विनोद कुमार झा
कभी घरों की खिड़कियों, आंगनों और पेड़ों की शाखाओं पर चहचहाने वाली गौरैया (Passer domesticus) आज हमें कहीं-कहीं ही दिखाई देती है। बचपन में जिन चिड़ियों को देखकर हम बड़े हुए, वे अब लुप्तप्राय होती जा रही हैं। यह सवाल हमारे मन में उठता है आखिर गौरैया कहां चली गई?
गौरैया की घटती संख्या के कारण?
शहरीकरण और आवास का संकट : गौरैया हमेशा इंसानों के साथ सह-अस्तित्व में रही है। लेकिन आधुनिक कंक्रीट के जंगलों में पुराने घरों और मिट्टी के आंगनों की जगह बहुमंजिला इमारतों ने ले ली। इससे गौरैया के घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान कम होते गए।
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन : वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया के अस्तित्व के लिए हानिकारक साबित हुए हैं। मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन के कारण इनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है।
कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग : खेती में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से छोटे कीड़े-मकोड़े खत्म हो रहे हैं, जो गौरैया के भोजन का मुख्य स्रोत थे। इससे गौरैया का भोजन कम हो गया और उनका जीवन संकट में पड़ गया।
प्राकृतिक जल स्रोतों की कमी : गर्मियों में छोटे जल स्रोतों की अनुपलब्धता के कारण गौरैया प्यास से भी मर रही हैं। पहले गांवों में तालाब, कुएं और मिट्टी के बर्तन होते थे, जहां वे पानी पी सकती थीं।
गौरैया को बचाने के प्रयास : घरों में कृत्रिम घोंसले लगाएंताकि वे फिर से अपने पुराने ठिकानों में लौट सकें। बगीचों और पेड़ों की संख्या बढ़ाएं, जिससे उन्हें प्राकृतिक आवास मिल सके। छोटी कटोरियों में पानी और अनाज रखें , खासकर गर्मी के मौसम में। मोबाइल टावरों और रेडिएशन को नियंत्रित करने की दिशा में काम करें। रासायनिक कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करें और जैविक खेती को अपनाएं। गौरैया को बचाने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। कई गैर-सरकारी संगठन (NGO) और पर्यावरणविद् इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। कुछ प्रमुख पहलें इस प्रकार है।
गौरैया बचाओ अभियान : विभिन्न संस्थाएं और स्कूल-कॉलेज इस अभियान के तहत लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि वे अपने घरों और बगीचों में कृत्रिम घोंसले लगाएं और उनके लिए अनाज व पानी रखें।
विश्व गौरैया दिवस" (20 मार्च) : यह दिन हर साल गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों द्वारा गौरैया संरक्षण पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सामाजिक मीडिया और डिजिटल कैंपेन : आजकल सोशल मीडिया जागरूकता फैलाने का एक मजबूत माध्यम बन चुका है। कई लोग ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर गौरैया संरक्षण से जुड़े पोस्ट और वीडियो साझा कर रहे हैं।
गौरैया की वापसी के सफल उदाहरण : कुछ जगहों पर जागरूक नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों के प्रयासों से गौरैया वापस लौटी है। उदाहरण के लिए:- दिल्ली, मुंबई और जयपुर जैसे शहरों में कुछ नागरिकों ने अपने घरों में घोंसले लगाए और गौरैया को भोजन-पानी उपलब्ध कराया, जिससे वहां उनकी संख्या बढ़ने लगी। पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में किसानों ने जैविक खेती को अपनाया, जिससे गौरैया को कीट-पतंगे मिलने लगे और वे वापस आने लगीं।
गौरैया की घटती संख्या को रोकने के लिए हम सभी को व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करना होगा। अगर हर घर में एक छोटा-सा प्रयास किया जाए। एक कटोरी पानी, थोड़ा-सा अनाज और एक घोंसला तो गौरैया फिर से लौट सकती है। यह सिर्फ एक चिड़िया को बचाने की बात नहीं है, बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर हम अभी नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब गौरैया केवल हमारी यादों और किताबों में रह जाएगी।
गौरैया सिर्फ एक चिड़िया नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन का प्रतीक है। अगर हमने इसे बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियां केवल किताबों और तस्वीरों में ही इसे देख पाएंगी। हमें गौरैया को वापस बुलाने के लिए अपने प्रयास तेज करने होंगे, ताकि इसकी चहचहाहट फिर से हमारे आंगन में गूंज सके।
आइए, मिलकर गौरैया की चहचहाहट को फिर से लौटाएं!