भारतीय संसद से हाल ही में पारित हुआ वक्फ संशोधन विधेयक-2024 निस्संदेह एक ऐतिहासिक परिवर्तन का संकेत है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा और देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और पारदर्शिता को लेकर लंबे समय से उठ रहे सवालों के जवाब देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। भारत में वक्फ संपत्तियों का इतिहास अत्यंत विस्तृत और जटिल रहा है। लगभग 9.4 लाख एकड़ भूमि और अनुमानित 1.2 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति वक्फ बोर्डों के अधीन है। इतने बड़े संसाधनों के बावजूद मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा आज भी सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा है। सवाल उठता है कि जब इतनी संपदा उपलब्ध है, तो इसका लाभ समुदाय तक क्यों नहीं पहुंच रहा? इसका उत्तर कहीं न कहीं वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी, राजनीतिक उपेक्षा और जवाबदेही के अभाव में छिपा है।
वक्फ की मूल अवधारणा एक धार्मिक और परोपकारी भावना से प्रेरित रही है। वक्फ यानी 'रोक देना' संपत्ति को अल्लाह के नाम समर्पित कर देना। इसका उद्देश्य मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों और कब्रिस्तानों की देखरेख करना था। लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था एक सत्ता केंद्रित प्रणाली बनती गई, जहां मुतवल्लियों के पास अत्यधिक अधिकार होते चले गए और उनकी जवाबदेही लगभग नगण्य हो गई।
वक्फ संशोधन विधेयक-2024 इस दिशा में एक स्वागतयोग्य हस्तक्षेप है। इससे न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता की उम्मीद बढ़ी है, बल्कि इसमें गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में शामिल करने, महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने और वक्फ देने वाले व्यक्ति के धार्मिक आचरण को परिभाषित करने जैसे प्रावधान भी शामिल किए गए हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वक्फ अब केवल एक धार्मिक संस्था न रहकर एक सामाजिक-सांस्कृतिक सुधार के औजार की तरह काम करे। सदियों से भारत में वक्फ व्यवस्था का ऐतिहासिक महत्व रहा है, परंतु यह भी सच है कि वक्फ की संरचना अब पुनर्मूल्यांकन की मांग कर रही थी। कई मुस्लिम देशों जैसे तुर्की, मिस्र और ट्यूनीशिया ने भी वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण सरकार को सौंप कर इसे आधुनिक प्रशासनिक ढांचे में समाहित कर लिया है। भारत में यह विधेयक उसी दिशा में एक संशोधित, परंतु संतुलित प्रयास है। हालांकि, इस पूरे परिदृश्य को केवल हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से देखना भूल होगी। यह विधेयक किसी धार्मिक समुदाय के विरुद्ध नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित में संसाधनों की पारदर्शी और न्यायसंगत व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास है। यदि वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग हो, तो ये मुस्लिम समुदाय की शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती हैं।
हरनाथ यादव द्वारा पेश किए गए इस प्राइवेट बिल को संसद से मंजूरी मिलना एक उदाहरण है कि लोकतंत्र में व्यक्तिगत पहल भी व्यवस्था परिवर्तन का माध्यम बन सकती है। अब देखने की बात यह होगी कि इस नए कानून के क्रियान्वयन में केंद्र और राज्य सरकारें कितनी तत्परता और निष्पक्षता दिखाती हैं।समाज को भी यह समझना होगा कि धार्मिक संस्थाएं केवल आस्था का नहीं, जवाबदेही और पारदर्शिता का भी विषय होती हैं। वक्फ संशोधन विधेयक-2024 केवल एक कानून नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक सुधार की ओर बढ़ा एक सकारात्मक कदम है।