गांव के किनारे एक बुज़ुर्ग कोयले की खान थी, जहां सालों पहले मजदूर अपनी मेहनत से काले कोयले को निकालते थे। पर अब वह बंद पड़ी थी। उसी गांव में एक गरीब लड़का था – मनोज। वह रोज़ जंगल से लकड़ियां लाकर बेचता और अपने परिवार का पेट पालता।
एक दिन लकड़ी बीनते हुए वह पुरानी खान के पास जा पहुँचा। वहां ज़मीन धंस रही थी। अचानक उसका पैर फिसला और वह अंदर गिर गया। जब उसने खुद को संभाला, तो पाया कि वह एक अंधेरी सुरंग में था। मनोज डर गया, लेकिन हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ा। तभी उसकी नज़र ज़मीन पर चमकती किसी चीज़ पर पड़ी। उसने पास जाकर देखा – वह एक सोने की डली थी! पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब उसने हाथ में उठाया, तो उसकी आँखें चमक उठीं।
उसे समझ आया कि कोयले की इस खान में सोना भी छिपा था, जिसे अब तक किसी ने नहीं खोजा था। मनोज ने वह डली उठाई और किसी तरह बाहर निकलकर गांव पहुंचा। गांववालों को जब यह पता चला, तो वे सभी उत्साहित हो गए। बड़े-बड़े व्यापारी वहां आने लगे। सरकार ने जांच की और पाया कि वहां सचमुच सोना मौजूद था। जल्द ही खान को दोबारा खोला गया और गांव की किस्मत बदल गई।
जहां कभी अंधेरा और गरीबी थी, वहां अब रोशनी और समृद्धि आ गई। मनोज की ईमानदारी और मेहनत से पूरे गांव को एक नई ज़िंदगी मिली। सोने की खान खुलने के बाद गांव की तस्वीर बदलने लगी। पहले जहां लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते थे, अब वहां रोजगार के नए अवसर पैदा हो गए। सरकार ने गांव में सड़कें बनवाईं, स्कूल खोले और अस्पताल की सुविधा भी दे दी।
मनोज, जिसने इस छिपे खजाने की खोज की थी, अब सिर्फ एक गरीब लकड़हारा नहीं रहा। सरकार ने उसकी ईमानदारी और हिम्मत को सराहा और उसे उस खान में काम करने का प्रमुख अधिकारी बना दिया। गांव के लोग उसे सम्मान की नज़रों से देखने लगे। पर जब दौलत आती है, तो कुछ लोग लालच में अंधे हो जाते हैं। कुछ बाहरी व्यापारी और भ्रष्ट अधिकारी इस खान पर कब्जा जमाने की कोशिश करने लगे। वे मनोज को लालच देकर या डराकर उससे सोने की जानकारी निकालना चाहते थे, लेकिन मनोज अपने गांव के लिए ईमानदार रहा।
एक दिन, कुछ बदमाशों ने खान में चोरी करने की कोशिश की। मनोज को इसकी भनक लग गई और उसने तुरंत गांववालों को इकट्ठा कर लिया। सभी ने मिलकर उन चोरों को पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया। इसके बाद सरकार ने खान की सुरक्षा बढ़ा दी, और यह तय किया कि इस संपत्ति का लाभ पूरे गांव को मिलेगा, न कि किसी एक व्यक्ति को।
समय बीतता गया, और गांव विकास की राह पर आगे बढ़ता रहा। अब वहां के बच्चे शहरों की तरह अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे, खेतों में नई तकनीकें इस्तेमाल होने लगीं, और गांव में बिजली-पानी की कोई कमी नहीं रही। मनोज, जो कभी लकड़ियां बेचकर गुज़ारा करता था, अब गांव का सम्मानित व्यक्ति बन चुका था। लेकिन जब खुशहाली आती है, तो उसके साथ कुछ नई चुनौतियां भी आती हैं। धीरे-धीरे बाहरी लोग भी इस खान में दिलचस्पी लेने लगे। कई बड़े उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डालना शुरू किया कि खान को निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जाए। अगर ऐसा होता, तो गांववालों को फिर से मजदूर बनकर दूसरों के नीचे काम करना पड़ता।
मनोज और गांव के बुज़ुर्गों ने मिलकर तय किया कि वे अपनी जमीन और खान को किसी बाहरी कंपनी को नहीं सौंपेंगे। उन्होंने सरकार से अपील की कि इस खदान का मालिकाना हक पूरे गांव को मिलना चाहिए, ताकि इसका लाभ सभी को बराबर मिले। शुरू में सरकार इस पर राज़ी नहीं थी, लेकिन मनोज और गांववालों की एकता के आगे उनकी बात सुनी गई। सरकार ने फैसला किया कि इस खान का प्रबंधन गांव की एक सहकारी समिति को दिया जाएगा, जिसमें हर परिवार को हिस्सेदारी मिलेगी। इस फैसले से पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई।
अब खान से होने वाली आमदनी को गांव के विकास में लगाया जाने लगा। एक बड़ा अस्पताल बना, जहां आसपास के गांवों के लोग भी इलाज कराने आने लगे। महिलाओं के लिए रोजगार के नए साधन तैयार किए गए, और बच्चों की शिक्षा के लिए एक बड़ी लाइब्रेरी भी बनवाई गई। मनोज ने यह बदलाव लाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी, अब भी अपने पुराने घर में सादगी से रहता था। वह मानता था कि असली सोना सिर्फ खान में नहीं, बल्कि गांव के लोगों की मेहनत और ईमानदारी में भी छिपा होता है।
मनोज की सूझबूझ और ईमानदारी से गांव एक आदर्श स्थान बन गया। जहां पहले अंधेरा था, वहां अब रोशनी थी। जहां पहले गरीबी थी, वहां खुशहाली थी। कोयले के बीच छिपे सोने ने न केवल धरती को समृद्ध किया, बल्कि गांववालों के जीवन को भी सोने जैसा चमका दिया। इस तरह, "कोयला बीच सोना" सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस सच्चाई की मिसाल बन गई कि अगर इंसान सच्चे दिल से मेहनत करे और अपने हक के लिए खड़ा हो, तो वह अपने भाग्य को भी बदल सकता है।
(लेखक: विनोद कुमार झा)