जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए ताजा आतंकी हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि आतंकवाद न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि देश की आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक एकता पर भी सीधा हमला करता है। शांतिप्रिय पर्यटक स्थल पर निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया जाना न केवल अमानवीय कृत्य है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति एक खुली चुनौती भी है।
ऐसे समय में जब देश के प्रधानमंत्री विदेश में भारत की वैश्विक रणनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहे हैं, और सऊदी अरब जैसे महत्वपूर्ण साझेदारों के साथ भविष्य की संभावनाओं को आकार दे रहे हैं, उसी समय देश के भीतर की यह घटना यह भी दर्शाती है कि देश को भीतर और बाहर दोनों मोर्चों पर एक साथ सतर्क रहना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तत्परता, इस हमले पर तुरंत प्रतिक्रिया और घटना स्थल पर उपस्थिति की तत्परता दर्शाती है कि सरकार आतंकी हिंसा को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। प्रधानमंत्री द्वारा विदेश से ही गृह मंत्री से फ़ोन पर चर्चा करना और मौके पर जाने का निर्देश देना एक स्पष्ट संदेश है कि भारत आतंक के सामने कभी नहीं झुकेगा।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ पिछले कुछ समय में फिर से तेज़ हुई हैं, और टारगेटेड किलिंग्स, विशेष रूप से नागरिकों व पर्यटकों को निशाना बनाना, इस बात का संकेत है कि आतंकियों की रणनीति अब ‘soft targets’ को अपना हथियार बना रही है। इसका एकमात्र उद्देश्य है डर और अस्थिरता फैलाना। लेकिन आतंकियों के मंसूबों को सफल नहीं होने देना ही हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। सुरक्षा एजेंसियों को न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि खुफिया तंत्र को और अधिक मजबूत कर, आतंकी गतिविधियों के नेटवर्क को जड़ से खत्म करना होगा। साथ ही, स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना, विकास योजनाओं को ज़मीन पर उतारना, और युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ना ये सभी कदम एक स्थायी समाधान की दिशा में अत्यंत आवश्यक हैं।
यह समय केवल संवेदनाओं को व्यक्त करने का नहीं, ठोस नीतियों और ज़मीनी कार्रवाई का है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के पुनरुत्थान की गहराई से समीक्षा करे, और राज्य प्रशासन के साथ मिलकर एक ‘zero tolerance’ नीति को कठोरता से लागू करे। देश एक है, और हर नागरिक की सुरक्षा सर्वोपरि है। पहलगाम का हमला एक चेतावनी है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। आतंक के विरुद्ध निर्णायक और संवेदनशील कार्रवाई ही आज का नैतिक और राष्ट्रीय दायित्व है।
- संपादक विनोद कुमार झा