विनोद कुमार झा
जब एक समाज भेदभाव की दीवारों में कैद हो, जब न्याय केवल विशेष वर्गों की जागीर बन जाए, जब शिक्षा एक सपना हो और अधिकार केवल किताबों तक सीमित रह जाए, तब इतिहास एक ऐसे क्रांतिकारी को जन्म देता है जो न केवल इन दीवारों को तोड़ता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए समानता की नींव रखता है। ऐसा ही एक युगद्रष्टा थे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जिन्होंने अपने विचारों, संघर्ष और ज्ञान के बल पर भारतीय राजनीति को नई दिशा दी, संविधान की रचना कर लोकतंत्र को मजबूती दी, और समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा व न्याय की रोशनी पहुंचाई। 14 अप्रैल को मनाई जाने वाली उनकी जयंती, केवल एक महापुरुष का जन्मदिन नहीं, बल्कि यह एक चेतना का उत्सव है समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के संकल्प का दिन।
डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था। वह एक दलित परिवार से थे और अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में ही उन्होंने छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अन्याय का गहरा अनुभव किया। परंतु उन्होंने इन विषम परिस्थितियों को कभी अपने विकास में बाधा नहीं बनने दिया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों की यात्रा की और कई डिग्रियां हासिल कीं। वे भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डिग्री प्राप्त की।
डॉ. आंबेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन समाज के वंचित, शोषित और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने 'जाति का उच्छेद', 'शिक्षा का प्रसार' और 'आर्थिक न्याय' जैसे मूल्यों को समाज में स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे महाड़ सत्याग्रह और चवदार तालाब आंदोलन, जिनका उद्देश्य दलितों को सामाजिक बराबरी दिलाना था।
डॉ. आंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। वे स्वतंत्र भारत की संविधान सभा के मसौदा समिति के अध्यक्ष बनाए गए। उन्होंने एक ऐसे संविधान का निर्माण किया जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या वर्ग से हों। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, और अस्पृश्यता के उन्मूलन जैसे प्रावधानों को सुनिश्चित किया। डॉ. आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों अनुयायियों के साथ उन्होंने धम्म दीक्षा ली। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म मानवता, करुणा और समानता का धर्म है। उन्होंने बौद्ध धर्म को सामाजिक न्याय का आधार माना और इसे अपने अनुयायियों के लिए एक नई दिशा के रूप में प्रस्तुत किया।
बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती केवल एक श्रद्धांजलि का दिन नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने और समाज में समानता, भाईचारे व न्याय की भावना को सुदृढ़ करने का अवसर है। आज जब हम विविध सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तब बाबासाहेब के विचार हमें एक नई दृष्टि और दिशा देने में समर्थ हैं। उनकी यह प्रेरणा सदा हमारे जीवन में प्रकाश बनकर मार्गदर्शन करती रहे यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।