शिक्षित युवाओं के लिए एक श्राप बन चुकी है बेरोजगारी?

विनोद कुमार झा


आज भारत की युवा पीढ़ी दोराहे पर खड़ी है एक ओर उनके हाथों में डिग्रियों की चमक है, तो दूसरी ओर आँखों में उम्मीदों का अंधकार। क्या कभी आपने सोचा है कि जब एक पढ़ा-लिखा युवा, वर्षों की मेहनत और सपनों को लेकर नौकरी की तलाश में भटकता है, तो उसके आत्मसम्मान पर क्या बीतती है?  

बेरोजगारी सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि एक पीड़ा है, जो हर घर की चुप्पी में छिपी है। भारत जैसे विशाल और युवा देश में यह विडंबना है कि जहां एक ओर जनसंख्या में युवा सबसे बड़ी शक्ति हैं, वहीं दूसरी ओर वही युवा बेरोजगारी के दलदल में फंसे हैं। पढ़े-लिखे होने के बावजूद जब युवाओं को रोजगार नहीं मिलता, तो यह प्रश्न उठता है क्या हमारे शिक्षा प्रणाली में कहीं कोई खामी है?  

शिक्षा जो भविष्य की कुंजी होनी चाहिए, वह कहीं न कहीं नौकरी की तलाश में ठहर गई है।  हमारे विश्वविद्यालय हर वर्ष लाखों स्नातक पैदा करते हैं, लेकिन उन्हें रोजगार देने के लिए उतने अवसर मौजूद नहीं हैं? यही कारण है कि डिग्री के बावजूद युवाओं को या तो अपने क्षेत्र से समझौता करना पड़ता है या फिर काम की तलाश में हताश होकर भटकना पड़ता है।

बेरोजगारी का असली चेहरा तब सामने आता है, जब यह भूख, तनाव, अपराध और आत्महत्या जैसी घटनाओं को जन्म देती है। समाज में जब शिक्षित युवाओं की मेहनत का कोई मूल्य नहीं रह जाता, तब यही ऊर्जा या तो नकारात्मकता की ओर मुड़ती है या फिर भीतर ही भीतर एक इंसान को तोड़ देती है।

एक और गंभीर समस्या यह है कि शिक्षा और रोजगार के बीच कोई सीधा पुल नहीं है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली आज भी किताबी ज्ञान तक सीमित है। व्यावसायिक कौशल, तकनीकी योग्यता, और व्यवहारिक प्रशिक्षण की कमी आज युवाओं को बेरोजगारी के करीब धकेल रही है।

बेरोजगारी केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, यह एक सामाजिक और मानसिक संकट बन चुकी है। जिस युवा को परिवार और समाज ‘लायक’ समझता है, वही जब बेरोजगार होता है, तो उसे सबसे ज्यादा मानसिक प्रताड़ना उन्हीं लोगों से मिलती है। यह स्थिति उसे आत्म-संदेह और आत्मघात तक पहुँचा सकती है। लेकिन समाधान असंभव नहीं है जैसे: 

व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना होगा:  केवल डिग्री नहीं, बल्कि कौशल आधारित शिक्षा ही रोजगार की कुंजी बन सकती है।  

कुटीर उद्योग और स्वरोजगार को प्राथमिकता:  युवाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहन देना होगा।  

औद्योगीकरण का विस्तार : ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी उद्योग स्थापित कर रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।  शिक्षा में गुणवत्ता और प्रैक्टिकल स्किल्स पर जोर:  केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि ऐसी शिक्षा जो जीवन के लिए उपयोगी हो।

युवाओं को यह समझना होगा कि सफलता केवल सरकारी नौकरी में नहीं है। आज स्टार्टअप, फ्रीलांसिंग, डिजिटल मार्केटिंग, कृषि-प्रौद्योगिकी, और अन्य कई क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं। आवश्यकता है तो केवल दिशा और समर्थन की। आज हमें युवाओं को प्रेरित करने की जरूरत है कि वे हार न मानें, लड़ें, आगे बढ़ें और खुद के लिए रास्ता बनाएं।  बेरोजगारी कोई अंत नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि बदलाव अब अनिवार्य है शिक्षा में, सोच में, और नीतियों में।


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