लोकतांत्रिक अधिकार या अराजकता?

 विनोद कुमार झा


लंदन में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की सुरक्षा में हुई चूक और खालिस्तान समर्थकों द्वारा तिरंगे के अपमान की घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की आड़ में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना उचित है? भारत ने इस घटना पर कड़ा विरोध जताते हुए ब्रिटेन को उसके कूटनीतिक दायित्वों की याद दिलाई है।  ब्रिटेन, जो खुद को लोकतंत्र और मानवाधिकारों का संरक्षक मानता है, उसकी धरती पर एक विदेशी मंत्री की सुरक्षा में इस तरह की सेंध गंभीर चिंता का विषय है। जयशंकर का काफिला रोकने की कोशिश करना, तिरंगे का अपमान करना और पुलिस की निष्क्रियता यह दर्शाती है कि ब्रिटेन अपनी धरती पर भारत-विरोधी तत्वों को खुला समर्थन नहीं तो कम से कम उनके प्रति नरम रुख जरूर अपनाए हुए है।  यह कोई पहली घटना नहीं है जब ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों ने भारत के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किए हों। इससे पहले भी भारतीय उच्चायोग पर हमले की घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में ब्रिटेन की सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके देश की भूमि पर किसी मित्र राष्ट्र के सम्मान को ठेस न पहुंचे। 

ब्रिटेन इस घटना को शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के दायरे में रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का मतलब किसी दूसरे देश के सम्मान और संप्रभुता को ठेस पहुंचाना होता है? यदि ब्रिटेन शांतिपूर्ण विरोध का समर्थन करता है, तो उसे यह भी तय करना होगा कि यह विरोध किसी अन्य राष्ट्र के राजनयिकों की सुरक्षा को खतरे में डालने का कारण न बने।  

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि खालिस्तानी समर्थक, जो भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हैं, उन्हें ब्रिटेन जैसे देशों में पनाह मिलती है। जब कोई अलगाववादी समूह किसी देश के राजनयिक सम्मान को ठेस पहुंचाता है, तो यह केवल एक राष्ट्र विशेष पर हमला नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मर्यादाओं का भी उल्लंघन होता है। 

भारत सरकार ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ब्रिटेन को कूटनीतिक जिम्मेदारी निभाने की सख्त नसीहत दी है। यह जरूरी भी है, क्योंकि यदि ऐसे मामलों को हल्के में लिया गया तो भविष्य में भारतीय राजनयिकों और प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को और भी गंभीर खतरा हो सकता है।  इसके अलावा, भारत को अपने हितों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। ब्रिटेन से सख्त जवाबदेही की मांग करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।  

ब्रिटेन को यह समझना होगा कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की सीमा वहां समाप्त होती है, जहां से दूसरे देश की संप्रभुता और सम्मान को खतरा पैदा होता है। यदि वह खुद को भारत का मित्र राष्ट्र मानता है, तो उसे अपनी धरती पर अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देने की छूट नहीं देनी चाहिए। भारत ने इस मुद्दे पर जो सख्त रुख अपनाया है, वह सही दिशा में उठाया गया कदम है। यह केवल ब्रिटेन ही नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए एक संदेश होना चाहिए जो लोकतांत्रिक अधिकारों की आड़ में भारत-विरोधी ताकतों को पनाह देते हैं।

Post a Comment

Previous Post Next Post