विनोद कुमार झा
जब हम श्रीराम का स्मरण करते हैं, तो हमारी आंखों के सामने एक सौम्य, गंभीर और संयमी पुरुषोत्तम की छवि उभरती है वाणी में मधुरता, व्यवहार में विनम्रता और दृष्टि में करुणा। वे शांति के प्रतीक हैं, क्षमा के अवतार हैं। लेकिन क्या यह मान लेना उचित है कि उन्हें कभी क्रोध नहीं आया? क्या मर्यादा पुरुषोत्तम होने का अर्थ यह है कि वे भावनाओं से रहित थे?
बिलकुल नहीं। श्रीराम, यद्यपि अत्यंत शांत स्वभाव के थे, परंतु वे एक क्षत्रिय भी थे और जब धर्म पर संकट आया, जब अधर्म सिर उठाने लगा, तब वही शांत शिला प्रचंड ज्वाला में बदल गई। उनका क्रोध कभी स्वार्थ से नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा हेतु प्रकट होता था। आइए जानें उन अद्भुत और कुछ दुर्लभ क्षणों के बारे में, जब राम का क्रोध धरती से आकाश तक गूंज उठा।
बालक राम की लीला और काकभुशुण्डि का भय
बालक श्रीराम जब वन में रोटी खा रहे थे, तब एक कौआ वह रोटी छीनकर उड़ गया। वह कोई साधारण पक्षी नहीं, स्वयं काकभुशुण्डि थे। बालक राम का क्रोध इतना तीव्र था कि उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया और वह हाथ तीनों लोकों में व्याप्त हो गया। काकभुशुण्डि भयभीत हो गए, और तब जाकर उन्होंने प्रभु की शरण ली। यह क्रोध नहीं, ईश्वर की लीला थी, जो अहंकार का हरण करती है।
परशुराम संवाद: विनम्रता से क्रोध तक
स्वयंवर में शिवधनुष भंग के बाद परशुराम जब क्रुद्ध होकर दरबार में आए, तो श्रीराम ने उन्हें सम्मानपूर्वक शांत किया। लेकिन जब परशुराम ने चुनौती दी कि वे वैष्णव धनुष पर बाण चढ़ाएं, तब श्रीराम बोले, अब बताइए, इस बाण से आपके पुण्यलोकों को नष्ट करूं, या आपकी गति को? यह क्रोध धर्मरक्षक की चेतावनी थी जिसमें विनम्रता के पीछे छिपा हुआ तेज दिखता है।
ताड़का-वध: स्त्री नहीं, राक्षसी है यह
जब श्रीराम ताड़का का वध करने से हिचकिचा रहे थे, तो विश्वामित्र ने कहा कि धर्म रक्षक की दृष्टि में राक्षसी कोई दया का पात्र नहीं। यह सुनकर राम ने एक ही बाण से उसका अंत कर दिया। यह पहला अवसर था जब राम ने धर्म की रक्षा हेतु क्रोध के साथ अस्त्र उठाया।
खर-दूषण का नाश: तीन घंटे में विनाश
शूर्पणखा का अपमान करने पर जब खर-दूषण सेना लेकर आए, तो राम ने अकेले ही तीन घंटे में 14 हजार राक्षसों का संहार कर दिया। यह क्रोध था उस अपमान का, जो नारी मर्यादा और धर्म पर किया गया।
जब समुद्र ने ललकारा पुरुषोत्तम को

जयंत का दंड: नारी अपमान पर भड़का क्रोध
इंद्रपुत्र जयंत जब माता सीता का निरादर करता है, तो राम उसका पीछा करते हुए ब्रह्मास्त्र चला देते हैं। जयंत क्षमा मांगता है, लेकिन राम उसका एक नेत्र भेद कर ही शांत होते हैं। यह क्रोध एक स्त्री की मर्यादा की रक्षा का प्रतीक था।
बाली वध और सुग्रीव को चेतावनी
सुग्रीव के साथ छल करने वाले बाली पर श्रीराम ने प्रहार किया, लेकिन जब बाली व्यंग्य करता है, तो श्रीराम का उत्तर आग के समान होता है जो धर्म से विमुख हो, वह मृत्युदंड का पात्र होता है। और जब सुग्रीव भी अपने वचन को भूलकर विलास में डूब जाता है, तो राम लक्ष्मण को भेजते हैं और कहते हैं, बाली का वध करने वाला बाण अब भी मेरे तरकश में है।
इंद्र को भेजा गया चेतावनी बाण
जब दुर्वासा ऋषि ने भोजन हेतु कल्पवृक्ष मांगा और इंद्र ने देरी की, तो श्रीराम ने बाण भेजकर इंद्र को चेताया। भयभीत होकर इंद्र तुरंत कल्पवृक्ष लाकर भेंट करते हैं। यह क्रोध नहीं, बल्कि सम्मान का आग्रह था—जो संतों की सेवा में विलंब को सहन नहीं कर सकता।
श्रीराम का क्रोध: एक अग्नि, जो धर्म के लिए जलती है
इन सभी उदाहरणों में एक बात समान है राम का क्रोध कभी व्यक्तिगत नहीं था। वह एक क्षत्रिय का, एक धर्मपालक का, एक मर्यादा पुरुषोत्तम का क्रोध था जो तब प्रकट होता है जब अधर्म सीमा लांघता है। यही कारण है कि उन्हें क्रोध जीतने वाले कहा गया है, न कि क्रोध रहित। उनका क्रोध भी प्रेम के समान पवित्र था, जो केवल धर्म की रक्षा हेतु जन्म लेता था।