विनोद कुमार झा
"मां" जीवन का आरंभ है, और अंत भी मां ही है। राम, कृष्ण, सीता, राधा और द्रौपदी के जीवन में मां के विविध रूप प्रतिबिंबित होते हैं। नवरात्रि के अवसर पर हम केवल देवी की पूजा नहीं करते, बल्कि उस शक्ति का आह्वान करते हैं जो हमारे भीतर भी विद्यमान है। इस नवरात्रि, आइए हम सब मां के गुणों को अपने जीवन में उतारें ममता, करुणा, शक्ति, और साहस ताकि हमारा जीवन भी देवीमय हो जाए।
नवरात्रि, भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और दिव्य उत्सव है, जो वर्ष में दो बार आता है और मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित होता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, भक्ति, ममता और मोक्ष का प्रतीक है। नवरात्रि हमें याद दिलाती है कि मां न केवल जीवन की जननी है, बल्कि जीवन के हर संकट में शक्ति का स्रोत भी है।
मां शब्द एक, अर्थ अनेक :"मां" शब्द स्वयं में एक सम्पूर्ण भावना है। संस्कृत में "मा" का अर्थ होता है "मापना" या "सीमा", लेकिन "मां" इस सीमा से परे है । वह असीम है। मां जननी है, जो जीवन को जन्म देती है। वह ममता है, जो अपने बच्चों को निःस्वार्थ प्रेम करती है। और वही मां मोक्ष है, जो आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाली साधना बन जाती है। जैसे इन चंद कविता से स्पष्ट है :-
मां शब्द नहीं, यह सृष्टि का सार है,
जननी है, जीवन की पहली पुकार है।
ममता की मूरत, करुणा की धार,
जो दे मोक्ष, वही तो है मां अपरंपार।
नवरात्रि के दौरान पूजे जाने वाले नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री इन सभी में मां की विभिन्न शक्तियाँ और गुण समाहित हैं। ये रूप केवल दैवीय प्रतीक नहीं, बल्कि हर युग, हर कथा और हर चरित्र में जीवंत हैं।
नवरात्रि के नौ रंगों में, मां के नौ रूप झलकते हैं,
हर रूप एक संदेश, हर चरण में शक्ति की लय बहकते हैं।
राम के जीवन में मां की ममता और मार्गदर्शन इस प्रकार है:-
राम के जीवन में मां कौशल्या की छाया,
त्याग, प्रेम और मर्यादा की माया।
भगवान राम के जीवन में मां कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा तीनों ने अलग-अलग रूपों में मां की भूमिका निभाई। कौशल्या ने राम को स्नेह दिया, सुमित्रा ने लक्ष्मण को राम के साथ भेजकर त्याग दिखाया, और कैकेयी ने राम को वनवास देकर उनकी आत्मा को तपाया। राम की आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की यात्रा में मां का योगदान अद्वितीय है। स्वयं मां दुर्गा की पूजा कर उन्होंने रावण पर विजय पाई – यह दर्शाता है कि मां की शक्ति के बिना कोई भी धर्मयुद्ध सफल नहीं हो सकता।
कृष्ण और यशोदा ममता !
कृष्ण को मिली यशोदा मां की ममता,
बिना जनम दिए भी मां बन जाए ये दिव्यता।
कृष्ण के जीवन में मां देवकी ने जन्म दिया, लेकिन यशोदा ने पाल-पोसकर भगवान को स्नेह और संस्कार दिए। यशोदा मां की ममता ऐसी थी कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के भगवान भी उनके सामने एक नटखट बालक बन गए। नवरात्रि में मां दुर्गा की मूरत जब सजाई जाती है, तो उसमें वही करुणा और वात्सल्य छवि दिखती है जो यशोदा के चेहरे पर झलकती है।
सीता धरती की पुत्री और आदर्श स्त्री !
सीता मां ने धरती से जन्म लिया, धैर्य,
सहनशीलता और आदर्श का दीप जलाया।
सीता माता स्वयं धरती से उत्पन्न हुई थीं – एक और रूप मां भवानी का। उन्होंने जीवन में हर कठिन परीक्षा को धैर्य, त्याग और मर्यादा से पार किया। अग्नि परीक्षा से लेकर वनवास तक, सीता ने नारी शक्ति के उस रूप को दिखाया जो शांत भी है और सहनशील भी, परन्तु अपराजेय भी है। वे केवल राम की पत्नी नहीं थीं, बल्कि मां आदिशक्ति का मानवीय रूप थीं।
राधा प्रेम और भक्ति की देवी !
राधा ने प्रेम की पराकाष्ठा निभाई,
मां राधा के रूप में भी भक्ति की महिमा समाई।
राधा का नाम आते ही प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा याद आती है। कृष्ण के साथ उनका संबंध केवल लौकिक प्रेम का नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। राधा मां, भक्ति की वह मूर्ति हैं जिनकी पूजा स्वयं कृष्ण भी करते हैं। नवरात्रि में मां राधा के रूप को स्मरण करना हमें यह सिखाता है कि प्रेम में शक्ति है, और भक्ति में मुक्ति।
द्रौपदी अपमान में उठी मां दुर्गा की अग्नि!
द्रौपदी अपमान की ज्वाला में मां दुर्गा बन खड़ी हुई,
कृष्ण को पुकारा और संहारिनी शक्ति से जुड़ी हुई।
उसके भीतर भी मां की अग्नि थी,
जो अन्याय के विरुद्ध रणभूमि में उतरी थी।
महाभारत की नायिका द्रौपदी का चरित्र भी मां दुर्गा की शक्ति से ओत-प्रोत था। जब सभा में उसका चीरहरण किया गया, तो उसने कृष्ण को पुकारा, और वहीं से न्याय की लपटें उठीं। द्रौपदी ने अन्याय के विरुद्ध जिस दृढ़ता से आवाज उठाई, वह उस शक्ति की प्रतीक है जो नवरात्रि के कालरात्रि स्वरूप में पूजी जाती है – विनाशिनी और न्याय की देवी।
मां आरंभ है, जब शिशु ने आंखें खोली, मां अंत है, जब आत्मा परम में डोली।
नवरात्रि सिर्फ उत्सव नहीं, यह उस "मां" की आराधना है, जो हर युग में हर रूप में साथ है।
नवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की उस यात्रा का प्रतीक है जिसमें हम अंधकार से प्रकाश की ओर, असुरत्व से देवत्व की ओर, और अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ते हैं। नौ दिन का यह पर्व भीतर छुपी मां को जागृत करने का अवसर है।