कहानी : पतझड़ और बसंत...

विनोद कुमार झा

शहर के कोने में स्थित वह पुराना बगीचा, जहां अनगिनत पेड़ अपनी शाखाएँ फैलाए खड़े थे, समय का साक्षी था। वहाँ का सबसे पुराना पेड़ एक विशाल पीपल जिसने कई ऋतुएँ देखी थीं। वह हर साल पतझड़ में अपने पत्ते गिराता और बसंत में फिर से हरा-भरा हो जाता।  लेकिन आज की यह कहानी किसी पेड़ की नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी की है। एक ऐसी कहानी जिसमें पतझड़ भी है और बसंत भी।  

संजू एक छोटे से कस्बे में जन्मा था। बचपन में वह बहुत खुशमिजाज और चंचल था, लेकिन समय के साथ परिस्थितियों ने उसे बदल दिया। उसके पिता एक फैक्ट्री में मामूली नौकरी करते थे, और माँ सिलाई करके घर चलाने में मदद करती थीं। संजू पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन गरीबी ने उसके सपनों पर धूल चढ़ा दी।  जब वह कॉलेज पहुँचा, तब तक हालात और खराब हो चुके थे। पिता की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। घर की जिम्मेदारी संजू के कंधों पर आ गई। उसने पढ़ाई के साथ-साथ एक छोटी सी दुकान में नौकरी करनी शुरू कर दी।  

संजू मेहनत करता रहा, लेकिन किस्मत हर बार उसे ठग लेती। उसने एक बड़ी कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया, पर वहाँ रिश्वत चलती थी। उसके पास पैसे नहीं थे, और नौकरी किसी और को मिल गई। यह उसकी जिंदगी का पहला पतझड़ था, संघर्ष और बिखराव का समय।  वह निराश था, लेकिन माँ की बात याद आई, "बेटा, हर पतझड़ के बाद बसंत आता है।" यह सोचकर उसने हिम्मत नहीं हारी।  

संजू ने हिम्मत जुटाई और एक छोटा स्टार्टअप शुरू करने का सोचा। उसने अपने दोस्त से उधार लिए पैसों से एक ऑनलाइन व्यापार की शुरुआत की—हस्तनिर्मित सामान बेचने की। शुरुआत कठिन थी, लेकिन उसकी मेहनत रंग लाई। धीरे-धीरे लोग उसके काम को पसंद करने लगे, और उसका बिजनेस बढ़ने लगा।  

एक दिन, वही कंपनी जिसने उसे रिश्वत के बिना नौकरी नहीं दी थी, अब उसके प्रोडक्ट्स खरीद रही थी। यह उसके जीवन का बसंत था। नई शुरुआत और सफलता का समय।  संजू ने अपने संघर्ष के दिनों को कभी नहीं भुलाया। उसने अपने जैसे कई युवाओं को रोजगार दिया, जिससे वे भी अपनी जिंदगी में बसंत का आनंद ले सकें।  

संजू का व्यापार दिन-ब-दिन बढ़ता गया। अब वह अपने माता-पिता को एक बेहतर जीवन दे सकता था। उनका पुराना टूटा-फूटा घर एक सुंदर मकान में बदल चुका था। उसकी माँ, जो सिलाई करके घर चलाती थीं, अब आराम से पूजा-पाठ में समय बितातीं, और पिता भी पहले से स्वस्थ हो गए थे।  लेकिन जिंदगी कभी स्थिर नहीं रहती। जिस तरह हर बसंत के बाद फिर से पतझड़ आता है, वैसे ही संजू की जिंदगी में भी एक नया संकट आ गया।  

एक दिन अचानक बाजार में मंदी आ गई। बड़ी कंपनियों ने सस्ते दामों पर मशीनों से बने सामान बेचना शुरू कर दिया, जिससे रवि का व्यापार घाटे में जाने लगा। जो लोग कभी उसके सामान के दीवाने थे, अब सस्ते विकल्पों की ओर मुड़ गए थे। धीरे-धीरे उसका बिजनेस डूबने लगा।  उसका संघर्ष फिर से शुरू हो गया। जिन लोगों को उसने रोजगार दिया था, वे भी अब नौकरी छोड़कर जाने लगे। बैंक का कर्ज बढ़ने लगा, और हालत फिर से वही होने लगी, जैसे पहले थी।  

संजू यह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इतनी मेहनत के बाद भी उसकी जिंदगी उसे बार-बार कठिनाइयों के भंवर में क्यों धकेल रही है।  लेकिन इस बार संजू पहले से ज्यादा समझदार हो चुका था। उसे एहसास हुआ कि अगर वह टूट गया, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। उसने हालात का विश्लेषण किया और व्यापार को डिजिटल करने का फैसला किया।  

वह इंटरनेट के जरिए अपने सामान को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ले गया। उसने सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का सही इस्तेमाल किया, और धीरे-धीरे फिर से ग्राहक मिलने लगे। उसने मशीनों से मुकाबला करने के लिए अपने उत्पादों की गुणवत्ता और डिज़ाइन में बदलाव किए।  धीरे-धीरे उसका बिजनेस फिर से पटरी पर आने लगा।  

अब संजू को एक चीज़ साफ समझ आ गई थी, जिंदगी में न तो पतझड़ स्थायी होता है, और न ही बसंत। ये दोनों एक चक्र की तरह हैं, जो आते-जाते रहते हैं।  वह समझ गया कि अगर पतझड़ में धैर्य और समझदारी से काम लिया जाए, तो बसंत वापस लाया जा सकता है।  

जिंदगी पतझड़ और बसंत का संगम है। कभी पत्ते झड़ते हैं, तो कभी नई कोपलें उगती हैं। जो लोग पतझड़ में हार नहीं मानते, वही बसंत की खुशबू का आनंद ले पाते हैं।  जीवन में मुश्किलें आएँगी, गिरावट होगी, लेकिन अगर हिम्मत और मेहनत बनी रहे, तो बसंत जरूर आएगा। हमें न तो सफलता पर घमंड करना चाहिए और न ही असफलता से डरना चाहिए।  

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