मधुबनी की पवित्र भूमि पर गुरुवार का दिन केवल पंचायती राज का उत्सव नहीं था, बल्कि वह क्षण भी था जब पूरा बिहार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवाज़ में राष्ट्र की वेदना को महसूस कर रहा था।
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर मधुबनी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मन मंच पर पहुंचने के बाद भी पूरी तरह प्रसन्न नहीं था। उनका चेहरा गंभीर था और वाणी में एक पीड़ा की झलक थी। उन्होंने सभा को संबोधित करने से पहले अपने दिल की उस व्यथा को साझा किया, जो हर भारतीय के हृदय में उस समय थी जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में जान गंवाने वाले उन अमूल्य नागरिकों की शहादत।
उन्होंने मंच से सभा में उपस्थित हज़ारों लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन किया, "मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूं आप जहां हैं, वहीं अपने स्थान पर बैठकर 22 अप्रैल को जिन परिवारजनों को हमने खोया है, उनको श्रद्धांजलि देने के लिए हम कुछ पल का मौन रखेंगे।"
वो क्षण पूरे मैदान में एक ऐसी शांति लेकर आया, जिसमें सिर्फ मौन नहीं था बल्कि उसमें करुणा थी, श्रद्धा थी, और एक सच्ची राष्ट्रीय एकात्मता थी। प्रधानमंत्री की आंखों में भी एक क्षण को भावनाओं की परछाईं उभरी, मानो वे स्वयं भी उन परिवारों के दुख से जुड़ गए हों जिनके प्रियजनों को आतंक की अंधी हिंसा ने हमसे छीन लिया।
इस मार्मिक श्रद्धांजलि के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सभा को संबोधित किया, पर उनके शब्दों में अब भी उस मौन की गूंज थी, जो पूरे देश को यह याद दिला गई कि भारत एक परिवार है जहां एक को चोट लगे, तो बाकी सब उसका दर्द महसूस करते हैं।
यह मधुबनी की धरती पर वह पल था, जहां लोकतंत्र के उत्सव में मातम की पीड़ा ने भी अपनी गरिमा से स्थान पाया, और जहां एक प्रधानमंत्री नहीं, एक संवेदनशील नागरिक ने देश के घावों पर नम आंखों से मरहम रखने की कोशिश की।