सख्ती ही अब शांति का मार्ग

विनोद कुमार झा

दुनिया भर में आतंकवाद के खतरे ने मानवता को बार-बार चुनौती दी है, लेकिन जब यह खतरा किसी देश की सीमाओं को लांघ कर उसके नागरिकों की जान, उसकी आंतरिक शांति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने लगे, तो वह केवल एक सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि राष्ट्र के अस्तित्व और आत्मसम्मान का प्रश्न बन जाता है। भारत ने इसी पृष्ठभूमि में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की है।

सरकार के तात्कालिक कार्रवाई की झलक

 पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द  :भारत सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों से मिली जानकारी और खुफिया इनपुट के आधार पर पाकिस्तान के नागरिकों को जारी किए गए वीजा रद्द करने का निर्णय लिया है। यह फैसला न केवल सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि भारत अब आतंक के साथ किसी भी प्रकार की नरमी बरतने को तैयार नहीं है।

पाकिस्तानी दूतावास को अस्थायी रूप से बंद करने की घोषणा :  नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग को ‘तानाशाही भाषा’ और ‘राजनयिक मर्यादा उल्लंघन’ के आरोपों के चलते बंद किया गया है। भारतीय अधिकारियों का यह भी कहना है कि राजनयिक माध्यमों से देश विरोधी गतिविधियाँ चलाई जा रही थीं, जिसे अब किसी भी रूप में सहन नहीं किया जाएगा।

सिंधु जल समझौता समाप्त : वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि को अब तक भारत ने एक सकारात्मक राजनयिक परंपरा के तहत निभाया था। लेकिन हालिया आतंकी हमलों और पाकिस्तान की ओर से परोक्ष समर्थन के चलते, भारत ने इस ऐतिहासिक संधि को समाप्त करने का फैसला कर लिया है। यह कदम न केवल पाकिस्तान को जल संकट की ओर धकेल सकता है, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था और कृषि व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

भारत ने बीते वर्षों में कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की आतंकवाद समर्थक नीतियों को उजागर किया। पुलवामा हमले के बाद से ही भारत की नीति बदलती नजर आई। “शून्य सहिष्णुता” की नीति के तहत सरकार ने अब स्पष्ट कर दिया है कि कूटनीति तभी तक चल सकती है, जब तक सीमाओं पर शांति हो। हाल में सीमापार आतंकी घुसपैठ, जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की बढ़ती सक्रियता और ड्रोन के जरिए हथियारों की आपूर्ति ने इस निर्णय को और मजबूती दी।

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे कई देशों ने भारत की चिंताओं को जायज बताया है। अमेरिका ने तो यह भी कहा कि "एक संप्रभु राष्ट्र को अपने नागरिकों की रक्षा के लिए जो भी कदम आवश्यक हों, उसे उठाने का पूरा अधिकार है।" कुछ देशों ने भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने की अपील की है, लेकिन वैश्विक दृष्टिकोण में अब भारत की सख्ती को ‘आत्मरक्षा’ के रूप में देखा जा रहा है।

पाकिस्तान ने हमेशा की तरह भारत पर ‘आरोप लगाने’ और ‘दुश्मनी बढ़ाने’ का आरोप लगाया है। लेकिन वैश्विक मंच पर उसकी बातों को अब बहुत कम गंभीरता से लिया जा रहा है। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और आर्थिक स्थिति पहले से ही डांवाडोल है, ऐसे में भारत के इन फैसलों ने उसके सामने एक कूटनीतिक संकट उत्पन्न कर दिया है।

यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या ऐसे फैसलों से आतंकवाद पर लगाम लगेगी? विशेषज्ञों की मानें तो ये कदम एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं। सीमा सुरक्षा, कूटनीतिक दबाव और आर्थिक प्रतिबंध  इन तीनों का जब समन्वय होता है, तभी आतंकी नेटवर्क कमजोर होते हैं। भारत का यह निर्णय उसी व्यापक नीति का हिस्सा है जिसमें “मौन की नीति” को त्यागकर “प्रतिरोध की नीति” को प्राथमिकता दी जा रही है।

देशभर में इन निर्णयों का स्वागत हो रहा है। सोशल मीडिया से लेकर समाचार चैनलों तक आम नागरिकों में देशभक्ति की लहर है। अब और नहीं सहेंगे’ जैसे नारों के साथ जनता सरकार के इस कदम को एक ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देख रही है। युवाओं में विशेषकर उत्साह है कि देश अब निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।

भारत का यह निर्णय केवल एक देश के खिलाफ नहीं, बल्कि उस सोच के विरुद्ध है जो हथियारों और खून के जरिए अपनी विचारधारा थोपना चाहती है। आतंकवाद के खिलाफ यह एक मजबूत और साहसी कदम है, जो आने वाले समय में न केवल भारत को और अधिक सुरक्षित बनाएगा, बल्कि यह दुनिया को भी संदेश देगा कि लोकतांत्रिक राष्ट्र अब चुप नहीं बैठेंगे।

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