पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर दिया है। इस अमानवीय कृत्य ने न केवल निर्दोष नागरिकों की जान ली, बल्कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक व्यवस्था को लेकर गंभीर प्रश्न भी खड़े किए। लेकिन इस घटना के बाद भारत के लोकतंत्र की एक सशक्त तस्वीर सामने आई 'न पक्ष, न विपक्ष, सब एक साथ।' गुरुवार को सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक इसका स्पष्ट प्रमाण बनी।
संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष की विचारधाराओं में चाहे जितनी भी भिन्नता हो, लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो, जब हमारे सैनिकों और नागरिकों पर हमला हो, तब पूरा देश एकजुट हो जाता है। यही हमारे लोकतंत्र की असली ताकत है। इस बैठक में सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर में आतंकवाद की निंदा की और सरकार को हर प्रकार की कार्रवाई के लिए समर्थन देने का आश्वासन दिया। यह एकता केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता के प्रति हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जिस प्रकार बैठक में हुई चर्चाओं को सामने रखा, वह न केवल सरकार की पारदर्शिता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अब केवल शब्दों से नहीं, ठोस और निर्णायक कदमों से आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बैठक का सकारात्मक माहौल यह संदेश देता है कि अब कोई भी आतंकी घटना देश की राजनीतिक एकता को तोड़ नहीं सकती।
हालांकि, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए। उन्होंने सुरक्षा चूक पर सवाल किया और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उनका यह कहना उचित है कि जब निर्णय प्रधानमंत्री स्तर पर होते हैं, तो उनकी उपस्थिति ऐसी निर्णायक बैठकों में अनिवार्य होनी चाहिए। इससे न केवल राजनीतिक विश्वास बढ़ता है, बल्कि देश को यह भरोसा भी मिलता है कि शीर्ष नेतृत्व स्वयं हर स्थिति पर नजर रखे हुए है।
यह भी विचारणीय है कि तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद चूक कैसे हुई? यह सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए आत्ममंथन का विषय है। जब देश आतंरिक सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील दौर से गुजर रहा है, तब किसी भी प्रकार की लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
इस बैठक का निष्कर्ष जितना सकारात्मक रहा, उतना ही स्पष्ट भी भारत आतंक के खिलाफ न कभी झुका है, न झुकेगा। राजनीतिक दलों ने यह संदेश साफ कर दिया है कि जब देश की सुरक्षा की बात आएगी, तब सियासत पीछे रह जाएगी और देशहित सबसे ऊपर होगा।
आज जब सीमाओं पर चुनौतियाँ बढ़ रही हैं और आतंकी ताकतें फिर से सिर उठाने की कोशिश कर रही हैं, तब यह राजनीतिक एकता एक नजीर बन सकती है। यह बैठक एक उम्मीद की किरण है कि हमारे नेता मतभेदों से ऊपर उठकर, 'राष्ट्र सर्वोपरि' के सिद्धांत पर चलने को तैयार हैं।
देश की जनता भी यही चाहती है राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति। और यह तभी संभव है जब हम सब, बिना किसी मतभेद के, एकजुट होकर आतंकवाद और उसके समर्थकों के विरुद्ध निर्णायक रुख अपनाएं।
- सम्पादक