आतंक के विरुद्ध वैश्विक एकजुटता का समय


पहलगाम की वादियों में गूंजती आतंक की गूंज ने पूरे भारतवर्ष को भीतर तक झकझोर दिया है। इस निर्मम आतंकी हमले में निर्दोष नागरिकों का लहू बहा और देश एक बार फिर आतंकवाद के नासूर से रूबरू हुआ। जब भी इस प्रकार की क्रूर घटनाएं होती हैं, केवल जान-माल की हानि नहीं होती, बल्कि पूरे समाज के भीतर एक गहरी असुरक्षा की भावना घर कर जाती है।

भारत ने इस हमले को लेकर पाकिस्तान के प्रति स्पष्ट और सख्त रुख अपनाया है, जो कि स्वाभाविक भी है। वर्षों से सीमापार से संचालित होने वाले आतंकवादी नेटवर्कों ने भारत की शांति और संप्रभुता को चुनौती दी है। अब इस सच्चाई को भारत के पुराने मित्र रूस ने भी न केवल स्वीकार किया है, बल्कि उसके खिलाफ ठोस कदम भी उठाया है। रूस द्वारा अपने नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा से रोकना, केवल एक कूटनीतिक चेतावनी नहीं है, यह उस वैश्विक जागरूकता और समर्थन का संकेत है जो आतंकवाद के विरुद्ध भारत के संघर्ष में आवश्यक है।

रूसी दूतावास की एडवाइजरी में जिस प्रकार से भारत-पाक तनाव और भड़काऊ बयानों का उल्लेख किया गया है, वह एक सटीक अवलोकन है। जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन पर पल रहे आतंक के ढांचे को समाप्त नहीं करता, तब तक न केवल भारत बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में बनी रहेगी। रूस का यह रुख बताता है कि अब केवल ‘आतंकवाद के खिलाफ कड़े बयान’ देने से काम नहीं चलेगा, बल्कि ठोस, व्यावहारिक और साहसी कदम उठाने होंगे।

इस समय भारत को न केवल अपने भीतर की एकजुटता को मजबूत करने की जरूरत है, बल्कि वैश्विक समुदाय से भी अपील करनी होगी कि वह आतंकवाद को धर्म, राजनीति या रणनीति के चश्मे से न देखे। निर्दोष लोगों की हत्या किसी भी सूरत में न्यायोचित नहीं हो सकती और जो देश ऐसे हमलों के दोषियों को पनाह देते हैं, उन्हें भी उतना ही दोषी माना जाना चाहिए।

रूस की पहल इस बात का संकेत है कि अब दुनिया धीरे-धीरे यह समझने लगी है कि आतंक केवल किसी एक देश की समस्या नहीं है, यह मानवता के विरुद्ध एक संगठित अपराध है। यही समय है जब अन्य मित्र राष्ट्र जैसे अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी और संयुक्त राष्ट्र संघ को भी ऐसी ही स्पष्ट चेतावनियाँ जारी करनी चाहिए, ताकि पाकिस्तान और वहाँ सक्रिय आतंकवादी संगठनों पर वैश्विक दबाव और भी अधिक बढ़े।

भारत के लिए यह समय भावनात्मक रूप से कठिन जरूर है, लेकिन कूटनीतिक रूप से निर्णायक भी है। यह घटना एक बार फिर बताती है कि जब तक आतंक के खिलाफ स्पष्ट नीति, वैश्विक प्रतिबंध और सामूहिक दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी, तब तक निर्दोषों का खून बहता रहेगा।

हमें शोक की लहर से ऊपर उठकर, एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बलिदान को व्यर्थ न जाने दिया जाए। और भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके हर नागरिक की सुरक्षा, चाहे वह पहलगाम में हो या पठानकोट में, सर्वोपरि है। दुनिया को यह संदेश देना होगा अब बहुत हो चुका।

- संपादक

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