विनोद कुमार झा
भारतवर्ष रहस्य, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा का देश रहा है। हिमालय की श्रृंखलाओं में स्थित अनेक स्थल ऐसे हैं, जो सामान्य मानव दृष्टि से परे हैं जहां केवल तप, योग और दिव्य चेतना ही प्रवेश पा सकती है। ऐसा ही एक स्थान है गंधमादन पर्वत। इसे केवल एक पर्वत कहना इसकी महत्ता को कम कर देना होगा, क्योंकि यह वह स्थल है, जिसे वेदों, पुराणों, महाकाव्यों और संत परंपराओं में अलौकिक और दिव्य भूमि के रूप में वर्णित किया गया है।
वाल्मीकि रामायण में गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई स्थानों पर आता है। हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लाने हिमालय जाते हैं, तो गंधमादन उनका प्रमुख पड़ाव बनता है। यह वह क्षेत्र था जहां द्रोणगिरि पर्वत स्थित था, जिससे हनुमान संजीवनी सहित पूरा पर्वत उठा लाए। यह भी कहा जाता है कि जब हनुमान उड़ान भरते हैं, तो गंधमादन पर्वत उनकी राह में आता है और स्वयं नमन करता है।
महाभारत के वन पर्व में भीम की गंधमादन यात्रा का वर्णन है। जब पांडव वनवास में थे, तब द्रौपदी ने भीम से सुगंधित पुष्प की इच्छा की। भीम गंधमादन पर्वत की ओर बढ़ते हैं और मार्ग में हनुमान जी से भेंट होती है। यह घटना अत्यंत रहस्यमयी और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है। भीम को हनुमान अपना रूप दिखाते हैं और भविष्य की घटनाओं से अवगत कराते हैं।
स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में गंधमादन को देवताओं और सिद्धों का निवास स्थान कहा गया है। इसे कैलाश के उत्तर में तथा मंदाकिनी नदी के समीप स्थित बताया गया है। यहाँ ऋषि-मुनि, यक्ष-गंधर्व, और अप्सराएं वास करती हैं। गंधमादन पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी भौगोलिक स्थिति आज तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। कई मानते हैं कि यह स्थल मानसरोवर और बद्रीनाथ के मध्य कहीं स्थित है, परंतु यह स्थान सामान्य दृष्टि से अदृश्य है। इसे केवल सिद्ध तपस्वी, योगी, और ब्रह्मज्ञानी ही देख सकते हैं।
गंधमादन शब्द का अर्थ है सुगंध की उत्पत्ति करने वाला*। यह पर्वत सुगंधित पुष्पों और औषधियों का भंडार है। कहा जाता है कि इसकी वायु में एक विशेष प्रकार की आध्यात्मिक गंध होती है, जो साधक को चेतना के उच्च स्तर तक पहुँचा देती है। भारत के कई योगियों और संतों ने यह दावा किया है कि गंधमादन क्षेत्र में अब भी ऋषि-मुनि साधना में लीन हैं। महावतार बाबाजी, त्रैलंग स्वामी, गौरक्षा नाथ, और कई अघोरी संतों ने इस क्षेत्र के अस्तित्व को अनुभव किया है।
हनुमान जी का गंधमादन से विशेष संबंध है। जब वह संजीवनी लाने आए, तब इसी पर्वत पर उन्होंने लंका युद्ध के लिए औषधियां खोजीं। कई संतों और साधकों का मानना है कि हनुमान जी आज भी ध्यान मुद्रा में इस क्षेत्र में स्थित हैं। यह स्थल उनका गुप्त आश्रम माना जाता है, जहाँ केवल सच्चे साधक ही पहुंच सकते हैं।
विभिन्न यात्रियों और तीर्थयात्रियों ने उत्तराखंड और तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहस्यमयी सुगंध, दिव्य प्रकाश, और साधकों की उपस्थिति का अनुभव किया है। कई बार मानसरोवर यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने दूर पहाड़ियों पर ध्यानस्थ मुनियों को देखा है, जो पल भर में अंतर्धान हो जाते हैं।
योगानंद परमहंस की “Autobiography of a Yogi” में उल्लेख आता है कि हिमालय के कुछ रहस्यमयी स्थानों पर महावतार बाबाजी और उनके शिष्य साधना करते हैं। अनेक आधुनिक योगी इस पर्वत को संपूर्ण ज्ञान और ऊर्जा का स्रोत मानते हैं। कुछ संतों का मानना है कि गंधमादन पर्वत काल रहित क्षेत्र है। वहाँ समय का प्रभाव नहीं होता। साधक यदि वहाँ प्रवेश कर पाए, तो वर्षों की साधना केवल कुछ पलों में पूर्ण हो जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि गंधमादन पर्वत पृथ्वी लोक और दिव्य लोकों के बीच एक संपर्क बिंदु है। इसे एक ऊर्जा द्वार (energy vortex) माना जाता है, जहाँ से देवताओं, सिद्धों, और गंधर्वों का आवागमन होता है।
गंधमादन केवल भौगोलिक या धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन की एक जीवंत प्रतीकात्मकता है। यह *योग, ध्यान, ब्रह्मज्ञान और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है। यह पर्वत बताता है कि दिव्यता तक पहुंचना केवल बाह्य यात्रा नहीं, बल्कि आंतरिक यात्रा भी है।
गंधमादन पर्वत आज भी भारत की चेतना में जीवंत है। यह स्थल उन साधकों के लिए खुलता है, जो सत्य के पथ पर हैं, जिनका हृदय निर्मल, संकल्प अडिग, और साधना निरंतर है। यह रहस्य और भक्ति का संगम है जहाँ जाकर आत्मा परमात्मा से मिलन का अनुभव करती है। अंत में , गंधमादन पर्वत कोई भौगोलिक खोज नहीं, बल्कि आत्मिक साधना का एक उच्चतम प्रतीक है। यह भारत के उन दुर्लभ रहस्यों में से एक है, जो आज भी भक्तों और साधकों को बुला रहा है आओ, तप करो, और स्वयं को जानो।