विनोद कुमार झा
भारत की पवित्र धरती पर कई ऐसे वृक्ष हैं जिन्हें दिव्यता और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। उनमें से एक विशेष स्थान वट वृक्ष (बरगद) को प्राप्त है। वट वृक्ष (बरगद) न केवल हिन्दू धर्म में बल्कि जैन और बौद्ध धर्मों में भी अत्यंत पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यह अमरता, शक्ति और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक है। धार्मिक ग्रंथों में इसे दिव्य वृक्ष के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके नीचे सत्यवान-सावित्री की कथा घटी, श्रीकृष्ण ने विश्राम किया, और गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई। वट वृक्ष न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी यह पर्यावरण को शुद्ध करने और आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोगी माना जाता है। इसकी प्राचीनता और विशालता इसे भारत के सबसे प्रतिष्ठित वृक्षों में से एक बनाती है।
वट वृक्ष को हिन्दू धर्म में त्रिमूर्ति का प्रतीक माना गया है। इसकी जड़ों में भगवान ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास बताया गया है। अग्नि पुराण के अनुसार यह वृक्ष उत्सर्जन और तेज का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए संतान सुख की प्राप्ति के लिए इसकी पूजा का विशेष विधान है।
धर्म ग्रंथों में वर्णित वट वृक्ष से जुड़ी कई प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं जो इस प्रकार है आइए जानते हैं विस्तार से...
भगवान विष्णु और प्रलय कथा : हिन्दू शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि प्रलय के समय जब सम्पूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाती है, तब केवल वट वृक्ष ही बचता है। इसी वृक्ष के पत्ते पर भगवान श्रीहरि शिशु रूप में प्रकट होते हैं और अपने पैर का अंगूठा चूसते हैं। इसके बाद उन्हीं की नाभि से कमल पुष्प उत्पन्न होता है, जिस पर ब्रह्मा विराजमान होते हैं और सृष्टि की पुनः रचना करते हैं।
सत्यवान-सावित्री की कथा : महाभारत के वानपर्व में सत्यवान और सावित्री की कथा मिलती है, जिसमें सावित्री के पतिव्रत धर्म के प्रभाव से यमराज को उनके पति सत्यवान को जीवनदान देना पड़ा था। यह घटना वट वृक्ष के नीचे घटी थी, इसलिए हिन्दू स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए "वट सावित्री व्रत" रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण और भण्डीरवट : हरिवंश पुराण में "भण्डीरवट" नामक एक वट वृक्ष का वर्णन मिलता है, जिसके नीचे भगवान श्रीकृष्ण ने विश्राम किया था। इस वृक्ष की दिव्यता और सुंदरता अद्भुत थी।
भगवान बुद्ध और बोधिवृक्ष : गौतम बुद्ध को बिहार के बोधगया में एक वट वृक्ष के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसे ही बोधिवृक्ष कहा जाता है। आज भी बोधगया में यह वृक्ष बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र स्थल है।
जैन धर्म में भी वट वृक्ष को बहुत पवित्र माना गया है। कहा जाता है कि पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या पूर्ण की थी। वट वृक्ष धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
यह वृक्ष 20 घंटे से अधिक समय तक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है, जिससे यह पर्यावरण को शुद्ध करने में अत्यंत सहायक है। इसकी छाल और पत्तियाँ कई आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में प्रयोग होती हैं। यह वायुमंडल से हानिकारक गैसों को अवशोषित कर वायु को स्वच्छ करता है। इसकी छाया में तापमान अपेक्षाकृत ठंडा रहता है, जिससे इसे प्राकृतिक शीतलता का स्रोत माना जाता है। इसकी विशाल शाखाओं पर असंख्य पक्षी और जीव अपना आश्रय लेते हैं।
भारत के प्रसिद्ध वट वृक्ष कहां -कहां है जानते हैं विस्तार से :-
1. अक्षयवट (प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) : प्रयागराज में स्थित अक्षयवट को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह वृक्ष प्रलयकाल में भी सुरक्षित रहता है। इसकी महत्ता रामायण काल से बताई जाती है।
2. वंशीवट (वृंदावन, उत्तर प्रदेश) : वंशीवट वृंदावन में स्थित एक प्रसिद्ध वट वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण यहाँ अपनी वंशी बजाकर गोपियों को आकर्षित करते थे।
3. पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) : पंचवटी का नाम यहाँ स्थित पाँच वट वृक्षों के कारण पड़ा। यह वही स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने वनवास के दौरान समय बिताया था।
4. बोधिवृक्ष (बोधगया, बिहार) : यह वही वृक्ष है जिसके नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।
5. थिम्माम्मा मर्रीमनु (आंध्र प्रदेश) : आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित "थिम्माम्मा मर्रीमनु" विश्व का सबसे बड़ा वट वृक्ष है। इसकी छाया लगभग पाँच एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है। 1989 में इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था।
हिन्दू धर्म में वट वृक्ष की पूजा विशेष रूप से महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए "वट सावित्री व्रत" के रूप में करती हैं। इसे लगाना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है, और कहा जाता है कि जो कोई भी वट वृक्ष लगाता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है। वट वृक्ष को काटना पुत्र हत्या के समान पाप माना गया है।
वट वृक्ष केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, अमरता और जीवन शक्ति का प्रतीक है। इसकी धार्मिक और वैज्ञानिक महत्ता इसे विशेष बनाती है। यह वृक्ष केवल एक वनस्पति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में स्थिरता, शक्ति और दीर्घायु का कितना महत्त्व है। भारतीय संस्कृति में इसे एक पूजनीय वृक्ष के रूप में देखा जाता है, और इसे बचाने एवं संरक्षित करने की जिम्मेदारी हम सभी की है।