शिवलिंग की पूजा में ये गलती कर दी, तो रुष्ट हो सकते हैं भोलेनाथ , जानिए कौन सी चीजें हैं वर्जित!

विनोद कुमार झा

शिव की भक्ति उतनी ही सरल है, जितनी रहस्यमयी। वे "आदिदेव" हैं  बिना किसी दिखावे, आडंबर या वैभव के पूजे जाने वाले, जो सिर्फ सच्चे मन से किए गए अभिषेक मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। किंतु इसी सहजता के भीतर कुछ ऐसे गूढ़ नियम छिपे हैं, जिनका उल्लंघन भक्त के जीवन में अनचाहे संकट ला सकता है। आपने कई बार सुना होगा कि किसी का काम अंतिम चरण में रुक गया, प्रयास व्यर्थ हो गए या जीवन में बाधाएँ आ खड़ी हुईं क्या यह संयोग था या शिवलिंग की पूजा में कोई अनजानी भूल? आइए इस रहस्य को खोलते हैं।

हर अर्पण नहीं होता स्वीकार, कुछ चढ़ावे शिव को अप्रसन्न भी कर सकते हैं!

शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले प्रत्येक पदार्थ का आध्यात्मिक अर्थ होता है। जल, बेलपत्र, आक, धतूरा  ये सभी शिव के तपस्वी स्वरूप और ऊर्जा से मेल खाते हैं। लेकिन कई ऐसी वस्तुएँ भी हैं, जो पूजा में आम हैं, परन्तु शिव को अर्पण नहीं की जातीं। उदाहरण के लिए हल्दी, जो हर शुभ कार्य में प्रयोग होती है, भगवान शिव को अर्पण नहीं की जाती। इसका कारण यह है कि हल्दी का संबंध सौंदर्य, विवाह और गृहस्थ जीवन से है, और शिव तो वैराग्य और तितिक्षा के प्रतीक हैं। इसी प्रकार नारियल , जिसे 'श्रीफल' कहा जाता है, लक्ष्मी का प्रतीक है और भगवान विष्णु से जुड़ा है। अतः यह भी शिव को अर्पित नहीं किया जाता।

तुलसी, शंख और महादेव का अद्भुत संबंध, एक श्राप, एक संहार और एक वर्जना

यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि गूढ़ पौराणिक घटनाओं से जन्मे सत्य हैं। तुलसी और शंख, जो भगवान विष्णु को प्रिय हैं, शिवलिंग पर वर्जित माने गए हैं। इसके पीछे एक अत्यंत मार्मिक कथा है  असुर शंखचूड़, जो वृंदा का पति था, शिवभक्त था। उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत इतना शक्तिशाली था कि कोई भी देवता उसे नहीं मार सकता था। युद्ध के समय, शिव उसे मारना नहीं चाहते थे क्योंकि वह एक पतिव्रता का पतिदेव था। तब भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का व्रत भंग किया और शिव ने शंखचूड़ का वध किया। इस छल का क्रोध और दुःख वृंदा के श्राप में बदल गया  विष्णु को शालिग्राम रूप में पत्थर बन जाना पड़ा, और वृंदा की भस्म से तुलसी उत्पन्न हुई। तब से, शिव तुलसी और शंख को स्वीकार नहीं करते।

फूलों में भी छिपा है आध्यात्मिक संकेत, हर पुष्प नहीं होता उपयुक्त

चंपा, केवड़ा और केतकी  इन फूलों की गंध तीव्र होती है, जो सांसारिक आकर्षण का प्रतीक मानी जाती है। शिव, जो योगियों के अधिपति हैं, भौतिक सुगंध और विलास से परे हैं। विशेषतः केतकी के फूल से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है ब्रह्मा और विष्णु के बीच यह तय हो रहा था कि शिव का आदि अंत कहाँ है। ब्रह्मा जी ने केतकी फूल को झूठ बोलने के लिए प्रेरित किया कि उन्होंने शिव के अंत को देखा है। इस असत्य ने शिव को क्रोधित कर दिया और तब उन्होंने केतकी को श्राप दिया कि वह कभी उनकी पूजा में नहीं चढ़ाई जाएगी।

पूजा की शुद्धता में भी है रहस्य  पात्र, दूध और चावल का विशेष ध्यान रखें

भले ही दूध महादेव को प्रिय है, लेकिन उबला हुआ दूध अर्पित नहीं किया जाना चाहिए। पूजा में उपयोग किए गए दूध को ताजगी और पवित्रता की दृष्टि से देखा जाता है, और उबालने से उसकी यह प्रकृति नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार लौह पात्र से जल अर्पण करना भी वर्जित है। शिव त्रिपुरासुर के विनाशक हैं  जिनकी तीन नगरियाँ सोने, चाँदी और लोहे की थीं। अतः इन धातुओं से बना पात्र उनके संहार की स्मृति कराता है। उन्हें जल केवल तांबे या कांसे के पात्र से ही चढ़ाया जाना चाहिए।

इसी प्रकार, खंडित चावल जिसे ‘अक्षत’ नहीं माना जाता  शिवलिंग पर अर्पित नहीं किया जाना चाहिए। 'अक्षत' का अर्थ है ‘अखंड’, यानी सम्पूर्ण। चावल अगर टूटा हुआ हो तो वह पूजा में अशुभ माना जाता है। बेलपत्र भी अगर टूटा हुआ हो, या उसकी संख्या तीन न हो, तो वह शिव को स्वीकार्य नहीं होता।

लाल रंग और कुमकुम देवी प्रिय हैं, परंतु शिव नहीं

भगवान शिव को लाल वस्त्र और कुमकुम अर्पित नहीं किए जाते। यह माता पार्वती की प्रिय वस्तुएँ मानी जाती हैं, और शिव को विशेषतः लाल रंग असहज करता है। एक बार की कथा है कि किसी भक्त ने अत्यधिक कुमकुम अर्पित कर दिया, जिससे माता को रक्तस्राव का भ्रम हो गया और संकट उत्पन्न हो गया। तब से यह परंपरा बनी कि शिव को लाल वस्त्र और कुमकुम नहीं चढ़ाए जाते।

भोलेनाथ के साथ संवाद है आपकी पूजा, भूलें नहीं ये नियम

शिव की पूजा कोई रीति मात्र नहीं, बल्कि एक ऊर्जा प्रवाह है जहां आप उनकी आत्मा से जुड़ने का प्रयास कर रहे होते हैं। हर अर्पण, हर मंत्र और हर नियम उसी ऊर्जा संतुलन का हिस्सा है। जो भक्त श्रद्धा के साथ इन गूढ़ नियमों का पालन करता है, उसकी साधना फलदायी होती है। और जो इन्हें हल्के में लेता है, उसके जीवन में बार-बार प्रयासों के बाद भी सफलता दूर रहती है।

इसलिए अगली बार जब आप शिवलिंग के सामने खड़े हों, तो इन बातों को याद रखें  क्योंकि एक सही अर्पण महादेव की कृपा बरसा सकता है, और एक असावधानी आपकी साधना को निष्फल भी कर सकती है।


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