जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हालिया आतंकी हमला केवल कुछ निर्दोष जिंदगियों का अंत नहीं था, बल्कि यह भारत की आत्मा पर एक बार फिर किया गया वह वार था जिसने हर नागरिक को भीतर तक झकझोर दिया है। जब कोई अपने घर में शांति से जीवन जी रहा हो और बाहर से आकर कोई उसकी सांसें छीन ले, तो वह सिर्फ एक हमले की खबर नहीं होती वह पूरे समाज का दुख बन जाती है। यही आज हर भारतीय के मन में है क्रोध, पीड़ा और एकजुटता का भाव।
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल का यह आह्वान कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद का विशेष सत्र बुलाएं और वहां सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाए, न सिर्फ एक जरूरी राजनीतिक पहल है, बल्कि यह उन असंख्य परिवारों के प्रति भी संवेदना का प्रतीक है जिन्होंने दशकों से आतंकवाद के कारण अपनों को खोया है। संसद देश की आत्मा का प्रतीक है और अगर आतंकवाद भारत की आत्मा को लहूलुहान कर रहा है, तो संसद को चुप नहीं रहना चाहिए।
यह सुखद संकेत है कि एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने सरकार से अनुरोध किया है कि सभी दलों को एक मंच पर लाकर आतंकवाद के विरुद्ध एक स्पष्ट और सशक्त संदेश दिया जाए। जब संसद एकमत होकर यह कहेगी कि “भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा,” तब वह आवाज केवल दिल्ली तक नहीं, इस्लामाबाद, न्यूयॉर्क, बीजिंग और मॉस्को तक गूंजेगी। ऐसी आवाजें जब राष्ट्रीय पीड़ा और वैश्विक चिंता का रूप लेती हैं, तब दुनिया सुनती है।
आज देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां सिर्फ सैनिक कार्रवाई या सीमावर्ती चौकसी काफी नहीं है। हमें अब कूटनीतिक रणभूमि पर भी पूर्ण आक्रामकता के साथ उतरना होगा। कपिल सिब्बल द्वारा सुझाया गया यह विचार—कि सरकार और विपक्ष के सांसदों को प्रतिनिधिमंडल बनाकर विभिन्न देशों में भेजा जाए एक ठोस रणनीतिक पहल बन सकती है। क्योंकि अगर पाकिस्तान को आतंकवाद की ज़मीन बनाना है, तो हमें उसे दुनिया की नज़रों में उजागर करना ही होगा।
कपिल सिब्बल ने सही कहा कि यह हमला कोई नई बात नहीं है। भारत की नस-नस में 1972 से बहते खून की टीस है पार्लियामेंट अटैक, मुंबई ट्रेन धमाके, 26/11, पठानकोट, उरी और पुलवामा। इन घटनाओं ने हजारों परिवारों को हमेशा के लिए अधूरा कर दिया। जिन बच्चों ने अपने पिता खोए, जो पत्नियाँ वीरान हो गईं, जो माँएं कभी वापस नहीं मुस्कराईं उनका दुख आज भी जिंदा है। हर बार हम शोक मनाते हैं, कड़ी निंदा करते हैं, और फिर अगली त्रासदी का इंतज़ार करते हैं।
लेकिन अब नहीं। अब यह चक्र तोड़ना होगा।
भारत को अब उन देशों को चेताना चाहिए जो पाकिस्तान के साथ व्यापार करते हैं। अगर वे भारत के साथ सौहार्द चाहते हैं, तो उन्हें यह तय करना होगा कि वे किस ओर खड़े हैं मानवता के साथ या आतंक के साथ? सिब्बल की यह मांग कि भारत को स्पष्ट शब्दों में व्यापारिक चेतावनी देनी चाहिए इस समय की सबसे आवश्यक कूटनीतिक नीति बन सकती है। हर वह देश जो पाकिस्तान के साथ सहयोग करता है, उसे यह बताना चाहिए कि वह अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को ईंधन दे रहा है।
आज के दौर में केवल युद्ध नहीं, शब्दों की राजनीति भी लड़ाई का मैदान है। अगर भारत अपने सांसदों को अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों में भेजकर वहां पाकिस्तान के आतंकी चरित्र को उजागर करता है, तो वह कूटनीति की सबसे ताकतवर मिसाइल दागेगा। यही वह समय है जब भारत को Global Moral High Ground पर खड़े होकर यह बताना होगा कि आतंकवाद केवल भारत की समस्या नहीं, बल्कि पूरी मानवता का दुश्मन है।
आज देश के हर नागरिक को यह महसूस हो रहा है कि अब बहुत हो चुका है। शहीदों की चिताएं केवल धुआं नहीं छोड़तीं, वे एक संदेश देती हैं कि अगली पीढ़ी को वह भय न मिले जो पिछली पीढ़ी झेल चुकी है। हमें अब अपने शोक को ताकत में बदलना होगा, और अपने क्रोध को विवेकपूर्ण नीति में।
भारत को अब हर तरफ से पाकिस्तान को घेरना होगा सीमा पर, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, व्यापारिक गठबंधनों में और जनमत की शक्ति से। और यह तभी संभव है जब सरकार और विपक्ष एक स्वर में बोलें, जब संसद केवल नीतियों की नहीं, राष्ट्रीय संवेदना की भी अभिव्यक्ति बने।
आतंकवाद के विरुद्ध यह लड़ाई केवल सुरक्षा बलों की नहीं है, यह हर नागरिक की है। और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शहीदों के बलिदान के बाद देश फिर कभी न रोए।
- संपादक