अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जटिल गलियों में जब कोई राष्ट्र 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का झंडा उठाता है, तो अक्सर यह बहस छिड़ जाती है कि उसका उद्देश्य वाकई सुरक्षा है या अंतर्निहित व्यापारिक लाभ। अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमिनियम पर लगाए गए टैरिफ पर भारत और अमेरिका के बीच विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में चल रहा हालिया विवाद इसी बहस का प्रतीक है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का निर्णय, अमेरिका के अनुसार, उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा हेतु था। अमेरिका का कहना है कि यह कदम व्यावसायिक हितों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि धारा 232 के तहत देश की सामरिक तैयारी और ढांचे को मज़बूत बनाए रखने के लिए उठाया गया। वहीं भारत ने डब्ल्यूटीओ में यह तर्क दिया है कि भले ही अमेरिका इसे सुरक्षा से जोड़ रहा हो, किंतु व्यवहार में यह व्यापारिक उपायों की ही श्रेणी में आता है, और इसीलिए यह डब्ल्यूटीओ के सुरक्षा उपाय समझौते के तहत आता है।
भारत का यह तर्क महत्वपूर्ण है कि अमेरिका ने टैरिफ लागू करते समय सुरक्षा उपाय समझौते के अनुच्छेदों के तहत आवश्यक सूचनाएं डब्ल्यूटीओ को नहीं दीं। यह पारदर्शिता की उस बुनियादी शर्त का उल्लंघन है जो विश्व व्यापार के संतुलन को सुनिश्चित करती है। सवाल यह है कि क्या 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का हवाला देकर कोई भी देश किसी भी समय व्यापारिक बाधाएं खड़ी कर सकता है? यदि हां, तो यह डब्ल्यूटीओ जैसे बहुपक्षीय संगठनों की विश्वसनीयता और प्रासंगिकता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न है। अमेरिका के इस कदम से न केवल भारत जैसे साझेदार देशों को नुकसान पहुंचा है, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में एक अस्थिरता का संदेश भी गया है।
महत्वपूर्ण यह भी है कि यह टैरिफ ट्रंप प्रशासन की उस व्यापक नीति का हिस्सा था, जिसमें चीन के साथ व्यापार युद्ध के बीच अमेरिका ने अपने कई सहयोगी देशों पर भी समान सख्ती बरती। अमेरिका ने जहां चीन पर 245 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया, वहीं अन्य 75 देशों को कुछ हद तक छूट दी। यह दर्शाता है कि टैरिफ नीति सुरक्षा से अधिक कूटनीतिक और रणनीतिक दबाव का औजार बन गई है। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक व्यापार में शक्ति संतुलन बदल रहा है। अमेरिका जैसे राष्ट्र जब बहुपक्षीय नियमों से हटकर एकतरफा कदम उठाते हैं, तो यह उन मूल्यों के खिलाफ जाता है जिन पर डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं की नींव रखी गई थी।
इस संदर्भ में भारत का डब्ल्यूटीओ का दरवाज़ा खटखटाना न केवल उसके राष्ट्रीय हितों की रक्षा है, बल्कि वैश्विक व्यापार में नियम-आधारित व्यवस्था की पुनर्स्थापना की दिशा में एक साहसिक कदम भी है। यह मामला एक परीक्षण है केवल भारत और अमेरिका के रिश्तों का नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार प्रणाली की वैधानिकता, पारदर्शिता और न्यायपूर्णता का। यदि 'राष्ट्रीय सुरक्षा' को अनियंत्रित व्यापारिक बाधाओं का आधार बनने दिया गया, तो यह एक खतरनाक उदाहरण बन सकता है, जिससे अंततः वैश्विक व्यापार का ढांचा ही दरक सकता है।
(संपादक)