विनोद कुमार झा
जब युवा अपने हाथों में हुनर लेकर आत्मविश्वास से आगे बढ़ता है और न केवल अपनी दिशा बदलता है बल्कि सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र की दिशा भी तय करता है। उसकी आँखों में चमक, मन में आत्मबल और कर्म में संकल्प होता है कि असंभव को भी संभव बनाना है। आज हर राष्ट्र युवाओं को संवारने के लिए प्रयासरत है क्योंकि भविष्य में वही राष्ट्र शक्तिशाली होगा, जो आज के युवाओं को सशक्त बनाएगा।
भारत, जो विश्व का सबसे युवा देश है, एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ युवा ऊर्जा सबसे बड़ा पूँजी बन चुकी है। यदि इस ऊर्जा को सही दिशा, शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाए, तो यह न केवल आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सहायक होगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को आर्थिक महाशक्ति भी बना सकती है। इसलिए, यदि देश को सशक्त बनाना है तो युवाओं के हाथों में केवल डिग्री ही नहीं, बल्कि हुनर, अवसर और आत्मविश्वास भी देना होगा। जब प्रत्येक युवा कुशल होगा तभी भारत सशक्त बनेगा और हम कह सकेंगे कि हमने युवा शक्ति को उसकी वास्तविक दिशा दी है।
आज की जरूरत यह है कि स्कूली शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाया जाए, ताकि छात्र प्रारंभिक अवस्था से ही व्यावसायिक शिक्षा और उद्यमशीलता के मार्ग को समझ सकें, क्योंकि केवल किताबी ज्ञान वर्तमान युग में पर्याप्त नहीं है। जीवन में आगे बढ़ने, रोजगार प्राप्ति और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए व्यावहारिक कौशल का होना अत्यंत आवश्यक है। कौशल विकास की चर्चा आज केवल शिक्षा प्रणाली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय विकास की रणनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। जब युवा के पास व्यावसायिक या तकनीकी कौशल होता है, तो वह स्वयं रोजगार प्राप्त करने के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार देने में समर्थ होता है। हुनरमंद युवा स्वयं को जीवंत, ऊर्जावान और समाज के लिए उपयोगी महसूस करते हैं। ऐसे युवाओं से देश की अर्थव्यवस्था को गति, गरीबी और बेरोजगारी में कमी तथा सामाजिक बुराइयों से लड़ने में भी सहायता मिलती है।
हालांकि, भारत में कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा आज भी अकुशल है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल 2.3% कार्यबल औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है, जबकि विकसित देशों जैसे जर्मनी और जापान में यह प्रतिशत 60-80% तक पहुँच गया है। इस स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कुछ प्रमुख आंकड़े हैं: हर वर्ष भारत में लगभग 26.14 मिलियन लोग रोजगार की दौड़ में प्रवेश कर रहे हैं, कुल कार्यबल में 93% लोग अकुशल हैं; ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी 33.3% से घटकर 26.5% और शहरी क्षेत्रों में 17.8% से घटकर 15.5% रह गई है, उद्यमिता के क्षेत्र में भारत 143 देशों में 76वें स्थान पर है, और प्रति 1000 कार्यरत लोगों पर केवल 0.09 रजिस्टर्ड कंपनियाँ हैं, जो G-20 देशों में सबसे कम है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि कौशल विकास और उद्यमशीलता को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक है।
भारत सरकार ने युवाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है, जैसे- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), जिसके तहत युवाओं को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हो रहा है। स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया, जो युवाओं को अपने व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तथा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), जिसमें स्कूली स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया गया है। अमृत काल का बजट भी युवाओं को ध्यान में रखते हुए टेक्नोलॉजी, इनोवेशन, शिक्षा और डिजिटल ट्रेनिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दे रहा है। हालांकि विभिन्न योजनाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत चुनौतियों से भरी हुई है। स्कूली शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा का अभाव, ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण केंद्रों की सीमित पहुँच, डिजिटल डिवाइड, तकनीकी संसाधनों की कमी, महिलाओं की घटती भागीदारी और सामाजिक प्रतिबंध।
इन चुनौतियों के समाधान हेतु सरकार, समाज और निजी क्षेत्र को मिलकर कार्य करना होगा, जैसे कि स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना, ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट्स की शुरुआत करना, महिलाओं के लिए विशेष कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना, डिजिटल कौशल प्रशिक्षण और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का विस्तार करना तथा प्राइवेट सेक्टर की साझेदारी को बढ़ावा देना। यदि भारत का युवा वर्ग कुशल, शिक्षित और आत्मनिर्भर बनता है तो यह देश वैश्विक मंच पर मजबूती से खड़ा हो सकता है। आज कौशल विकास न केवल रोजगार का साधन है, बल्कि राष्ट्र निर्माण का आधार भी बन चुका है। इसीलिए युवा शक्ति ही देश की सबसे बड़ी ताकत है और यदि उन्हें सही दिशा में प्रशिक्षित किया जाए तो भविष्य अत्यंत स्वर्णिम होगा।