कानून का शिकंजा और न्याय की उम्मीद


भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की बेल्जियम की अदालत में जमानत याचिका खारिज होना, भारत की न्याय व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सहयोग की दिशा में एक निर्णायक पड़ाव साबित हो सकता है। यह केवल एक आर्थिक अपराधी के खिलाफ की गई कार्रवाई नहीं, बल्कि उन लाखों भारतीयों की न्याय की प्रतीक्षा का उत्तर है, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई को उन बैंकों में रखा जिनका भरोसा चोकसी जैसे घोटालेबाजों ने तोड़ा।

चोकसी, जो पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के प्रमुख आरोपियों में से एक है, लंबे समय से भारत की पकड़ से बाहर रहकर कानूनी पेचीदगियों और नागरिकता के बहाने बचता रहा है। लेकिन बेल्जियम की अदालत द्वारा उसकी जमानत याचिका को खारिज किया जाना यह स्पष्ट करता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अब अपराधियों को शरण मिलना आसान नहीं रह गया है। वैश्विक स्तर पर आर्थिक अपराधों के प्रति बढ़ती सजगता और सहयोग ने इसे संभव बनाया है।

इस निर्णय से यह संकेत मिलता है कि यदि भारत सरकार अपने प्रयासों में निरंतरता बनाए रखे और न्यायिक प्रक्रियाओं में तकनीकी दक्षता का प्रदर्शन करे, तो भगोड़े आर्थिक अपराधियों को देश वापस लाना कोई असंभव कार्य नहीं है। यह फैसला न केवल चोकसी के लिए चेतावनी है, बल्कि उन सभी आर्थिक अपराधियों के लिए भी संदेश है जो विदेशों में छिपकर अपने गुनाहों से बच निकलने की फिराक में हैं।
हालांकि, यह भी सत्य है कि इस लड़ाई का यह केवल एक अध्याय है। चोकसी का प्रत्यर्पण और भारत में उस पर मुकदमा चलाना अब अगला लक्ष्य होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह कूटनीतिक और कानूनी स्तर पर अपनी पकड़ और मजबूत करे, ताकि ऐसे मामलों में देरी न हो।  

इस घटना को व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो यह भारत में आर्थिक अनुशासन की बहाली, बैंकिंग व्यवस्था पर विश्वास की पुनर्स्थापना और आम नागरिकों की आशाओं के संरक्षण का प्रतीक बन सकता है।  यह समय है जब भारत को न्याय की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी, सबूतों को सशक्त बनाना होगा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने दावे को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना होगा। तभी चोकसी जैसे मामलों में न सिर्फ न्याय होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त और पारदर्शी शासन प्रणाली की नींव भी रखी जा सकेगी।

संपादक

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