विनोद कुमार झा
भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा द्वारा वक्फ बोर्डों को लेकर दिए गए ताजा बयान ने एक बार फिर इस संवेदनशील विषय को सार्वजनिक विमर्श में केंद्र में ला दिया है। नड्डा ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार की मंशा वक्फ बोर्डों पर नियंत्रण स्थापित करने की नहीं है, बल्कि उद्देश्य यह है कि उनकी संपत्तियों का विधिसम्मत और पारदर्शी ढंग से प्रबंधन हो, जिससे मुस्लिम समुदाय को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में लाभ मिल सके।
यह बयान ऐसे समय आया है जब वक्फ अधिनियम को लेकर भ्रम और चिंता का माहौल बना हुआ है। देश की बहुसांस्कृतिक संरचना में वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिनका उद्देश्य मुस्लिम समाज की भलाई के लिए धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों का संरक्षण और उपयोग सुनिश्चित करना है। हालांकि, समय-समय पर वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप सामने आते रहे हैं। ऐसे में सरकार द्वारा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के प्रयासों को सराहा जाना चाहिए। तुर्किये और अन्य मुस्लिम देशों का उदाहरण देकर नड्डा ने यह संकेत दिया कि भारत इनसे भिन्न रास्ता अपना रहा है। वहां की सरकारों ने वक्फ संपत्तियों को सीधे अपने नियंत्रण में ले लिया है, जबकि भारत जैसे लोकतांत्रिक और विविधता वाले देश में यह जरूरी है कि किसी भी धार्मिक संस्था के कार्यकलापों पर निगरानी कानून और संविधान के दायरे में रहकर हो, न कि राजनीतिक मंशा से प्रेरित होकर।
इस संदर्भ में सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग वास्तविक ज़रूरतमंदों के हित में हो, न कि किसी विशेष वर्ग या व्यक्ति के लाभ के लिए। पारदर्शिता, जवाबदेही और जनहित को प्राथमिकता देते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वक्फ जैसी संस्थाएं अपने मूल उद्देश्य से न भटकें। भाजपा के स्थापना दिवस पर नड्डा का यह संदेश एक सकारात्मक पहल कहा जा सकता है, बशर्ते यह कथनों तक सीमित न रह जाए, बल्कि इसके अनुरूप नीतिगत एवं व्यवहारिक कदम भी उठाए जाएं। वक्फ संपत्तियों की निगरानी में संतुलन और न्यायप्रिय दृष्टिकोण ही न केवल मुस्लिम समुदाय का विश्वास बनाएगा, बल्कि एक समावेशी भारत की भावना को भी मजबूत करेगा।