समुद्र शास्त्र की दृष्टि में स्त्री का स्वभाव क्या है?

विनोद कुमार झा

हमारा समाज स्त्री के अनेक रूपों से परिचित है कभी वह ममता की मूर्ति बन जाती है, तो कभी शक्ति का स्वरूप। स्त्री की सुंदरता केवल उसके बाह्य रूप में नहीं, बल्कि उसके स्वभाव, विचार, सेवा, संस्कार और व्यवहार में भी छिपी होती है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक अनेक ग्रंथों और विद्वानों ने स्त्री के चरित्र और स्वभाव का विश्लेषण किया है। इन्हीं में एक अत्यंत रोचक और रहस्यमयी ग्रंथ है समुद्र शास्त्र, जो न केवल शरीर की आकृति से व्यक्ति के स्वभाव और भाग्य को बताने का दावा करता है, बल्कि स्त्री के बारे में इसमें अत्यंत सूक्ष्म और व्यावहारिक बातें कही गई हैं।

समुद्र शास्त्र की मान्यता है कि स्त्री के स्वरूप, अंग, वाणी, आचरण और स्वभाव को देखकर उसके जीवन की दिशा और भाग्य को समझा जा सकता है। यह शास्त्र स्त्रियों को कुछ प्रमुख वर्गों में विभाजित करता है—जैसे पद्मिनी, शंखिनी, हस्तिनी, चित्रिणी, और पुंश्चली। प्रत्येक वर्ग की स्त्री का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व, मनोवृत्ति और पारिवारिक प्रभाव होता है। आइए, इन प्रकारों और उनके गूढ़ स्वभावों का विस्तारपूर्वक अध्ययन करें:

1. पद्मिनी स्त्री: सौंदर्य, सुकुमारता और संस्कार की प्रतिमूर्ति : समुद्र शास्त्र में 'पद्मिनी' स्त्री को सबसे श्रेष्ठ और सौभाग्यवती माना गया है। यह स्त्री न केवल सुंदर और कोमल होती है, बल्कि उसका मन और वाणी भी अत्यंत मधुर होती है। उसकी आंखें हिरणी जैसी बड़ी और गहरी होती हैं, काया कोमल और सुगंधित, स्वर धीमा और सम्मोहक।

पद्मिनी स्त्री के लक्षणों में शंख जैसी गर्दन, गुलाबी होंठ, छोटी उंगलियां, कोमल हाथ-पांव, मध्यम कद और सदा मुस्कुराता हुआ चेहरा शामिल है। इनकी चलने की चाल हंस जैसी होती है और उनके मुख से हमेशा सकारात्मकता झलकती है।

ऐसी स्त्रियां धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं, जीवन में संयम रखती हैं और अपने पति, सास-ससुर और बच्चों की सेवा को अपना धर्म समझती हैं। यह स्त्री अपने पति के लिए भाग्यशाली मानी जाती है। जहां यह जाती है, वहां लक्ष्मी स्वयं आकर वास करती है।

2. शंखिनी स्त्री: आत्मकेंद्रित, कटु स्वभाव और अशांत व्यक्तित्व : शंखिनी स्त्रियां सामान्यतः लंबी होती हैं, लेकिन उनका शरीर संतुलित नहीं होता कभी अत्यधिक मोटा तो कभी अत्यधिक दुर्बल। इनकी नाक मोटी, आंखें चंचल और आवाज भारी होती है। यह स्त्रियां असंतुष्ट प्रवृत्ति की होती हैं हर समय किसी न किसी बात से असहज या क्रोधित रहती हैं।

इनकी विशेषता यह होती है कि ये केवल अपने सुख-सुविधा के बारे में सोचती हैं। पति या परिवार की चिंता इन्हें ज्यादा नहीं होती। यह भोग-विलास में लिप्त रहती हैं और सामाजिक या धार्मिक जिम्मेदारियों से दूर भागती हैं।

शंखिनी स्त्रियों की यह प्रवृत्ति केवल वैवाहिक जीवन को ही नहीं, बल्कि दोनों परिवारों मायके और ससुराल को भी हानि पहुंचाती है। इनकी कथनी और करनी के कारण गृहकलह बढ़ता है। लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में इन्हें अकेलापन, मानसिक क्लेश और पश्चाताप का सामना करना पड़ता है।

3. हस्तिनी स्त्री: भावुकता, जड़ता और पारिवारिक क्लेश की जननी : हस्तिनी स्त्रियां मोटे शरीर वाली होती हैं और उनका स्वभाव निरंतर बदलता रहता है। यह स्त्रियां बहुत संवेदनशील होती हैं, लेकिन उनकी यही भावना उन्हें आलसी, असंतुलित और नकारात्मक बना देती है। इन्हें भोजन, आराम और विलासिता प्रिय होती है। यह धार्मिक कार्यों में रुचि नहीं रखतीं और कार्य के प्रति निष्ठा भी नहीं दिखातीं।

इनके कारण घर में अक्सर वाद-विवाद और कष्ट उत्पन्न होते हैं। समुद्र शास्त्र बताता है कि ऐसी स्त्रियों के पति का भाग्योदय शादी के कई वर्षों बाद होता है, और जीवन में अनेक गर्भपात या संतान संबंधी परेशानियां आती हैं। हस्तिनी स्त्री का स्वभाव अक्सर दूसरों को परेशान करने वाला होता है, जिससे रिश्तों में खटास आ जाती है।

4. चित्रिणी स्त्री: सौंदर्य, कलाप्रेम और व्यवहार कुशलता की मिसाल : चित्रिणी स्त्री अपने नाम के अनुसार चित्र की तरह सुंदर, आकर्षक और मनोहर होती है। इनकी आंखें चमकीली, शरीर कोमल और चेहरा सौम्य होता है। ऐसी स्त्रियां सृजनात्मक और कलात्मक होती हैं। इन्हें नृत्य, संगीत, चित्रकला, श्रृंगार आदि में विशेष रुचि होती है। इनकी बुद्धि तीव्र होती है, लेकिन इन्हें अधिक मेहनत करना पसंद नहीं होता।

चित्रिणी स्त्रियां धार्मिक कार्यों में रुचि लेती हैं, लेकिन उनका झुकाव आत्म-प्रदर्शन की ओर अधिक होता है। समाज में ऐसी स्त्रियां प्रशंसा का केंद्र बनती हैं और अगर साधारण परिवार में जन्म लेती हैं तो भी अपने आकर्षण और कला के बल पर ऊँचाई तक पहुंच जाती हैं।

समुद्र शास्त्र के अनुसार इनकी आयु सामान्यतः 48 वर्षों तक होती है और ये तीन संतानें उत्पन्न करती हैं। ये पटरानी सरीखी जीवनशैली जीती हैं और उनका जीवन अनेक रंगों से भरपूर होता है।

5. पुंश्चली स्त्री: अशांत मन, अशुद्ध विचार और विवादप्रिय स्वभाव : समुद्र शास्त्र में पुंश्चली स्त्री को ऐसा रूप माना गया है जिसकी वाणी कठोर, मन चंचल और आचरण असंतुलित होता है। ऐसी स्त्रियां परिवार की मर्यादा और मान-सम्मान की परवाह नहीं करतीं। इनमें लज्जा और शील की भावना न्यूनतम होती है। ये अपने पति से अधिक दूसरों की ओर आकर्षित होती हैं, जिससे वैवाहिक जीवन में अस्थिरता आती है।

इनके माथे पर स्थित तेजस्विता मंद दिखाई देती है, हाथ की रेखाएं बिखरी हुई होती हैं और स्वभाव हमेशा दूसरों की बात काटने वाला होता है। ये स्त्रियां तर्क-वितर्क में माहिर होती हैं, लेकिन उनके बोलने के ढंग में अपमान का भाव होता है। यह समाज में सम्मान की पात्र नहीं बन पातीं और अंततः एकाकी जीवन जीती हैं।

स्त्री का स्वभाव केवल समुद्र शास्त्र नहीं, समाज भी परखता है।यद्यपि समुद्र शास्त्र अंगों और स्वभाव से स्त्री के भविष्य और गुणों का आंकलन करता है, किंतु केवल शारीरिक लक्षणों से किसी स्त्री का पूर्ण आकलन करना उचित नहीं। स्त्री का वास्तविक स्वरूप उसके विचारों, संस्कारों, व्यवहार और भावनाओं में बसता है। एक साधारण सी दिखने वाली स्त्री अपने त्याग, स्नेह और सेवा से उस परिवार को स्वर्ग बना सकती है, जिसमें वह ब्याही गई हो।

समुद्र शास्त्र का उद्देश्य स्त्री को वर्गीकृत कर आंकना नहीं, बल्कि यह बताना है कि स्त्री के विविध स्वभाव कैसे समाज और परिवार को प्रभावित करते हैं। यह ज्ञान हमें चयन करने की समझ देता है, किंतु अंतिम निर्णय सदा प्रेम, विश्वास और समझदारी से ही करना चाहिए।

स्त्री समाज की धुरी है। समुद्र शास्त्र हमें स्त्रियों के स्वभाव की एक झलक देता है, लेकिन अंततः हमें यह समझना होगा कि हर स्त्री अनूठी है। उसके भीतर एक संसार बसता है—कभी सौंदर्य, कभी संघर्ष, कभी श्रद्धा, तो कभी शक्ति का। हर स्त्री को सम्मान दें, उसकी भावनाओं को समझें, और उस पर विश्वास रखें क्योंकि वह जीवन की जननी है।

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