परशुराम जयंती विशेष : भृगुकुल तिलक, धर्मरक्षक भगवान परशुराम

विनोद कुमार झा

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के पुण्य अवसर पर भृगुकुल के गौरव, महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के तपःफलस्वरूप जन्मे भगवान परशुराम जी का प्राकट्य हुआ। भगवान परशुराम श्री हरि विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वे न केवल शस्त्रविद्या के परम ज्ञाता थे, अपितु शास्त्रों के भी मर्मज्ञ थे। उनके चरित्र में योग, तप, ज्ञान, वैराग्य और धर्मरक्षा का अनुपम समन्वय मिलता है।

भगवान परशुराम सम्पूर्ण देवताओं द्वारा वन्दनीय हैं। वे तेजस्विता के साक्षात् मूर्तिमान स्वरूप हैं। उनका व्यक्तित्व अतुलनीय है  जो योगेश्वरता से सुशोभित, तप से दीप्तिमान तथा धर्मसंरक्षण हेतु सदैव कटिबद्ध रहा। वे अपने समय के अधर्म, अन्याय और अत्याचार का विनाश करने हेतु पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।  

उनके स्वरूप की महिमा का वर्णन करते हुए शास्त्रों में कहा गया है: "शत्रुक्षयाय भवने जगतः प्रकोपे।  धर्मस्थितिं कुरु कुरु प्रभो परशुं गृहीत्वा॥"

(अर्थ: हे प्रभु! आप परशु धारण कर संसार में फैले अधर्म और पापियों का विनाश करें तथा धर्म की स्थापना करें।)

भगवान परशुराम का स्वरूप सुंदर, बलिष्ठ और तेजस्वी है। उनके दर्शन मात्र से पाप, ताप, संताप, रोग तथा भय का हरण हो जाता है। उनके हाथों में सदैव परशु (फरसा) सुशोभित रहता है, जो धर्म के रक्षण का प्रतीक है।  

भगवान परशुराम के प्रमुख प्रसंग

कार्तवीर्य अर्जुन का वध:  महर्षि जमदग्नि के तपोबल से प्रभावित कामधेनु गाय को जब हैहय वंशी राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने बलपूर्वक छीन लिया, तब भगवान परशुराम ने क्रोध में आकर उसका वध कर दिया। यह घटना धर्मरक्षा के उनके प्रण का प्रथम प्रकट रूप है।

क्षत्रिय संहार: पिता के वध के पश्चात भगवान परशुराम ने प्रतिज्ञा की कि वे धरती से 21 बार अधर्मी क्षत्रियों का संहार करेंगे। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर पृथ्वी को पापमुक्त बनाया।

भूमि दान:  क्षत्रियों से विजय प्राप्त करने के पश्चात परशुराम ने संपूर्ण पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। इस दान के पश्चात वे स्वयं तपस्यारत हो गए।

श्रीराम से भेंट: भगवान परशुराम की भेंट श्रीराम से हुई जब राम ने शिवधनुष भंग किया। इस प्रसंग में उन्होंने राम के तेज, मर्यादा और धर्मनिष्ठा को पहचान कर उन्हें आशीर्वाद दिया और अपनी परशु विद्या से भी सुशोभित किया।

चिरंजीवी अवतार: भगवान परशुराम को सप्त चिरंजीवियों में गिना जाता है। वे आज भी दिव्य तप में लीन हैं और भविष्य में कल्कि अवतार को शस्त्र विद्या प्रदान करेंगे।

परशुराम जी का पूजन मंत्र:

ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि।  

 तन्नो परशुरामः प्रचोदयात्॥

(भावार्थ: हम महर्षि जमदग्नि के पुत्र महावीर परशुराम का ध्यान करें। वे हमें ज्ञान और शक्ति प्रदान करें।)

पूजन विधि संक्षेप में: 

- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।  

- भगवान परशुराम जी का चित्र या प्रतिमा स्थापित कर पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें।  

- परशुराम स्तुति, चालीसा या नामजप करें।  

- ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।  

- क्षमा याचना करते हुए जीवन में धर्म, सत्य और पराक्रम के पालन का संकल्प लें।  

अक्षय तृतीया का विशेष महत्त्व: परशुराम जयंती अक्षय तृतीया पर आने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन किए गए पुण्यकर्म, दान, जप, तप और साधना का अक्षय फल मिलता है। भगवान परशुराम के पूजन से शत्रु भय, संकट, रोग और दरिद्रता का नाश होता है।

आइए, इस परशुराम जयंती पर हम सब उनके आदर्शों को अपने जीवन में धारण करें। धर्म की रक्षा, अधर्म का प्रतिकार, तप और तेज का अनुसरण करते हुए मानवता और सनातन संस्कृति की सेवा में समर्पित हों।  

"जय भगवान परशुराम!"

"धर्म की विजय हो, अधर्म का नाश हो!"



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