कहानी: सरसों के फूल

 विनोद कुमार झा

गांव की पगडंडी के दोनों ओर फैले सरसों के पीले फूल मानो धरती पर बिछी सुनहरी चादर हों। ठंडी हवा के झोंके जब इन फूलों को सहलाते, तो वे लहराकर प्रेम की धुन बिखेरते। इन्हीं फूलों की महक से सराबोर थी मोहन और गौरी की प्रेम कहानी।

मोहन, गांव का एक सीधा-सादा परिश्रमी युवक था। उसके माता-पिता किसान थे, जो अपनी मेहनत से परिवार का पेट पालते थे। दूसरी ओर, गौरी मुखिया की बेटी थी, जिसे गांव के लोग राजकुमारी की तरह मानते थे। उसकी हंसी में नदी की कल-कल ध्वनि थी और आंखों में गगन की गहराई। बचपन से ही दोनों साथ खेले थे, कभी आम के पेड़ पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ते, तो कभी नदी के किनारे मिट्टी के घरौंदे बनाते। वे एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी थे।

समय के साथ, बचपन की यह दोस्ती कब प्रेम में बदल गई, उन्हें स्वयं भी पता नहीं चला। मोहन की हर छोटी खुशी में गौरी शामिल रहती, और गौरी की हर मुस्कान का कारण मोहन होता। मगर दोनों जानते थे कि उनके बीच समाज की ऊंच-नीच की दीवारें थीं।

 बसंत की एक शाम थी। सूरज ढल रहा था, और सरसों के खेत सुनहरे रंग में नहाए हुए थे। मोहन और गौरी उसी खेत में मिले।मोहन ने झिझकते हुए कहा, "गौरी, क्या तुम सच में मुझसे शादी करना चाहती हो? तुम्हारे पिता कभी नहीं मानेंगे।"

गौरी ने मुस्कुराते हुए एक सरसों का फूल तोड़ा और मोहन की ओर बढ़ाया, "ये देखो, यह पीला फूल! इसकी तरह हमारा प्रेम भी तो उज्ज्वल है, पवित्र है। अगर प्रेम सच्चा हो, तो कोई बाधा इसे रोक नहीं सकती।" मोहन ने वह फूल लिया और उसे अपने दिल के पास रखा। वह जानता था कि यह राह आसान नहीं थी, लेकिन गौरी के आत्मविश्वास ने उसमें भी साहस भर दिया।

समय बीतने के साथ, उनके प्रेम की खबर गांव में फैलने लगी। जब मुखिया को पता चला, तो वे आगबबूला हो उठे। उन्होंने गौरी को डांटते हुए कहा, "तुम एक साधारण किसान के बेटे से शादी करने की बात कैसे सोच सकती हो? हमारी इज्जत का क्या होगा?"

गौरी ने पहली बार अपने पिता के सामने हिम्मत से जवाब दिया, "बाबा, इज्जत इंसान की सच्चाई और कर्मों से बनती है, जन्म से नहीं। मोहन दिल का अच्छा इंसान है, मैं उससे विवाह करूंगी।"

मुखिया ने उसे घर में कैद कर दिया, मगर प्रेम की ताकत किसी दीवार में कैद नहीं हो सकती। मोहन ने गांव के बुजुर्गों और अपने माता-पिता से समर्थन मांगा। गांव के कई लोगों ने भी मोहन और गौरी का साथ दिया। धीरे-धीरे मुखिया पर दबाव बढ़ने लगा। आखिरकार, गांव की पंचायत बैठी और गौरी के प्रेम की सच्चाई के आगे मुखिया को झुकना पड़ा।

फिर वही सरसों के खेत, जहां कभी वे चुपके-चुपके मिले थे, उनकी शादी के साक्षी बने। सरसों के फूलों की महक हवा में घुली थी, और पेड़ पर बैठे पक्षी प्रेमगीत गा रहे थे। गांव के लोग खुशी-खुशी इस अनोखे विवाह में शामिल हुए।

जब गौरी और मोहन ने एक-दूसरे के गले में वरमाला डाली, तो ऐसा लगा जैसे सरसों के फूल भी झूमकर उनकी खुशी में शामिल हो रहे हों। सरसों के फूलों के बीच जन्मी यह प्रेम कहानी सदा के लिए अमर हो गई।

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