पहलगाम की वादियों में जब गोलियों की गूंज ने सन्नाटा तोड़ा, तब न केवल निर्दोष नागरिकों की जान गई, बल्कि देश की अंतरात्मा भी विचलित हो उठी। यह हमला एक सुनियोजित आतंकी साजिश थी, जिसने हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को सीधी चुनौती दी है। ऐसे समय में, भारत सरकार का यह स्पष्ट और सशक्त रुख 'राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि' देशवासियों को यह विश्वास देता है कि अब न तो कोई समझौता होगा और न ही कोई ढील। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की आपात बैठक और गृह व विदेश मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई विस्तृत जानकारी यह दर्शाती है कि यह हमला सिर्फ एक आतंकी वारदात नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता पर आघात है। इस आघात का जवाब भी उसी गंभीरता से दिया जा रहा है।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को बेनकाब करने की रणनीति अपनाकर एक मजबूत कूटनीतिक संदेश दिया है। अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ जैसे प्रभावशाली देशों के राजदूतों को बुलाकर आतंकवाद के सबूतों को साझा करना यह दर्शाता है कि भारत अब केवल पीड़ित राष्ट्र की भूमिका में नहीं रहेगा, बल्कि निर्णायक कार्रवाई करने वाला राष्ट्र बनेगा। पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना, उच्चायोग अधिकारियों को निष्कासित करना, अटारी चेक पोस्ट को बंद करने और सिंधु जल संधि की समीक्षा जैसे निर्णय यह दर्शाते हैं कि भारत अब ‘नीति और नीयत’ दोनों में बदलाव के रास्ते पर है। ये कदम केवल पाकिस्तान के प्रति नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और आत्मसम्मान को दर्शाने वाले निर्णायक उपाय हैं।
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब सीमा पार आतंकवाद को सिर्फ बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि ठोस रणनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक कदमों से रोका जाएगा। आतंक के समर्थकों को अब यह समझ लेना चाहिए कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा। संसद भवन के एनेक्सी में आयोजित सर्वदलीय बैठक ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय संकट की घड़ी में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कोई दीवार नहीं रहनी चाहिए। जब देश के निर्दोष नागरिक निशाना बनते हैं, तब राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति सर्वोपरि होनी चाहिए। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी समेत सभी नेताओं ने एक स्वर में सरकार को समर्थन देकर देशवासियों को यह भरोसा दिलाया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है।
गृह मंत्री और विदेश मंत्री की राष्ट्रपति से भेंट, एक संवैधानिक परंपरा का निर्वहन भर नहीं, बल्कि यह एक संकेत भी है कि भारत अब अपने हर निर्णय को न केवल रणनीतिक स्तर पर, बल्कि संवैधानिक मर्यादाओं के दायरे में लेते हुए आगे बढ़ रहा है। यह परिपक्व लोकतंत्र की निशानी है। पहलगाम हमला हमें यह याद दिलाता है कि आतंकवाद की कोई जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं होता यह केवल मानवता का शत्रु है। भारत ने बार-बार शांति की पहल की, लेकिन अब वह वक्त बीत गया जब हम केवल प्रतीक्षा करते थे। अब जवाब होगा दृढ़, निर्णायक और स्पष्ट। भारत की नई नीति एक संदेश है अगर कोई राष्ट्र हमारी शांति को कमजोरी समझता है, तो वह भारी भूल कर रहा है। अब भारत संवाद के लिए नहीं, सुरक्षा के लिए बोलेगा। और जब भारत बोलेगा, तो दुनिया सुनेगी।
- सम्पादक