सामाजिक सौहार्द की नींव हिलाती नीतियाँ और दंगों की राजनीति

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हालिया सांप्रदायिक हिंसा और उसके बाद हुआ सैकड़ों लोगों का पलायन देश के सामाजिक ताने-बाने पर एक गहरी चोट है। वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उपजे असंतोष ने जिस तरह हिंसक रूप लिया, वह केवल कानून और व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए भावनाओं से खिलवाड़ का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

जब किसी समुदाय को यह डर सताने लगे कि वह अपने ही देश, अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है, तब लोकतंत्र की आत्मा कराह उठती है। मुर्शिदाबाद से नावों के सहारे भागते परिवार, मालदा के स्कूलों में शरण लिए शरणार्थी, यह दृश्य उस भारत की कल्पना से परे है जो समानता और सांप्रदायिक सौहार्द का सपना देखता है। प्रशासन का दावा है कि सभी राहत कार्य तेजी से किए जा रहे हैं, पर सवाल यह है कि हालात को इस मोड़ तक क्यों आने दिया गया?

वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उपजे भ्रम और आक्रोश को समय रहते संवेदनशीलता से नहीं संभाला गया। इसने कट्टरपंथी ताकतों को उभारने का मौका दिया। परिणामस्वरूप, एक ओर निर्दोषों के घर जलाए गए, तो दूसरी ओर राजनीतिक दलों ने इसे अपने-अपने एजेंडे के लिए भुनाना शुरू कर दिया। कहीं तुष्टीकरण के आरोप लगे, तो कहीं धार्मिक भावना भड़काने के आरोप। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि हमारे राजनीतिक विमर्श में संवेदना और समझ की कितनी कमी है।

कुछ नेताओं द्वारा दिए गए बयान, जिसमें दलित हिंदुओं की हत्या का आरोप लगाया गया, स्थिति को और तनावपूर्ण बना सकते हैं। वहीं, झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री का यह कहना कि उनके राज्य में यह कानून लागू नहीं होगा, यह बताता है कि राज्यों के बीच भी इस मुद्दे पर समन्वय की कमी है। इस समय ज़रूरत थी कि सभी दल मिलकर शांति बहाली की दिशा में काम करते, परंतु विपरीत राजनीति ने हालात को और उलझा दिया। कांग्रेस द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग एक सकारात्मक पहल है, पर इसे धरातल पर लाना और उसमें सभी पक्षों की सहभागिता सुनिश्चित करना भी जरूरी है। ऐसे समय में जब देश का एक हिस्सा सांप्रदायिक विभाजन की आग में झुलस रहा है, तब सत्ताधारी और विपक्ष दोनों को ज़िम्मेदारी से काम लेना चाहिए।

वक्फ कानून का मसला चाहे जो भी हो, उसकी समीक्षा और संवाद के बिना अगर कोई फैसला थोपने की कोशिश की जाएगी, तो उसका असर सामाजिक शांति पर पड़ेगा ही। कानून, चाहे किसी भी समुदाय से जुड़ा हो, उसका उद्देश्य विभाजन नहीं, एकता और न्याय होना चाहिए। समाज को चाहिए कि वह अफवाहों और नफरत के सौदागरों से सावधान रहे। मीडिया की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, वह भड़काऊ रिपोर्टिंग से बचते हुए शांति और समझदारी का माहौल बनाए। यह समय है कि देश, धर्म और राजनीति के बीच एक मानवीय पुल बनाया जाए, जिसमें सबसे ऊपर उस आम नागरिक की सुरक्षा हो, जो हर हिंसा में सबसे पहले शिकार बनता है। मुर्शिदाबाद की आग केवल बंगाल की समस्या नहीं है, यह पूरे देश के लिए चेतावनी है अगर हम अब भी नहीं जागे, तो कल यह आग कहीं और भड़क सकती है।

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