हमलावरों से परास्त न होना भी धर्म का हिस्सा, गुंडों को सबक सिखाना कर्तव्य: आरएसएस प्रमुख
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि अहिंसा का सिद्धांत हिंदू धर्म का मूल तत्व है, लेकिन जब कोई अन्याय करता है तो उसका प्रतिकार करना भी धर्म का आवश्यक हिस्सा है। वे यहां एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
धर्म केवल कर्मकांड नहीं, एक सिद्धांत है
भागवत ने कहा कि आज धर्म को केवल रीति-रिवाजों और खानपान की आदतों तक सीमित कर दिया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया, "धर्म पूजा-पद्धति या भोजन की आदतों का नाम नहीं है, बल्कि वह सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या जैसे सिद्धांतों पर आधारित जीवन का मार्ग है।" उन्होंने कहा कि धर्म तब तक धर्म नहीं है जब तक उसमें ये चार मूल तत्व न हों।
भारत ने कभी पड़ोसियों का अपमान नहीं किया
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत ने इतिहास में कभी अपने पड़ोसियों को नुकसान नहीं पहुँचाया, लेकिन आत्मरक्षा करना राजा का कर्तव्य है। "अगर कोई देश बुराई पर उतर आता है, तो उसके सामने आत्मरक्षा के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता," उन्होंने कहा।
छुआछूत अधर्म है, सभी कार्य समान
मोहन भागवत ने हिंदू धर्म में छुआछूत के विचार को नकारते हुए कहा कि किसी भी धर्मग्रंथ में ऊंच-नीच का समर्थन नहीं किया गया है। "अगर आप किसी कार्य को छोटा या बड़ा मानते हैं या व्यक्ति के बीच भेद करते हैं तो यह अधर्म है," उन्होंने कहा।
हर धर्म का सम्मान जरूरी
भागवत ने कहा कि सभी धर्म अपने-अपने अनुयायियों के लिए श्रेष्ठ हो सकते हैं। "हमें दूसरों के मार्ग का सम्मान करना चाहिए और किसी को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए," उन्होंने कहा।
अध्यात्म है धर्म का सर्वोच्च स्तर
आरएसएस प्रमुख ने बल दिया कि धर्म के ऊपर भी एक व्यापक सत्य है अध्यात्म। "जब तक हम अध्यात्म को नहीं समझेंगे, तब तक धर्म का सही अर्थ भी नहीं समझ पाएंगे," उन्होंने कहा।
‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ का विमोचन
समारोह में स्वामी विज्ञानानंद ने अपनी पुस्तक 'द हिंदू मेनिफेस्टो' का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में प्राचीन हिंदू ज्ञान का सार समकालीन आवश्यकताओं के अनुसार प्रस्तुत किया गया है। स्वामी ने कहा, "हिंदू विचारधारा समय के साथ स्वयं को ढालती रही है, जबकि उसकी जड़ें शाश्वत सिद्धांतों में स्थिर हैं।"