विनोद कुमार झा
गाँव में एक बड़ा सा पीपल का पेड़ था, जो सालों से वहाँ खड़ा था। उसकी घनी छाया में हर कोई आराम करता था—बच्चे खेलते, बूढ़े विश्राम करते और राहगीर सुस्ताते। उसी गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत परिश्रमी था, लेकिन किस्मत हमेशा उसकी परीक्षा लेती रहती थी। रामू के पास एक छोटा सा खेत था, लेकिन फसल कभी अच्छी नहीं होती। उसके पड़ोसी मोहन की फसल हर साल लहलहाती थी। रामू यह देखकर चिंतित रहता कि आखिर उसकी मेहनत का फल क्यों नहीं मिलता?
एक दिन, जब वह परेशान बैठा था, तो गाँव के बुजुर्ग दादा जी वहाँ आए और बोले, "बेटा, परेशान क्यों है?"
रामू ने अपनी समस्या बताई। दादा जी मुस्कुराए और पास के पीपल की ओर इशारा करते हुए बोले, "देखो, यह पीपल कितना विशाल है, क्योंकि यह अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है। इसका हर पत्ता, टहनी और छाल इसी पेड़ में वापस लगती है। तुम अपनी मिट्टी और मेहनत से दूर भागोगे, तो सफलता कैसे मिलेगी?"
रामू को बात समझ आ गई। उसने खुद के खेत पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया, मिट्टी की देखभाल की, सही खाद-पानी दिया और धैर्य बनाए रखा। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी फसल भी मोहन के खेत जैसी लहलहाने लगी। उस दिन रामू को समझ आया कि "जिस पेड़ की छाल, उसी में लगते"हैं। अर्थात मेहनत और सच्ची लगन से किया गया काम एक न एक दिन फल जरूर देता है।
समय बीतता गया, और रामू की मेहनत रंग लाने लगी। अब उसकी फसल अच्छी होने लगी थी, और उसकी आर्थिक स्थिति भी सुधर रही थी। लेकिन इसके साथ ही, उसने एक और महत्वपूर्ण बात सीखी—सिर्फ मेहनत करना ही काफी नहीं, बल्कि सही दिशा में मेहनत करना भी जरूरी होता है।
रामू ने खेती के नए-नए तरीकों को अपनाना शुरू किया। उसने गाँव के बुजुर्गों से पारंपरिक ज्ञान लिया और साथ ही गाँव के स्कूल में जाकर कृषि विशेषज्ञों से आधुनिक तकनीक भी सीखी। धीरे-धीरे, वह अपने गाँव का सबसे सफल किसान बन गया।
अब वही लोग, जो कभी उसका मजाक उड़ाते थे, उससे सलाह लेने आने लगे। उसके खेत की हरियाली दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई। लेकिन रामू को कभी घमंड नहीं हुआ। वह हमेशा कहता, "जिस पेड़ की छाल, उसी में लगते"—यानी इंसान को अपनी जड़ों से जुड़कर ही सफलता मिलती है। अगर हम मेहनत करेंगे और अपने ही लोगों के साथ मिलकर चलेंगे, तो हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
एक दिन, जब गाँव में अकाल पड़ा और कई किसानों की फसल बर्बाद हो गई, तो रामू ने सभी की मदद की। उसने अपने अन्न भंडार को खोला और जरूरतमंदों को अनाज बांटा। यह देखकर गाँव वाले बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उसे गाँव का सरपंच बना दिया। रामू अब न केवल अपने खेत की देखभाल करता था, बल्कि पूरे गाँव के विकास के लिए काम करने लगा। उसने गाँव में एक छोटी सी पाठशाला खुलवाई, जहाँ बच्चों को शिक्षा और किसानों को उन्नत खेती के तरीके सिखाए जाते थे। धीरे-धीरे, गाँव की स्थिति बदल गई। लोग मेहनती और आत्मनिर्भर बन गए। अब कोई भी किसान पिछड़ा नहीं था, क्योंकि सभी ने समझ लिया था कि सच्ची उन्नति अपनी जड़ों से जुड़े रहने और सही दिशा में मेहनत करने से ही संभव है।
रामू की मेहनत और ईमानदारी का असर अब पूरे क्षेत्र में दिखने लगा था। उसके गाँव को एक आदर्श गाँव के रूप में पहचाना जाने लगा। आसपास के गाँवों के किसान भी यहाँ आकर खेती के उन्नत तरीकों को सीखने लगे। सरकारी अधिकारी भी रामू के कार्यों से प्रभावित होकर उसके गाँव में नई योजनाएँ लागू करने लगे, जिससे गाँव की तरक्की और तेज हो गई।
एक दिन, गाँव में एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई। सरकार ने घोषणा की कि गाँव के पास की ज़मीन पर एक बड़ी फैक्ट्री बनेगी, जिससे कई किसानों की ज़मीन अधिग्रहित कर ली जाएगी। गाँव के लोगों में डर और गुस्सा था, क्योंकि उनके पास कोई और आजीविका का साधन नहीं था।
गाँव के लोग रामू के पास पहुंचे और बोले, "रामू भाई, अब क्या होगा? अगर हमारी ज़मीन चली गई, तो हम क्या करेंगे?
रामू ने उन्हें शांत किया और कहा, "डरो मत, हम अपनी मेहनत और हिम्मत से हर मुश्किल का हल निकाल सकते हैं। हमें घबराने की बजाय समाधान ढूंढना होगा।"
रामू ने गाँव वालों को एकजुट किया और सरकारी अधिकारियों से मिलने गया। उसने अधिकारियों को समझाया कि यह गाँव पूरी तरह से खेती पर निर्भर है, और अगर किसानों की ज़मीन चली गई, तो वे बेरोजगार हो जाएंगे। उसने सरकार को एक सुझाव दिया—अगर फैक्ट्री लगानी ही है, तो उसे इस तरह बनाया जाए कि वह किसानों के लिए भी फायदेमंद हो।
सरकार ने रामू के सुझावों को गंभीरता से लिया और तय किया कि फैक्ट्री कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट होगी, जिससे किसानों को अपनी फसल का बेहतर दाम मिलेगा और उन्हें रोजगार भी मिलेगा। यह सुनकर गाँव वालों को राहत मिली। अब न केवल उनकी ज़मीन बच गई, बल्कि उन्हें एक नया व्यापारिक अवसर भी मिल गया।
रामू ने किसानों को संगठित करके एक सहकारी समिति बनाई, जहाँ वे अपनी उपज को इकट्ठा करके सीधे फैक्ट्री में बेचते थे। इससे बिचौलियों का खेल खत्म हो गया और किसानों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ मिलने लगा। धीरे-धीरे, गाँव और समृद्ध होता गया। अब वहाँ सिर्फ खेती ही नहीं, बल्कि कृषि आधारित उद्योग भी विकसित होने लगे। गाँव के युवा, जो पहले काम की तलाश में शहर जाते थे, अब अपने ही गाँव में रोजगार पाने लगे।
रामू की सूझबूझ और नेतृत्व से उसका गाँव पूरे जिले में मशहूर हो गया। सरकार ने उसे कृषि विकास समिति का अध्यक्ष बना दिया, और अब वह अन्य गाँवों में भी जाकर किसानों को जागरूक करने लगा। लेकिन रामू ने कभी अपने मूल सिद्धांत को नहीं छोड़ा—"जिस पेड़ की छाल, उसी में लगते।" उसने हमेशा अपनी मिट्टी, अपने लोगों और अपनी मेहनत पर भरोसा किया और यह साबित किया कि अगर हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती।
रामू का जीवन इसी सिद्धांत पर चलता रहा, और वह गाँव के लिए एक प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी यह सिखाती है कि अगर हम अपनी मेहनत, लगन और सच्चाई से अपने कर्मभूमि में लगे रहते हैं, तो सफलता हमें जरूर मिलती है।
(लेखक: विनोद कुमार झा)