प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ नैशनल हेरल्ड मामले में चार्जशीट दाखिल करना भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक बार फिर गर्मा-गर्मी का विषय बन गया है। चार्जशीट में जिन नेताओं को आरोपी बनाया गया है, वे केवल किसी पार्टी के सदस्य नहीं, बल्कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक विरासत के ध्वजवाहक हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह कार्रवाई कानून के दायरे में निष्पक्ष रूप से हो रही है या यह सत्ता की ओर से बदले की राजनीति का उपकरण बन गई है?
कांग्रेस इस पूरे मामले को राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई बता रही है। पार्टी का कहना है कि आरोप बेबुनियाद हैं, तथ्यहीन हैं और न्यायिक प्रक्रिया का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए किया जा रहा है। दूसरी ओर, शिकायतकर्ता बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी इसे एक गंभीर वित्तीय अनियमितता और धोखाधड़ी का मामला मानते हैं, जिसमें हजारों करोड़ की संपत्तियों को अवैध तरीके से हड़पने का आरोप है। ईडी द्वारा सोनिया और राहुल गांधी से की गई लंबी पूछताछ, दिल्ली, लखनऊ और मुंबई में अचल संपत्तियों पर कार्रवाई, और अब चार्जशीट दाखिल करना दर्शाता है कि यह मामला केवल एक राजनीतिक तकरार नहीं, बल्कि गंभीर कानूनी प्रक्रियाओं के तहत चल रहा एक जाँच-पड़ताल है। फिर भी, जब उच्च-स्तरीय विपक्षी नेताओं को इस तरह के मामलों में घसीटा जाता है, तो यह लोकतांत्रिक संतुलन को प्रभावित करता है, और जनता के मन में संदेह पैदा करता है।
रॉबर्ट वाड्रा, प्रताप सिंह खाचरियावास जैसे अन्य कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ईडी की कार्रवाइयाँ भी इसी संदर्भ में देखी जा रही हैं, और इससे यह धारणा और गहरी हो रही है कि सरकार सत्ता का उपयोग विपक्ष को कमजोर करने के लिए कर रही है। यह अत्यंत आवश्यक है कि न्यायपालिका और जांच एजेंसियाँ अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ करें। यदि आरोप सही हैं, तो कानून के तहत उचित कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन यदि ये राजनीतिक प्रतिशोध की कवायद हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका सत्ता की शक्ति को संतुलित करने की होती है। यदि उस आवाज को दबाया जाएगा, तो लोकतंत्र केवल एक नाम मात्र का ढांचा बनकर रह जाएगा। अब निगाहें 25 अप्रैल की उस सुनवाई पर टिकी हैं, जहाँ अदालत चार्जशीट पर संज्ञान लेने का निर्णय लेगी। यह केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की दिशा तय करने वाला क्षण भी होगा।
सम्पादक