विनोद कुमार झा
अवसरों की भूमि भारत, जहाँ विकास की नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं, वहाँ न्याय और जवाबदेही भी नए मुकाम पर पहुँच रही है। हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी, इसी दिशा में एक निर्णायक और साहसिक कदम है। यह गिरफ्तारी केवल एक आरोपी के खिलाफ कार्रवाई भर नहीं है, बल्कि यह उस समर्पण और कूटनीतिक सफलता का प्रतीक है जो भारत की एजेंसियों और सरकार ने वर्षों की मेहनत और संकल्प से प्राप्त की है।
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में 14 हजार करोड़ की धोखाधड़ी के आरोपी चोकसी ने जब 2018 में देश छोड़ा था, तब से लेकर अब तक भारत की सीबीआई और ईडी उसके खिलाफ लगातार कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। इंटरपोल द्वारा रेड नोटिस हटाए जाने के बावजूद भारत की एजेंसियों ने प्रत्यर्पण के प्रयास नहीं छोड़े, और अंततः यह सफलता हाथ लगी। इस गिरफ्तारी के पीछे भारत की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कानून के शासन में आस्था दिखाई देती है। नरेंद्र मोदी सरकार की कूटनीति, जिसने नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक भगोड़ों के खिलाफ भी सख्त रवैया अपनाया, अब मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी के रूप में एक और मील का पत्थर जोड़ चुकी है।
हालाँकि अभी भी कुछ पेचीदगियाँ शेष हैं। चोकसी की बेल्जियम की नागरिकता और संभावित चिकित्सीय आधार पर जमानत की याचिका इस प्रक्रिया को लंबा कर सकती है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि भारत अब ऐसे मामलों में लाचार नहीं है। हमारी न्यायिक प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की मजबूती अब यह सुनिश्चित कर रही है कि कोई अपराधी कानून से ऊपर नहीं। यह वक्त है जब चोकसी जैसे आर्थिक अपराधियों को यह स्पष्ट संदेश जाए कि विदेश भाग जाना अब बचाव नहीं, केवल विलंब है। भारत अब आर्थिक न्याय की मांग को वैश्विक मंचों पर भी दृढ़ता से रख रहा है।
जनता को भी यह जानना आवश्यक है कि उनके पैसों के साथ धोखा करने वालों को सजा मिल रही है। यह भरोसा न्यायपालिका और शासन प्रणाली दोनों के प्रति विश्वास को सुदृढ़ करता है। अंततः, मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी केवल एक व्यक्ति की कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि समस्त राष्ट्र की उस पुकार का उत्तर है जहाँ हर अपराधी से हिसाब लिया जाएगा, चाहे वह कितने भी ताकतवर क्यों न हो। अब समय है जब कर्मों का फल भुगतने का वक्त आ चुका है।