जीवन एक पतंग के समान है, जो समय की हवाओं के साथ ऊँचाइयाँ छूता है और कभी-कभी कठिनाइयों में उलझ भी जाता है। इसकी डोर हमारे हाथों में होती है, लेकिन कभी-कभी हालात इस पर काबू पा लेते हैं। हर सुबह एक नई उम्मीद की किरण लेकर आती है, जैसे पतंगबाज़ अपनी पतंग को नए हौसले से उड़ाता है। लेकिन हवा का रुख हमेशा हमारे अनुकूल नहीं होता। कभी संघर्ष की आँधियाँ इसे गिराने की कोशिश करती हैं, तो कभी सफलता की बयार इसे और ऊँचा ले जाती है।
जीवन की डोर विश्वास, धैर्य और आत्मनिर्भरता से मजबूत होती है। यदि इसे डर और शंकाओं के हवाले कर दिया जाए, तो यह उलझ सकती है, टूट भी सकती है। लेकिन यदि हम इसे सावधानी और समझदारी से थामें, तो यह हमें अनंत ऊँचाइयों तक ले जा सकती है। इसलिए, जीवन की इस डोर को आत्मविश्वास और सकारात्मकता के साथ थामें। गिरने का डर छोड़कर, आगे बढ़ने की चाह रखें। क्योंकि अंततः वही व्यक्ति जीवन की ऊँचाइयों को छूता है, जो डोर को मजबूती से संभालना जानता है।
जब हम अपनी डोर को मजबूती से थामे रखते हैं, तो जीवन के हर मोड़ पर आत्मविश्वास बना रहता है। यह डोर हमारे रिश्तों, हमारे सपनों और हमारी उम्मीदों से बंधी होती है। जब हम इसे प्यार, समर्पण और धैर्य से संभालते हैं, तब जीवन में संतुलन बना रहता है। लेकिन कई बार, यह डोर उलझ जाती है—कभी परिस्थितियों से, कभी लोगों से, तो कभी हमारे ही संदेहों से। ऐसे समय में धैर्य और समझदारी ही इसे सुलझाने का रास्ता दिखाती है। यदि हम घबराकर इसे झटके से खींच दें, तो यह टूट सकती है। लेकिन यदि हम धीरज से, समझदारी से इसे धीरे-धीरे सुलझाएँ, तो फिर से खुलकर उड़ने का अवसर मिल सकता है।
जीवन की डोर केवल हमें ऊपर नहीं उठाती, बल्कि हमें धरती से भी जोड़े रखती है। सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँचकर भी यदि यह डोर हमारे मूल्यों, संस्कारों और अपनों से जुड़ी रहे, तो हमारी उड़ान सार्थक होती है। वरना, बिना संतुलन के उड़ने वाली पतंग एक न एक दिन गिर ही जाती है। इसलिए, जीवन की डोर को न तो बहुत ढीला छोड़ें कि वह नियंत्रण से बाहर हो जाए, और न ही इतना कस लें कि वह टूट जाए। सही संतुलन ही जीवन को सुंदर बनाता है। विश्वास और धैर्य के साथ इस डोर को थामे रहें, और फिर देखें—आपका जीवन सफलता और खुशहाली की ऊँचाइयों को जरूर छुएगाडोर का सही संतुलन बनाए रखना आसान नहीं होता। यह धैर्य, समझदारी और निरंतर प्रयास की माँग करता है। कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब लगता है कि हमारी डोर किसी और के हाथ में चली गई है—परिस्थितियाँ हमें हिला देती हैं, उम्मीदें कमजोर पड़ने लगती हैं, और सपनों की उड़ान रुकने लगती है। लेकिन यही वह समय होता है जब हमें अपनी डोर को और मजबूती से पकड़ने की जरूरत होती है।
हर पतंग को एक सहायक हवा की जरूरत होती है, और जीवन में भी हमें ऐसे लोगों और विचारों का साथ चाहिए जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दें। अच्छे रिश्ते, सकारात्मक सोच और मेहनत की लय हमें सही दिशा में उड़ने में मदद करती है। लेकिन यह भी जरूरी है कि हम अपने उड़ान की दिशा खुद तय करें। अगर हम दूसरों के इशारों पर अपनी डोर छोड़ देंगे, तो हम उनके अनुसार ही उड़ेंगे और गिरेंगे।
जीवन में हार-जीत का सिलसिला चलता रहेगा। कभी हमारी पतंग ऊँचाइयों पर होगी, तो कभी दूसरों की। लेकिन असली जीत उस व्यक्ति की होती है जो अपनी डोर को आत्मविश्वास और धैर्य के साथ थामे रखता है। अगर हमारी डोर सही हाथों में है, यानी हमारे खुद के आत्मसंयम और समझदारी में तो कोई भी आँधी हमें गिरा नहीं सकती। अंततः, जीवन की डोर केवल हमारी नहीं होती, यह हमारे अपनों से भी जुड़ी होती है। जब हम अपने परिवार, दोस्तों और समाज के साथ प्रेम और सहयोग की डोर को मजबूती से थामते हैं, तो जीवन की उड़ान और भी सुंदर हो जाती है। यही संतुलन हमें न केवल ऊँचाइयों तक ले जाता है बल्कि हमें वहाँ टिके रहने की शक्ति भी देता है।
तो जीवन की इस डोर को थामे रहिए, मजबूती से, स्नेह से और आत्मविश्वास से। क्योंकि यह केवल एक डोर नहीं, बल्कि आपके सपनों, आपके संघर्षों और आपकी सफलताओं की डोर है—जिसे आपको खुद संभालना है, सहेजना है और अनंत ऊँचाइयों तक ले जाना है।
(लेखक: विनोद कुमार झा )