प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रोजगार मेले के 15वें संस्करण में दिए गए संबोधन ने एक बार फिर भारत के आर्थिक परिदृश्य की संभावनाओं और जमीनी हकीकत के बीच के फासले पर सोचने को मजबूर किया है। देश भर में 51,000 से अधिक युवाओं को नियुक्ति पत्र सौंपना निस्संदेह एक सकारात्मक कदम है, और सरकार की सक्रियता को रेखांकित करता है। परंतु इस पहल के बीच कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े होते हैं, जिन पर गंभीर विमर्श आवश्यक है।
यह तथ्य कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बताया है, राष्ट्रीय गौरव का विषय है। लेकिन सवाल यह है कि यह विकास क्या समाज के हर तबके तक समान रूप से पहुँच रहा है? क्या भारत के छोटे शहरों, गाँवों और सीमांत समुदायों के युवाओं को भी उसी स्तर पर अवसर मिल रहे हैं जैसा कि महानगरों के युवाओं को? प्रधानमंत्री ने ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे अभियानों की चर्चा करते हुए युवाओं के लिए एक "खुले मंच" का उल्लेख किया। निस्संदेह, इन अभियानों ने भारत में स्टार्टअप संस्कृति और तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहित किया है, लेकिन रोजगार सृजन की वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आँकड़े बताते हैं कि रोजगार दर में सुधार हुआ है, लेकिन अप्राकृतिक प्रकार के अस्थायी रोजगार और गिग-इकोनॉमी के बढ़ते वर्चस्व ने पारंपरिक स्थायित्व और सुरक्षा वाली नौकरियों को कम कर दिया है।
90 लाख स्वयं सहायता समूहों में 10 करोड़ महिलाओं की भागीदारी एक क्रांतिकारी उपलब्धि है, परंतु यह भी ध्यान देने योग्य है कि इनमें से अधिकांश महिलाएं सूक्ष्म स्तर के कार्यों में लगी हैं, जहां उनकी आय सीमित है और स्थायित्व अनिश्चित। महिलाओं को बड़ी अर्थव्यवस्था से जोड़ने के लिए बड़े और संगठित कदम अभी भी अपेक्षित हैं। प्रधानमंत्री द्वारा मुंबई में प्रस्तावित विश्व दृश्य-श्रव्य एवं मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स) का जिक्र भविष्य की ओर इशारा करता है। मीडिया, गेमिंग, एआई और इमर्सिव मीडिया के क्षेत्र में भारत को वैश्विक मंच पर खड़ा करने की महत्वाकांक्षा प्रेरणादायी है। परंतु यह भी देखा जाना चाहिए कि इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता और निवेश की आवश्यकता सामान्य से अधिक है, और इसके लिए ग्रामीण तथा पिछड़े इलाकों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण का बुनियादी ढाँचा मजबूत करना अनिवार्य है।
‘मेक इन इंडिया ’ और नव घोषित ‘ मैन्युफैक्चरिंग मिशन’ निश्चित रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) को गति देंगे, जिससे लाखों रोजगार सृजित हो सकते हैं। फिर भी, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को अभी वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मानकों तक लाने के लिए गुणवत्ता, तकनीकी उन्नयन और निर्यात नीति में ठोस सुधारों की आवश्यकता है। आज भी हमारे एमएसएमई क्षेत्र के अधिकतर उद्यम वित्तीय सहायता, तकनीकी ज्ञान और वैश्विक बाजारों तक पहुँच से वंचित हैं। सवाल उठता है कि क्या सरकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक ज़रूरतमंद युवाओं तक पहुँच रहा है? क्या बेरोजगारी की सबसे बड़ी मार झेल रहे राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ में भी ये अवसर जमीन पर उतर रहे हैं? क्या रोजगार मेले केवल सरकारी घोषणाओं के प्रतीक भर बनकर रह जाएंगे, या इनसे दीर्घकालिक और सतत विकास की बुनियाद रखी जाएगी?
प्रधानमंत्री की इस स्वीकारोक्ति में गहरी सच्चाई है कि "जब युवा राष्ट्र निर्माण में सक्रिय होते हैं, तो देश तेज़ी से बढ़ता है"। परंतु युवा ऊर्जा को दिशा देने के लिए सुलभ शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण , आर्थिक सहायता, और सुरक्षित कार्य वातावरण का समन्वित ढांचा तैयार करना होगा। केवल नियुक्ति पत्र वितरित करना पर्याप्त नहीं; उनके पीछे एक व्यापक रोजगार नीति की आवश्यकता है जो गुणवत्ता, समावेशन और स्थायित्व पर केंद्रित हो।
आखिर में, भारत के आर्थिक विकास की गति प्रसन्नता का विषय है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब इसका लाभ प्रत्येक भारतीय नागरिक तक पहुँचे। रोजगार और स्वरोजगार के अवसर केवल आंकड़े न बनें, बल्कि युवाओं के जीवन में वास्तविक बदलाव का माध्यम बनें यही इस दशक की सबसे बड़ी चुनौती और सबसे सुनहरा अवसर है।
- संपादक