकता वाला राज्य बना दिया है। हालांकि, बीजेपी को कई अंदरूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जिसमें गुटबाजी, स्थानीय नेतृत्व की कमी और बंगाल की सांस्कृतिक राजनीति को ठीक से समझ पाने में असफलता शामिल है।  ममता बनर्जी अभी भी बंगाल की सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन उनकी सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।  हाल ही में कई टीएमसी नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा कई टीएमसी नेताओं की जांच चल रही है, जिससे पार्टी पर दबाव बढ़ा है।  राज्य में कांग्रेस और वामपंथी दल एक बार फिर टीएमसी के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं, जिससे वोटों का बंटवारा हो सकता है। 

अगर ममता बनर्जी को बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकना है, तो उन्हें अपने शासन को अधिक पारदर्शी और जनहितैषी बनाना होगा। साथ ही, टीएमसी को अपने जमीनी संगठन को और मजबूत करना होगा ताकि बीजेपी के बढ़ते संगठनात्मक ढांचे का मुकाबला किया जा सके। अगर ममता बनर्जी को बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकना है, तो उन्हें अपने शासन को अधिक पारदर्शी और जनहितैषी बनाना होगा। साथ ही, टीएमसी को अपने जमीनी संगठन को और मजबूत करना होगा ताकि बीजेपी के बढ़ते संगठनात्मक ढांचे का मुकाबला किया जा सके। दूसरी ओर, बीजेपी को बंगाल की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय राजनीति को बेहतर तरीके से समझने की जरूरत है। यदि बीजेपी अपनी स्थानीय नेतृत्व क्षमता को सुधार पाती है और आक्रामक हिंदुत्व की जगह विकास और सामाजिक कल्याण की राजनीति पर जोर देती है, तो वह ममता बनर्जी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती है।

ममता बनर्जी का दावा कि वह 2027-2029 तक बीजेपी को बंगाल से खत्म कर देंगी, राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी जरूर है, लेकिन इसे व्यवहारिकता के तराजू पर तौलना जरूरी है। बंगाल की राजनीति बहुस्तरीय है और यहां किसी भी पार्टी को पूरी तरह समाप्त करना आसान नहीं है।  आने वाले वर्षों में बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच संघर्ष और भी तीव्र होगा। ममता बनर्जी के नेतृत्व और बीजेपी की रणनीति पर निर्भर करेगा कि कौन आगे बढ़ेगा और कौन पीछे रहेगा। फिलहाल, यह लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है, जहां हर राजनीतिक कदम महत्वपूर्ण साबित होगा।

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