विनोद कुमार झा
पहाड़ों की मखमली गोद में बसा ‘मधुबन’ गाँव, किसी रहस्य से भरे लोक की तरह चारों ओर से जंगलों और पर्वतों की बाँहों में सिमटा हुआ था। यहाँ की धरती मानो ऋतुओं से प्रेम करती थी हर मौसम में सजी, सँवरी, मुस्कुराती। वसंत में हरी चूनर ओढ़े, ग्रीष्म में सूरज की किरणों से दमकती, वर्षा में बादलों की बाँहों में भीगती, शरद में चाँदनी-सी शांत, हेमंत में धूप की नर्म रजाई जैसी और शीशिर में बर्फीली मोतियों-सी झिलमिलाती। मधुबन में हर ऋतु का आगमन किसी उत्सव से कम न था जैसे प्रकृति खुद जीवन का जादू बुन रही हो। यह गाँव, मानो ईश्वर की कल्पना से जन्मी एक जीवंत कविता था, हर पल बदलती, फिर भी सदा सुंदर।सर्दी की विदाई के साथ ही वसंत ने धीरे-धीरे अपना आँचल फैलाया। पेड़ों पर नवपल्लव फूटने लगे, मानो धरती ने हरी चुनर ओढ़ ली हो। आम के बौरों की मादक खुशबू हवाओं में घुलने लगी। सरसों के पीले फूल जैसे प्रकृति की हँसी बन खेतों में खिल उठे थे। यह वही भूमि थी जहाँ संजय और सिया की प्रेम-कथा जन्म लेने वाली थी। वसंत का आगमन हुआ। आम पेड़ों में बौर फूटे, पलाश के फूलों ने जंगलों को अग्निरंग से भर दिया। बागों में कोयल की कुहुक सुनाई देने लगी। खेतों में सरसों पीले सोने-सी लहराने लगी थी। मानो सभी देवी देवताओं स्वर्ग से धरती पर उतर आए हों। आइए करते हैं कहानी की शुरुआत...
संजय जो शहर में पला-बढ़ा एक युवा कवि, अपने दादा-दादी के गाँव मधुबन आया था कुछ दिन सुकून के लिए। वहाँ की प्राकृतिक छवि ने उसकी आत्मा को गहरे तक छुआ। वह हर सुबह तालाब किनारे बैठकर कविताएँ लिखा करता। वहीं उसकी मुलाकात सिया से हुई एक सादगी से भरी, प्रकृति की पुजारिन। वह गाँव की बच्चों को पेड़-पौधों के बारे में सिखाती थी, फूलों से संवाद करती और चिड़ियों को पहचान कर उनके गीत दोहराती। दोनों की पहली बातचीत तालाब किनारे आम के पेड़ के नीचे हुई जहाँ सिया ओस से भीगे पत्तों पर बैठी थी और संजय कविता लिख रहा था। दोनों की नज़रें मिलीं और जैसे वसंत ने अपनी पहली लता उनकी आत्माओं में बाँध दी।
संजय शहर से छुट्टियाँ बिताने गाँव आया था। वहीं सिया, गाँव की ही एक सीधी-सादी लेकिन बेहद सुंदर और प्रकृति से गहराई से जुड़ी हुई लड़की थी। वह पेड़ों से बातें करती, फूलों से हँसती और नदी की कलकल में अपने गीत बुनती थी। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ी, आरव और सिया की मुलाकातें भी गहराने लगीं। वे गाँव के आम के बागों में बैठते, नीम की छाँव में ठंडी लस्सी पीते और तालाब के किनारे घंटों बातें करते। सूर्य की तीखी किरणें भी उनके बीच की मिठास को पिघला नहीं सकीं। सिया ने एक बार कहा था, “प्रेम भी तो गर्मी की तरह होता है ना, तेज... लेकिन जब मन से अपनाओ, तो भीतर सिर्फ मिठास भर जाती है।
फिर एक दिन, आकाश में काले बादल घिर आए। बिजली की कड़क और बारिश की पहली बूँदों ने धरती की प्यास बुझाई। खेतों से मिट्टी की सोंधी महक उठी। संजय और सिया पहली बार बारिश में भीगे। वह पल, जब संजय ने सिया का हाथ थामा और दोनों की आँखों में बारिश की बूँदें मोती की तरह चमक उठीं वही क्षण था जब प्रेम ने उन्हें बाँध लिया। बरसात के बाद आई शरद ऋतु, जब आकाश बिलकुल निर्मल था, चाँदनी में नहाई रातें जैसे प्रेम के लिए बनी हों। वे दोनों अब रोज मिलते, चाँद को निहारते और सपनों की बातें करते। अब गाँव के लोग भी उनके प्रेम को जान गए थे, और यह एक खूबसूरत बात बन गई थी।
जैसे ही हवाओं में हल्की ठंडक घुली, संजय को शहर लौटने की याद सताने लगी। लेकिन सिया का प्रेम उसे बाँधे रखता। उसने निर्णय लिया कि वह गाँव में ही रहकर कुछ रचनात्मक करेगा। दोनों ने मिलकर एक छोटा-सा स्कूल शुरू करने का सपना देखा, जहाँ बच्चे प्रकृति से जुड़कर पढ़ें। और फिर आई वह ऋतु, जब ओस की बूँदें घास पर गिरती थीं। सूरज की पहली किरण जब उन बूँदों पर पड़ती, वे मोती की तरह चमकतीं। सिया ने मुस्कुरा कर कहा, देखो ना संजय, जैसे हमारे जीवन की हर कठिनाई भी सूरज की किरण से हीरे जैसी बन जाती है। उसी ओस से भीगी सुबह, गाँव के मंदिर में संजय और सिया ने एक-दूसरे को जीवन भर साथ निभाने का वादा किया। गाँववालों की उपस्थिति में, प्रकृति की साक्षी में, उनका विवाह संपन्न हुआ।
संजय और सिया का नया जीवन प्रकृति की ही तरह शांत, सरल और सजीव था। उन्होंने मधुबन के एक पुराने स्कूल को फिर से जीवित किया। वहाँ पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ किताबों से नहीं, बल्कि पेड़ों, नदियों, फूलों और खेतों से भी ज्ञान लेते थे। सिया उन्हें कहानियों के ज़रिए ऋतुओं का महत्व समझाती, तो आरव विज्ञान और जीवन के गहरे सूत्र सरल भाषा में बाँटता।उनके जीवन में हर ऋतु एक नए अध्याय की तरह आती।
एक साल बीत गया। वसंत फिर से आया, लेकिन इस बार एक नई खुशखबरी के साथ। सिया माँ बनने वाली थी। नवपल्लवों की तरह उसके चेहरे पर एक नई चमक थी। संजय की आँखों में भविष्य के सपने तैरते थे एक ऐसा जीवन जहाँ उनके बच्चे भी उसी प्रकृति से प्रेम करना सीखें, जिस प्रकृति ने उन्हें एक-दूसरे से मिलाया था।
गर्मी में वह आम की छाँव में आराम करती, संजय उसके लिए बेल का शरबत लाता। बारिश में वे छत के नीचे बैठकर बूँदों की रिमझिम गिनते, जैसे हर बूँद एक आशीर्वाद हो। शरद में सिया रात को आसमान के तारे गिनती, और कहती, “हमारा बच्चा भी किसी तारे जितना चमकदार होगा।” हेमंत में वह ऊनी कपड़ों में लिपटी, आग के पास बैठती और संजय कहानियाँ सुनाता प्यार, प्रकृति और उम्मीद की कहानियाँ।
फिर आई वही ओस वाली सर्द सुबह। घास पर मोती-सी चमकती बूँदें और दूर से आती मंदिर की घंटियों की ध्वनि। उसी सुबह, सिया ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। उसका नाम उन्होंने रखा "प्रकृति"। प्रकृति बिल्कुल अपनी माँ जैसी थी नदी की तरह चंचल और फूलों जैसी कोमल। वह खेतों में दौड़ती, फूलों से बातें करती, और जब बारिश आती, तो नाचने लगती। उसकी हँसी में पेड़ों की सरसराहट होती और उसकी आँखों में आकाश का विस्तार।
विवाह के कुछ ही महीनों बाद, वसंत पुनः आया इस बार सिया के गर्भ में एक नए जीवन का संदेश लेकर। वह और आरव अब सिर्फ प्रेमी नहीं, माता-पिता बनने वाले थे। प्रकृति भी जैसे उनके इस मिलन पर इतराने लगी। पेड़ और झाड़ियाँ और भी हरे हो उठे, फूलों ने अधिक रंग बिखेर दिए। खेतों में हल चलने लगे, जैसे सृष्टि का कोई बड़ा उत्सव चल रहा हो। शीशिर की एक ठंडी सुबह में, जब ओस की बूँदें फिर से मोती बन गईं और सूर्य की पहली किरणें मधुबन पर पड़ीं, सिया ने एक कन्या को जन्म दिया। उन्होंने उसका नाम रखा प्रकृति”।
प्रकृति संजय और सिया के प्रेम, त्याग, समर्पण और प्रकृति के सौंदर्य की जीवंत निशानी थी। वह बड़ी होकर उसी स्कूल में पढ़ाने लगी, जहाँ उसकी माँ बच्चों को फूलों की भाषा सिखाया करती थी। फिर वर्षों बाद भी मधुबन में जब वसंत आता है, तो नवपल्लवों के साथ कोई आरव की कविता गुनगुनाता है। बारिश में प्रेम की बूँदें गिरती हैं, शरद में चाँदनी पुरानी यादों को उजागर करती है, और ओस की बूँदों में अब भी प्रेम की चमक बाकी है।क्योंकि जहाँ प्रकृति है, वहाँ प्रेम है और जहाँ प्रेम है, वहाँ जीवन हर ऋतु में खिला रहता है।
वर्षों बाद संजय और सिया अब वृद्ध हो चले थे, लेकिन उनका प्रेम, उनका सपना और उनका विद्यालय आज भी उसी तरह जीवंत था। हर साल ऋतुएँ आतीं और उनकी कहानी दोहरातीं। गाँव के बच्चे आज भी ओस की बूँदों में प्रेम की चमक देखते और नवपल्लवों में जीवन की शुरुआत का संकेत पाते। और इस तरह प्रकृति के इस अलौकिक सौंदर्य के बीच, दो प्रेमियों की कहानी, ऋतुओं के साथ बहती रही सजीव, सुगंधित और शाश्वत। आज भी मधुबन गाँव की वादियों में वसंत का हर नवपल्लव, बारिश की हर बूँद, ओस का हर मोती उनके प्रेम की कहानी सुनाता है। और ये कहानी नहीं, बल्कि प्रकृति और प्रेम के अद्भुत संगम की एक अमर गाथा है।