विनोद कुमार झा
जब सूर्य अपनी तपिश से धरती को झुलसाने लगता है और हर जीव जल की एक बूंद को तरसता है, तब आता है वैशाख धर्म, दया और दान का महीना। पुराणों में वर्णित यह मास कोई साधारण समय नहीं, बल्कि वह काल है जब किए गए पुण्य कार्य जीवन भर साथ देते हैं। जल की एक बूंद इस महीने में न केवल प्यास बुझाती है, बल्कि जन्म-जन्मांतर के पापों को भी धो डालती है। वैशाख में भगवान विष्णु और शिव की पूजा, तुलसी सेवा, और जल दान का जो पुण्य मिलता है, वह अक्षय होता है जिसका क्षय कभी नहीं होता। यही कारण है कि इस महीने की हर सुबह, हर संध्या, और हर कर्म आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी होती है। आइए जानते हैं वैशाख मास की महिमा पर आधारित दो-तीन भावपूर्ण कथाएं दी गई हैं, जो पुराणों और लोक परंपराओं से प्रेरित हैं और जल दान, पुण्य और भगवान शिव-विष्णु की कृपा को दर्शाती हैं।
राजकुमार सौमित्र की कथा : प्राचीन काल में सौमित्र नामक एक धर्मनिष्ठ राजकुमार था। उसका जीवन तपस्या और सेवा में व्यतीत होता था, परंतु वह एक बात से सदा विचलित रहता उसे बार-बार स्वप्न में एक वृद्ध साधु दर्शन देते और कहते, तेरा अंतिम मोक्ष अभी दूर है, जल का दान कर। राजकुमार ने अनेक यज्ञ किए, सोने और अन्न का दान दिया, पर वह संतोष न पा सका। एक दिन उसे एक तपस्वी ऋषि मिले, जो वैशाख मास में तप कर रहे थे। उन्होंने सौमित्र को बताया, पुत्र, वैशाख मास में जल दान अक्षय फल देता है। यही वह पुण्य है जो तुम्हें जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करेगा।
राजकुमार ने पूरे वैशाख मास सूर्योदय से पूर्व स्नान कर, प्यासे जनों को जल पिलाया, प्यासे पशु-पक्षियों के लिए घाट बनवाए, और तीर्थ स्थानों पर जल पात्रों का दान किया। जैसे-जैसे मास बीतता गया, उसके मन का भार हल्का होता गया।अक्षय तृतीया के दिन जब उसने एक तपस्वी को जल पिलाया, तब वही वृद्ध साधु उसके सम्मुख प्रकट हुए और बोले, अब तेरा मोक्ष पूर्ण है। तू वैशाख की महिमा को समझ गया। वह साधु स्वयं भगवान विष्णु थे, जिन्होंने सौमित्र को अपने धाम ले जाने का वरदान दिया।
तुलसी सेवा से वर प्राप्ति की कथा : प्राचीनकाल में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार की कन्या रुक्मिणी, विष्णु की परम भक्त थी। वैशाख मास आते ही वह प्रतिदिन प्रातःकाल तुलसी को जल चढ़ाती, उसकी सेवा करती, और संध्या में दीप जलाकर विष्णु-सहस्त्रनाम का पाठ करती।
परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी, लेकिन रुक्मिणी ने कभी भगवान पर से श्रद्धा नहीं छोड़ी। एक दिन गांव में महालक्ष्मी पूजन का आयोजन हुआ। रुक्मिणी ने मन में इच्छा की, हे प्रभु, क्या मुझे कभी ऐसा सौभाग्य मिलेगा कि मैं भी आपके चरणों में पुष्प अर्पित कर सकूं?
अक्षय तृतीया के दिन जब उसने तुलसी को जल चढ़ाया, तभी गांव में एक धनी कुल के युवक ने उसे देखा। वह रुक्मिणी की भक्ति से अत्यंत प्रभावित हुआ और अपने माता-पिता से उसका विवाह प्रस्ताव रखा। विवाह के पश्चात रुक्मिणी ने पूरे गांव में जल पात्र और तुलसी वाटिका स्थापित करवाई, जिससे सभी को भगवान के प्रति भक्ति का संदेश मिले।
शिव पूजा और व्यापारी की कथा : राजगृह नगर में वर्धन नामक एक लालची व्यापारी था। वह केवल लाभ-हानि की भाषा समझता था। एक बार वैशाख मास में अकाल पड़ा। नगर के लोग परेशान थे, पर वर्धन ने अपने जल के घड़े और कुएं पर ताला लगा दिया।
एक दिन एक वृद्ध साधु, जो स्वयं भगवान शिव थे, भिक्षा मांगते हुए उसके द्वार आए। वर्धन ने उन्हें भी अपमानित कर भगा दिया। उसी रात उसे स्वप्न में एक तेजस्वी शिवलिंग दिखाई दिया, जो कह रहा था, जिसने जल रोका, वह पुण्य से वंचित रहेगा।
डरकर वर्धन ने अगले ही दिन ताले तोड़ दिए, और सार्वजनिक जल पात्रों की स्थापना कर दी। वह खुद सुबह-सुबह शिवलिंग पर जल चढ़ाने लगा, और राहगीरों को पानी पिलाने लगा। एक माह के भीतर उसकी दुकान फिर से चलने लगी, और समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई।
उसने अनुभव किया कि वैशाख मास में जल दान मात्र द्रव्य दान नहीं, बल्कि आत्मा को निर्मल करने का माध्यम है। उसने जीवन भर भगवान शिव की सेवा की और अंत समय में शांत भाव से प्राण त्यागे। वैशाख मास में जल दान, तुलसी सेवा और शिव-विष्णु पूजा से मनुष्य न केवल सांसारिक सुख प्राप्त करता है, बल्कि आत्मिक उन्नति भी करता है। यह महीना वास्तव में कल्पवृक्ष के समान फलदायक है जहाँ छोटी सी सेवा भी अनंत पुण्य प्रदान करती है।