संचालक डाल रहे हैं अभिभावकों की जेब पर डाका

 निजी स्कूलों पर कब की जाएगी सर्जिकल स्ट्राइक 

अमीर के बच्चे से आगे बढ़ेगा इंडिया, गरीब का बच्चा खेलेगा डांडिया   

कोई भी अधिकारी अभिभावकों की सुनने को नहीं है तैयार 

पवन पाराशर

हापुड़। शिक्षा के नाम पर लूट है जितना लूट सके तो लूट, अंतकाल पछताएगा जब किस्मत जायेगी फूट। प्राइवेट स्कूल संचालकों ने मौजूदा समय में अभिभावकों की जेब पर डाका डालने के लिए अपने अलावा बुक सेलरों व ड्रेस कोड के रूप में लुटेरे खड़े किए हुए हैं। बुक सेलर कोर्स देने के लिए बच्चों के अभिभावकों से मनमाना रुपया वसूल रहे हैं। लूट के ये अड्डे स्वम स्कूलों के संचालकों ने सजाए हुए है। वह बुक सेलर को चार से पांच प्रतिशत कमीशन देते हैं शेष रकम को खुद डकारकर पानी तक नहीं पीते। ऐसा नहीं है कि अभिभावक बेचारे किसी अधिकारी के पास फरियाद लेकर नहीं जाते। वह संबन्धित अधिकारी के पास फरियाद लेकर जाते हैं तो वहाँ भी उसकी कोई सुनवाई नहीं होती। इसलिए अब गरीब का बच्चा राह तक रहा है निजी स्कूलों पर भी एक सर्जिकल स्ट्राइक होनी चाहिए ताकि इनकी मनमानी पर अंकुश लग सके।  

निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पहला नमूना 

हर साल कोर्स बदल देना इनकी फितरत में शामिल हो चुका है। एक कोर्स यदि पांच साल तक चलाया जाता है तो उसका लाभ गरीब तबके के छात्र व छात्राएँ उठा सकते हैं। कम से कम गरीब बच्चे किसी से पुराना कोर्स हासिल करके अपनी महंगी पढ़ाई को जारी रख सकते हैं। इतना ही नहीं, इनका एक नायाब फंडा यह भी है कि अभिभावकों पर दबाव बनाकर यह भी कहा जाता है कि जिस दुकान से हम कहे कोर्स व ड्रेस वहीं से खरीदना है। अब आप यह जानना चाहेंगे कि ऐसा किसलिए कहा जाता है, ऐसा इसलिए कि अभी अभिभावक की जेब पर डाका सही तरीके से नहीं डाला गया है। जिन दुकानों से कोर्स व ड्रेस खरीदने के लिए कहा जाता है वे भी इन्हीं की शह पर संचालित की गई होती हैं। निजी स्कूलों के संचालक सोने की मुर्गी खाना पसंद करते हैं उसका अंडा खाना नहीं। अगर अंडा खाने का इंतजार करेंगे तो मुर्गी को कोई दूसरा हजम कर जाएगा। इसी सोच के चलते यह एक मुर्गी के अंडे पर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते क्योंकि इनके तलाब में मगरमच्छ भी तो हैं जिनसे इन्हें विभिन्न माध्यमों से अच्छा डोनेशन मिल जाता है चाहे वह बिल्डिंग फीस हो या ट्रेवल्स।

दूसरा सबको अचंभित करने वाला नायाब फंडा

जब स्कूल संचालकों द्वारा बच्चे के अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली जा रही है उसके विपरीत अध्यापक कहते हैं कि आपका बच्चा पढ़ने में बहुत कमजोर है इसका ट्यूशन लगवाना पड़ेगा। जनाब दिमाग पर ज़ोर देने की जरूरत है जब बच्चा स्कूल की 6 घंटे की पढ़ाई में कमजोर है तो वह ट्यूशन की एक घंटे की पढ़ाई में क्या ख़ाक पढ़ पाएगा। कोई इनसे पूछने वाला नहीं है जब आपने दाखिला फीस के रूप में बच्चे के अभिभावक से हजारों रुपये ऐंठ लिए क्या उस वक्त यह जानने का प्रयास किया गया कि बच्चे का जिस कक्षा में दाखिला कराया जा रहा है वह उसके लायक है भी या नहीं। उस समय तो पैर में सोने का जूता आने के लिए लालायित होता है कहीं मामला दूसरी ओर ट्रांसफर न हो जाए। सच्चाई तो यह है कि आज देश में कुकुरमुत्तों की भांति अपना जाल फैलाए बैठे निजी स्कूलों की वजह से हमारे बच्चे शिक्षित नहीं हो पा रहे हैं। अपने पड़ोसी के बच्चे हाई प्रोफाइल लिबास में देखकर गरीब का बच्चा भी यहीं चाहता है कि वह भी सूट्बूटिड होकर स्कूल में जाए किन्तु उसके अभिभावक के पास इतना पैसा नहीं होता है। इसलिए बच्चे के अरमान आँखों के जरिए आँसू में बह जाते हैं और वह अपनी पढ़ाई छोडकर चाय की दुकान व ढाबों का काम करना शुरू कर देता। यहीं से बालश्रम का जन्म शुरू होता है। जिसे हमारी केंद्र व प्रदेश सरकार रोकने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत हैं।

प्रधानमंत्री का ओजस्वी नारा, पढ़ेगा इंडिया आगे बढ़ेगा इंडिया 

हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी ने अपना एक ओजस्वी नारा दिया पढ़ेगा इंडिया आगे बढ़ेगा इंडिया। सुविधा संपन्न और आँखों को चकाचौंध कर देने वाली बिल्डिंगें तो प्राइवेट स्कूलों के पास हैं। उनमें पढ़ाई सिर्फ संपन्न व उच्च परिवारों के बच्चे कर सकते हैं। एक गरीब व मजलूम किसान के बच्चे की क्या हैसियत कि वह उन स्कूलों की चारदीवारी को निहार भी सके। उसके अंदर बैठकर पढ़ाई करना तो वह सपनों में भी नहीं सोच सकता। ऐसी स्थिति में यह नारा तो फिट बैठ सकता है कि अमीर के बच्चे से आगे बढ़ेगा इंडिया, गरीब का बच्चा खेलेगा डांडिया। अब गरीब का बच्चा राह तक रहा है निजी स्कूलों पर भी एक सर्जिकल स्ट्राइक होनी चाहिए ताकि इनकी मनमानी पर अंकुश लग सके।

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