अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस विशेष : धरती की पुकार, अब भी न जागे तो देर हो जाएगी

विनोद कुमार झा

22 अप्रैल को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है एक पुकार है उस धरती की, जिसने हमें जीवन दिया, पर अब स्वयं जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। यह दिन केवल पर्यावरण प्रेमियों का उत्सव नहीं, बल्कि पूरी मानवता के आत्ममंथन का क्षण है। जब आसमान धुएँ से ढँक जाए, नदियाँ जहर घोलने लगें, और हवा साँसों की दुश्मन बन जाए तब समझिए कि बदलाव की घड़ी आ चुकी है। आज का दिन हमें याद दिलाता है कि हम धरती के मालिक नहीं, उसके रक्षक हैं। और रक्षक का धर्म है संवेदना, समझदारी और संकल्प। आइए, इस पृथ्वी दिवस को एक नई शुरुआत बनाएं धरती से प्रेम जताने की, उसे सहेजने की और भावी पीढ़ियों को एक सुंदर भविष्य सौंपने की।

धरती संकट में है यह चेतावनी है, अवसर नहीं : जलवायु परिवर्तन, बढ़ता तापमान, बर्फबारी में असमानता, चक्रवातों और भूकंपों की बढ़ती आवृत्ति, वनों की कटाई, प्रदूषित नदियाँ, दमघोंटू हवा इन तमाम संकेतों को अब अनदेखा करना आत्मघाती होगा। हमारी पृथ्वी हमसे कुछ नहीं मांगती, सिर्फ जिम्मेदारी और संवेदना की अपेक्षा रखती है।

2025 में पृथ्वी दिवस की वैश्विक थीम है प्लैनेट वर्सेस प्लास्टिक्स। प्लास्टिक जिसे हमने सुविधा समझकर अपनाया, आज वही पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है। समुद्र में तैरती टनों प्लास्टिक, पेट में जाकर मरते समुद्री जीव, खेतों की उर्वरता पर पड़ता असर और हमारे शरीर में पहुँचता माइक्रोप्लास्टिक यह सब मिलकर एक भयावह भविष्य की नींव रख रहे हैं।

पृथ्वी को बचाने की जिम्मेदारी किसी एक विभाग, संस्था या सरकार की नहीं है। यह हम सबकी साझा जिम्मेदारी है चाहे हम किसान हों या विद्यार्थी, उद्योगपति हों या गृहिणी। यदि आज हर नागरिक यह न ठाने कि “मैं बदलाव की शुरुआत अपने घर से करूंगा”, तो आने वाले दशकों में हमारे बच्चे स्वच्छ वायु और शुद्ध जल के लिए तरसेंगे।

क्या करें? – छोटे कदम, बड़ा असर 

प्लास्टिक का प्रयोग कम करें : थैले, बोतल, पैकिंग आदि में वैकल्पिक उपाय अपनाएँ।  

 पेड़ लगाएँ, हरियाली बढ़ाएँ : प्रत्येक नागरिक साल में कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाए।  

 जल और बिजली की बचत करें : अनावश्यक बहाव और जलाऊ प्रवृत्तियों से बचें।  

 स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता दें : यह न केवल पर्यावरण हितैषी है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी है।  

 प्रकृति को उपभोग नहीं, सहयोग का माध्यम मानें: सोच बदलनी होगी।

आज जरूरत है ठोस पर्यावरणीय नीतियों की, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरत है जनचेतना की। कानून तभी प्रभावी होते हैं जब समाज जागरूक हो। पाठ्यक्रमों में पर्यावरणीय शिक्षा, पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान, युवाओं में 'हरित स्वयंसेवक' जैसी पहलें इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। हमारी सांस्कृतिक चेतना में धरती केवल भूखंड नहीं, “माता ” है। वेदों में पृथ्वी से क्षमा मांगने की परंपरा रही है। किसान खेत जोतने से पहले धरती से क्षमा मांगता है। यह भाव जब फिर से हमारी जीवनशैली में लौटेगा, तभी संतुलन लौटेगा।

धरती आज मौन नहीं, मुखर होकर हमें पुकार रही है। उसके घावों को नज़रअंदाज़ करना अब संभव नहीं। पृथ्वी दिवस हमें हर साल यह स्मरण कराता है कि हमने इस धरा से बहुत कुछ लिया है, अब लौटाने का वक्त है।  इस बार पृथ्वी दिवस को केवल औपचारिकता न बनाएं बल्कि अपने जीवन की दिशा बदलने का संकल्प दिवस बनाएं। क्योंकि जब हम धरती को बचाते हैं, तब दरअसल हम खुद को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचाते हैं।


Post a Comment

Previous Post Next Post