विनोद कुमार झा
भारतीय संस्कृति में हनुमान जयंती एक ऐसा दिव्य पर्व है जो केवल तिथि मात्र नहीं, बल्कि आत्मा को जागृत करने वाला आध्यात्मिक उत्सव है। चैत्र मास की पूर्णिमा को अंजनी माता और पवन देव के पुत्र, रुद्रावतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। बचपन से ही उनमें अलौकिक शक्तियाँ थीं। सूर्य को फल समझकर निगल लेना, देवताओं से वरदान पाना और कालांतर में श्रीराम के परम भक्त बन जाना उनकी दिव्यता को दर्शाता है। श्री हनुमान केवल पराक्रम के प्रतीक नहीं, वे भक्ति, सेवा और विनय का मूर्तिमान रूप हैं।उन्होंने भगवान राम के कार्य को ही अपना जीवन बना लिया और पूरी निष्ठा के साथ समर्पण की मिसाल कायम की। चाहे वह सीता माता की खोज के लिए समुद्र पार करना हो, लंका दहन करना हो, या लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाना, हर कार्य में उनका साहस, विवेक और गति अद्वितीय रही। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने उन्हें “बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार” कहकर बुद्धि के प्रदाता के रूप में स्वीकारा। वे नीति, विनम्रता और विवेक के अद्वितीय संगम हैं। रामकथा का हर पृष्ठ हनुमान जी के त्याग, समर्पण और भक्ति से ओतप्रोत है। वे शक्ति और विवेक का ऐसा संतुलन हैं जो बताता है कि बल तभी सार्थक है जब उसमें विनम्रता हो और भक्ति जब कर्म से जुड़ती है, तभी सच्चा फल देती है।
हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता कहा गया है, क्योंकि वे भक्ति के मार्ग पर चलने वाले प्रत्येक साधक को आत्मबल और आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। उनके पास अपार शक्ति होते हुए भी उन्होंने कभी उसका दुरुपयोग नहीं किया बल्कि उसे केवल धर्म की रक्षा और श्रीराम की सेवा में लगाया। यह बात आज के समय के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जब व्यक्ति शक्ति प्राप्त करके दिशा भूल जाता है। श्री हनुमान हमें सिखाते हैं कि सच्ची शक्ति वही है जो संयमित और सदुपयोगी हो।
भारतीय मनीषा ने उन्हें चिरंजीवी माना है जो युगों तक जीवित रहेंगे और सतयुग से लेकर कलियुग तक अपने भक्तों की रक्षा करते रहेंगे। वे केवल रामकथा के पात्र नहीं, जनमानस के रक्षक हैं। संकट की घड़ी में ‘जय हनुमान’ की पुकार आत्मबल का संचार कर देती है। आज भी उनकी पूजा से हीन भावना, भय, रोग और बाधाएं दूर होती हैं। हनुमान जी कलियुग के जागृत देवता माने जाते हैं, और यही कारण है कि आज भी हर गली-मोहल्ले में उनके मंदिर, पूजा स्थल और अखाड़े देखे जा सकते हैं।
हनुमान जयंती के अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों में भव्य आयोजन होते हैं। उत्तर भारत में हनुमान मंदिरों में विशाल भंडारे और शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, वहीं महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में भक्ति संकीर्तन और अखंड सुंदरकांड पाठ की परंपरा है। कई स्थानों पर भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन के माध्यम से भगवान के गुणगान में लीन रहते हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसे मार्गशीर्ष या पौष महीने में भी मनाया जाता है जिससे यह पर्व भारत की विविध सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बन जाता है।
इस दिन को विशेष बनाने के लिए हनुमान जी की पूजा विधि भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्त प्रातः काल स्नान करके लाल वस्त्र पहनते हैं, हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करते हैं। उन्हें सिंदूर, चमेली का तेल, लाल फूल, गुड़ और चने का भोग अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी को सिंदूर प्रिय है क्योंकि उन्होंने स्वयं इसे रामभक्ति के लिए अपने शरीर पर लगाया था जिससे यह प्रतीक बन गया निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण का।
बाल हनुमान की कथाओं से लेकर महावीर की लीलाओं तक, उनका सम्पूर्ण चरित्र एक ऐसे आदर्श पुरुष का परिचय कराता है, जो ब्रह्मचारी होते हुए भी पूर्ण गृहस्थीय भावनाओं को जानता है, और एक योद्धा होते हुए भी करुणा से भरा है। उनके जीवन से हमें यह भी सीख मिलती है कि अगर लक्ष्य उच्च हो और संकल्प सच्चा हो, तो कोई भी बाधा स्थायी नहीं होती।
यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन को दिशा देने वाला दीपक भी है। संकट चाहे जितना भी गहरा हो, यदि श्रद्धा अटूट हो, तो संकटमोचन की कृपा से राह स्वतः खुल जाती है। इस हनुमान जयंती पर आइए हम सब श्री हनुमान जी की भांति निःस्वार्थ सेवा, अटूट भक्ति और दृढ़ संकल्प से जीवन को धन्य बनाएं।
जय श्रीराम। जय हनुमान।