विनोद कुमार झा
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल एक उत्सव नहीं होता, वह जीवन के किसी गहरे भाव, परंपरा और प्रकृति के साथ हमारे संबंधों का प्रतीक होता है। इसी कड़ी में मिथिला का एक अनुपम पर्व है जूड़ शीतल। यह पर्व न केवल ऋतु परिवर्तन का संदेश देता है, बल्कि पारिवारिक सौहार्द, स्नेह और सांस्कृतिक एकता का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
जूड़ शीतल पर्व बैसाख मास की प्रथम तिथि यानी मेष संक्रांति के अगले दिन मनाया जाता है। ‘जूड़’ शब्द का अर्थ होता है ‘ठंडक’ और ‘शीतल’ का अर्थ भी ठंडा या शीतलता से भरपूर। यह पर्व गर्मी की शुरुआत में शीतलता लाने की कामना और प्रकृति के साथ तालमेल का प्रतीक है।
इस पर्व की शुरुआत होती है चैत्र महीने के आखिरी दिन** (चैत्र संक्रांति) से। उस दिन घर की साफ-सफाई होती है, विशेष रूप से रसोईघर की। चूल्हा या गैस को धोकर पवित्र किया जाता है। फिर उस दिन ही खास व्यंजन बनाए जाते हैं जैसे कि दलपूड़ी, बड़ी भात बेसन की पूड़ी, कद्दू की सब्ज़ी, अचार, दही, और भात (चावल)। इन व्यंजनों को ठंडा कर अगले दिन (जूड़ शीतल के दिन) खाया जाता है, जिससे यह पर्व ‘ठंडा भोजन’ खाने के लिए भी प्रसिद्ध है।
जूड़ शीतल के दिन सुबह-सुबह घर के बुज़ुर्ग सदस्य **घर के सभी सदस्यों के सिर पर आम के पत्तों से जल छिड़कते हैं। इसे ‘शीतल जल’ कहा जाता है। यह परंपरा शीतलता, ताजगी और मंगलकामना की प्रतीक मानी जाती है। फिर सब लोग मिलकर वह शीतल भोजन करते हैं, जो एक दिन पूर्व बनाया गया था।
यह पर्व पारिवारिक स्नेह को प्रगाढ़ करने वाला है। माता-पिता, भाई-बहन, नाते-रिश्तेदारों में प्रेम, एकजुटता और आदर की भावना को यह पर्व मजबूत करता है। इस दिन विशेष रूप से माताएं अपने बच्चों को दीर्घायु और सुखद जीवन का आशीर्वाद देती हैं। खेत-खलिहान, पेड़-पौधे, घर के दरवाज़े – सभी पर जल छिड़क कर उन्हें भी प्रकृति के अंग मानकर सम्मानित किया जाता है।
जूड़ शीतल प्रकृति के साथ तादात्म्य का पर्व है। जल, वायु, अन्न और अग्नि इन पंचतत्वों को संतुलित करने की भावना इस पर्व में निहित है। जब गर्मी शुरू होती है, तब यह पर्व शीतलता और संतुलन की ओर लौटने का आह्वान करता है।
मिथिला में यह पर्व नव वर्ष के आरंभ का प्रतीक भी होता है। यह दिन नवीन सोच, शुद्ध विचार और सात्विक जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा देता है।
जूड़ शीतल एक ऐसा पर्व है जो हमारी सांस्कृतिक परंपरा, पारिवारिक मूल्य और प्रकृति के प्रति श्रद्धा को एक सूत्र में पिरोता है। यह केवल शीतल जल और ठंडे भोजन का उत्सव नहीं, बल्कि प्रेम, सद्भावना और जीवन की सरलता का उत्सव है। मिथिला की यह अनुपम धरोहर आज भी अपनी मिठास और सादगी से लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखती है।