आतंक के खिलाफ वैश्विक एकजुटता और भारत की दृढ़ता

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले ने एक बार फिर न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व को झकझोर कर रख दिया है। आतंकवाद ने इस बार निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया उन मासूम लोगों को, जो शांति और प्राकृतिक सौंदर्य की तलाश में कश्मीर की वादियों में पहुंचे थे। इस हमले में 26 निर्दोष जानें गईं, जिनका दोष मात्र इतना था कि वे जीवन का आनंद लेने वहां आए थे।

इस वीभत्स घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सऊदी अरब की अपनी आधिकारिक यात्रा को तत्काल स्थगित कर स्वदेश लौटना, न केवल एक जिम्मेदार नेतृत्व का परिचायक है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि देश की आंतरिक सुरक्षा और अपने नागरिकों की सुरक्षा उनके लिए सर्वोपरि है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भारत आतंकवाद के किसी भी रूप से समझौता नहीं करेगा।

अमेरिका, रूस, इज़राइल, इटली जैसे शक्तिशाली देशों द्वारा इस हमले की स्पष्ट निंदा और भारत के प्रति उनकी एकजुटता ने वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ एक साझा संकल्प को बल दिया है। यह घटना भारत की एक आंतरिक पीड़ा नहीं रही, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय चिंता बन गई है, जिसमें सभ्य समाजों की सहभागिता अनिवार्य हो गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे नेताओं का साथ आना इस बात का प्रतीक है कि दुनिया अब आतंक के खिलाफ एकमत होती जा रही है।

आज जब आतंकवादियों की मंशा भारत को डरा देने और अस्थिर करने की है, तब प्रधानमंत्री मोदी का दिल्ली लौटकर स्थिति का स्वयं अवलोकन करना और आगे की रणनीति तय करना, यह दर्शाता है कि भारत अब प्रतिक्रिया नहीं देगा, बल्कि निर्णायक कार्रवाई करेगा। इससे न केवल देशवासियों का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि यह एक संदेश भी जाएगा कि भारत की सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। यह समय केवल शोक मनाने का नहीं है, बल्कि आत्ममंथन और संकल्प लेने का है। हमें पूछना होगा कि आखिर कब तक निर्दोष नागरिक आतंक की भेंट चढ़ते रहेंगे? कश्मीर, जो कभी 'धरती का स्वर्ग' कहा जाता था, आज बार-बार ऐसे काले अध्यायों का गवाह क्यों बन रहा है? जवाब कठिन हैं, लेकिन इन्हें टालना अब और संभव नहीं।

भारत को अपनी कूटनीति, सुरक्षा रणनीति और आंतरिक खुफिया तंत्र को और अधिक मजबूत बनाना होगा। इसके साथ ही, वैश्विक मंचों पर आतंक के संरक्षकों को बेनकाब करना होगा चाहे वे सीमा पार हों या उनके भीतर छिपे कोई तत्व।

इस हमले में मारे गए लोगों के परिजनों के लिए पूरा देश शोकाकुल है। लेकिन इसी शोक से हमें वह शक्ति भी लेनी होगी, जिससे हम आतंक को जड़ से उखाड़ सकें। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, हर नागरिक की साझा लड़ाई है।आज, जब विश्व हमारे साथ खड़ा है, तब हमें भी और अधिक एकजुटता, सतर्कता और संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा। आतंक की इस अंधी रात को परास्त करने का वक्त आ गया है।"भारत डरेगा नहीं जवाब देगा। और यह जवाब न केवल बंदूक से होगा, बल्कि दृढ़ इच्छा-शक्ति, वैश्विक सहयोग और एकजुट नागरिक चेतना से होगा।"

- संपादक


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