विनोद कुमार झा
भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी के हालिया बयान ने एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर किया है कि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उनका यह कथन केवल एक व्यक्तिगत या सैन्य दृष्टिकोण नहीं है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा के लिए एक गंभीर चेतावनी है। चीन और पाकिस्तान की बढ़ती निकटता और दोनों देशों की साझा रणनीतियाँ भारत के लिए एक वास्तविक खतरे के रूप में उभर रही हैं।
चीन और पाकिस्तान की गहरी मित्रता नई नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह सैन्य और तकनीकी सहयोग के नए स्तर पर पहुंच चुकी है। पाकिस्तान की रक्षा तकनीक और सैन्य उपकरणों का अधिकांश हिस्सा चीन से आता है। सैन्य अभ्यास से लेकर आर्थिक परियोजनाओं तक, दोनों देशों की बढ़ती करीबी भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए चिंता का विषय है। चीन, जो कि दक्षिण एशिया में अपनी प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) हो या चीन द्वारा पाकिस्तान को आधुनिक सैन्य उपकरणों की आपूर्ति—इन सभी का उद्देश्य भारत की सामरिक स्थिति को कमजोर करना है।
जनरल द्विवेदी का यह कहना कि पाकिस्तान में बिकने वाली हर तकनीक चीन से जुड़ी है, एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर संकेत करता है। पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को मिलने वाला सैन्य सहयोग और तकनीकी सहायता अप्रत्यक्ष रूप से चीन से आती है, जिससे भारत की सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है। भारत पहले ही पश्चिमी मोर्चे (पाकिस्तान) और उत्तरी मोर्चे (चीन) पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। हाल के वर्षों में भारत ने एलओसी और एलएसी पर अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत किया है, लेकिन चीन और पाकिस्तान की संयुक्त साजिशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को बढ़ाने के साथ-साथ बहुस्तरीय सुरक्षा रणनीति अपनानी होगी साथ ही भारत को वैश्विक स्तर पर चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ मजबूत कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। चीन से तकनीकी और रक्षा उपकरणों की निर्भरता कम कर स्वदेशी तकनीकों को बढ़ावा देना होगा। आतंकवाद के खिलाफ कठोर नीति अपनाते हुए सीमावर्ती इलाकों में सतर्कता बढ़ानी होगी। सेना प्रमुख का बयान भारत के लिए एक स्पष्ट संदेश है। चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह समय है कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा को प्राथमिकता दे, बल्कि अपनी रणनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करे। एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत ही इस दोहरे खतरे का मुंहतोड़ जवाब दे सकता है।