विनोद कुमार झा
जय माता दी साथियो! आज हम आपको लेकर चल रहे हैं एक ऐसे आध्यात्मिक यात्रा पर, जहाँ शक्ति और भक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है। एक ओर हैं मां सिद्धिदात्री अष्टसिद्धियों की दात्री, जिनकी कृपा से ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सृष्टि का संचालन किया और दूसरी ओर हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिनका जन्म इस दिन हुआ, जिनके जीवन से धर्म, त्याग और आदर्श की शिक्षा मिलती है। रामनवमी और नवरात्रि की यह नवमी तिथि केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि सनातन धर्म की आत्मा का उत्सव है...तो आइए, इस दिव्य अवसर पर हम जानें – मां सिद्धिदात्री की महिमा, श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा, हनुमान जी की अनन्य भक्ति, और रामराज्य की प्रेरणा इस खास लेख में।
नवरात्रि के नवें दिन मां दुर्गा के नवम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। 'सिद्धि' का अर्थ है अलौकिक शक्तियाँ और 'दात्री' का अर्थ है देने वाली। देवी सिद्धिदात्री महासिद्धि, ज्ञान और मोक्ष की प्रदायिनी हैं। इनके भक्तों को अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सृष्टि रचना की प्रक्रिया प्रारंभ हुई, तब आदिशक्ति ने स्वयं को सिद्धिदात्री रूप में प्रकट किया और भगवान शिव को भी अर्धनारीश्वर रूप प्रदान किया, जिससे उन्होंने आधे अंग में देवी की शक्ति को स्वीकार किया। सिद्धिदात्री की कृपा से ही सृष्टि में संतुलन, सृजन और विनाश की प्रक्रियाएं सुचारू रूप से संचालित होती हैं। रामनवमी त्रेतायुग में घटित उस पावन दिन की स्मृति है, जब भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के घर में श्रीराम के रूप में अवतार लिया। वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस और अनेक ग्रंथों में यह कथा विस्तार से वर्णित है।
एक अन्य कथाओं के अनुसार एक बार राजा दशरथ को संतान सुख प्राप्त नहीं था। उन्होंने ऋष्यशृंग मुनि के मार्गदर्शन में पुत्रकामेष्ठि यज्ञ कराया, जिसके फलस्वरूप अग्निदेव से उन्हें दिव्य खीर प्राप्त हुई। यह खीर उन्होंने अपनी तीनों रानियों को वितरित की, जिससे कौशल्या से श्रीराम, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
श्रीराम का जीवन सत्य, मर्यादा और धर्म का प्रतीक है। उन्होंने वनवास स्वीकार किया, अपने पिता की आज्ञा का पालन किया, रावण जैसे बलशाली राक्षस का वध कर धर्म की स्थापना की। उनका सम्पूर्ण जीवन "मर्यादा पुरुषोत्तम" का आदर्श प्रस्तुत करता है। श्रीराम की पत्नी सीता माता, पृथ्वी की पुत्री थीं जिन्हें राजा जनक ने हल जोतते समय धरती से पाया था। जब रावण ने उनका अपहरण किया, तब श्रीराम ने वानरों और राक्षसों की सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की। विजय के बाद भी, उन्होंने सीता माता की अग्निपरीक्षा ली, जो समाज की कठोरताओं और स्त्री के त्याग की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
हनुमान जी को रामभक्तों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वे पवनपुत्र, अंजनी माता के पुत्र हैं और शिव के अवतार माने जाते हैं। रामायण में वर्णित हनुमान की लंका यात्रा और संजीवनी बूटी लाने की कथा भक्ति, साहस और अद्भुत शक्ति का परिचय देती है। जब रावण ने हनुमान को अपने दरबार में अपमानित किया और उनकी पूँछ में आग लगवाई, तब हनुमान जी ने संपूर्ण लंका को जला दिया, परंतु विभीषण का घर नहीं जलाया, क्योंकि वह धर्मनिष्ठ थे। यह घटना दिखाती है कि हनुमान केवल बल नहीं, विवेक और धर्म के प्रतीक भी हैं। रामराज्य वह कल्पना है जिसमें कोई दुखी नहीं होता, कोई भूखा नहीं सोता, सभी धर्म का पालन करते हैं और राजा न्यायप्रिय होता है। यही रामराज्य आदर्श शासन व्यवस्था और समाज की रूपरेखा प्रदान करता है। रामनवमी का पर्व यह सिखाता है कि जब अधर्म बढ़ता है, तब ईश्वर स्वयं अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं। यही कारण है कि श्रीराम का जन्मोत्सव केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सनातन धर्म की आध्यात्मिक ऊर्जा का संचारक दिवस है।
रामनवमी और सिद्धिदात्री की पूजा एक साथ मनाना यह दर्शाता है कि जीवन में शक्ति (सिद्धिदात्री) और भक्ति (राम) दोनों आवश्यक हैं। शक्ति हमें आत्मबल देती है, और भक्ति हमें विनम्रता। इस नवमी को हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें, हनुमान जी जैसी निःस्वार्थ भक्ति को अपनाएं, माता सीता की तरह सहनशील और सशक्त बनें, और मां सिद्धिदात्री से सिद्धि प्राप्त कर आत्मिक विकास के पथ पर अग्रसर हों।
जय श्रीराम! जय माता सिद्धिदात्री!