विनोद कुमार झा
इस लेख का उद्देश्य किसी भी स्त्री का अपमान नहीं है। रामचरितमानस के एक विशेष प्रसंग में, जहाँ रावण मंदोदरी से वाद-विवाद करता है, वहाँ उसके मुख से निकले ये विचार उसके अहंकार, भ्रमित मति और तत्कालीन मानसिक स्थिति का परिणाम हैं। तुलसीदास जी ने इस प्रसंग को केवल रावण के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, न कि धर्म के शाश्वत सत्य के रूप में। इस प्रसंग का दूसरा पक्ष यह भी दर्शाता है कि यही कथित 'अवगुण' स्त्रियों की गूढ़ शक्तियाँ भी हैं, जो समय आने पर समाज की दिशा और दशा बदल देती हैं।
जब सत्ता मदांध हो जाए और विजय का गर्व विवेक को ग्रस ले, तब सत्य भी परछाईं बनकर रह जाता है। लंका जल रही थी, युद्ध की आहटें दूर नहीं थीं, और रावण एक ऐसा वीर जो ब्रह्मा से लेकर शिव तक को तप से प्रसन्न कर चुका था एक क्षण में पराजित होने की कगार पर था। पराजय युद्ध से नहीं, स्वयं की हठधर्मिता से। उस क्षण उसकी सबसे प्रिय रानी मंदोदरी, बार-बार उससे एक ही बात कह रही थी सीता को श्रीराम को लौटा दो।
लंका जहाँ सोना ज़मीन में नहीं, महलों की दीवारों में था। जहाँ शक्ति रावण थी, और उसकी छाया मेघनाद। वही लंका आज अदृश्य भय की तपिश से जल रही थी। एक वनवासी राजकुमार जिसे रावण ने हँसी में टाल दिया था अब उसकी नींदें उड़ाने लगा था। और उस भय का स्रोत कोई और नहीं, स्वयं रावण की ही करनी थी सीता हरण।
उस युद्ध से पहले का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध चल रहा था रावण और मंदोदरी के मध्य। एक युद्ध जो तलवारों से नहीं, विचारों से लड़ा जा रहा था। मंदोदरी एक ऐसी रानी जो रावण से प्रेम करती थी, पर उसकी गलतियों से भी अधिक परिचित थी। वह जानती थी, कि यह मार्ग विनाश का है। वह बार-बार रावण से कहती रही जनकसुता को लौट दो।
मंदोदरी का यह आग्रह रावण को घायल कर गया। वह न तो अपनी मूर्खता स्वीकारना चाहता था, और न ही पत्नी की दूरदृष्टि को। उस आहत अहंकार ने रावण से कुछ ऐसे वचन कहलवाए, जो रामचरितमानस में इन पंक्तियों के रूप में अमर हो गए:
नारि सुभाव सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥ साहस, अनृत, चपलता माया। भय अविवेक, असौच अदाया॥
रावण कहता है कि स्त्रियों में जन्मजात रूप से आठ अवगुण होते हैं, जो पुरुषों के पतन का कारण बनते हैं। आइए एक-एक कर देखें कि वह कौन-से हैं, और उनका वास्तविक और गूढ़ अर्थ क्या है:
1. दुस्साहस (अत्यधिक साहस) : रावण कहता है स्त्रियों को साहसी होना चाहिए, परन्तु दुस्साहसी नहीं। तुम बार-बार मुझे श्रीराम से शांति का आग्रह कर दुस्साहस कर रही हो। यह युद्ध पुरुषों का कार्य है, तुम उसमें हस्तक्षेप क्यों कर रही हो?
गूढ़ अर्थ: स्त्री का साहस वह शक्ति है जो सृष्टि को जन्म देती है। सीता का साहस ही था जो उसने अशोक वाटिका में बैठकर, समस्त राक्षसियों को चुनौती दी। उसका मौन, उसका व्रत, उसका तप वह सारा साहस ही तो था। जब कोई माँ अपने बेटे को सीमा पर भेजती है, वह दुस्साहस नहीं बलिदान का साहस है। जब एक रानी अपने पति को सत्य का मार्ग दिखाती है, वह दुस्साहस नहीं धर्म का स्मरण है। जब अन्याय की सीमा लांघी जाती है, तब यही स्त्री दुस्साहस दिखाकर इतिहास बदल देती है।
2. अनृत (असत्य) : स्त्रियाँ कभी स्पष्ट नहीं होतीं। उनके मन की बात कोई जान नहीं सकता। वे कभी भी सत्य को छुपा सकती हैं। रावण कहता है: तुम्हारा यह स्नेह, यह आग्रह यह सब केवल छल है। स्त्रियाँ भीतर कुछ और होती हैं, बाहर कुछ और। उनका मन पढ़ना कठिन है।
गूढ़ अर्थ: स्त्री का यह गुण उसे चतुर, दूरदर्शी और परिस्थितिजन्य निर्णय लेने वाला बनाता है। यदि सीधा सत्य हमेशा कह दिया जाए, तो रिश्ते टूट जाएँ। स्त्री की यही परिपक्वता है कि वह कब क्या कहना है, कैसे कहना है यह जानती है। स्त्री की यह क्षमता, कि वह मन की बात न कहे, उसे एक कूटनीतिज्ञ बनाती है जो परिवार, समाज और राष्ट्र को संतुलित रख सकती है।
इस 'अनृत' में ही उसकी ‘मातृत्व’ की कूटनीति छिपी होती है। वह अपने बच्चों के लिए, पति के लिए, परिवार के लिए जब-तब भावनाओं के आवरण में सच्चाई को ढँककर रखती है ताकि समय आने पर सबको उसकी तैयारी मिल सके।
3. चपलता (चंचलता) :रावण कहता है, तुम्हारे विचार स्थिर नहीं हैं मंदोदरी। अभी तुम एक बात कह रही हो, कल कुछ और सोचोगी। स्त्रियाँ एक ही बात पर टिकती नहींं।
गूढ़ अर्थ: स्त्री चंचल है, क्योंकि वह प्रकृति की पुत्री है। प्रकृति कभी स्थिर नहीं रहती वसंत, वर्षा, शरद सभी ऋतुएँ उसी की चंचलता हैं। यही चपलता उसे नवीनता देती है, रचनात्मकता देती है। यही स्त्री है जो एक साथ पुत्री भी है, बहन भी है, पत्नी भी, माँ भी। स्त्री की चंचलता उसे बहु-आयामी बनाती है। वह संसार को विविध दृष्टि से देख सकती है। यही उसकी संपूर्णता है। स्त्री की यह चपलता ही उसकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता है, जो उसे हर परिस्थिति में स्वयं को ढालने योग्य बनाती है।
4. माया (प्रभावित करने की कला) : तुम जो मधुरता से मुझे समझा रही हो, वह तुम्हारी माया है। लेकिन जान लो, मैं तुम्हारी माया में नहीं फंसने वाला। रावण कहता है, तुम्हारी बातों में जो स्नेह है, वह असली नहीं। तुम माया कर रही हो मंदोदरी, मुझे वश में करने का प्रयास कर रही हो।
गूढ़ अर्थ: स्त्री की माया उसकी कोमलता है। वह प्रेम से शत्रु को भी झुका सकती है। यही माया तो सीता के अश्रुओं में थी जिसने हनुमान को पुलकित किया। यही माया तो तारा की वाणी में थी जिसने बाली को मृत्यु की शांति दी। माया केवल स्त्री की शक्ति नहीं, उसकी आत्मा की सुंदरता है। यही माया वह करुणा है जिससे स्त्री जटिल से जटिल पुरुष-हृदय को बदल सकती है। यही स्नेह, यही सम्मोहन, किसी भी क्रूरता को प्रेम में बदल सकता है।
5. भय (भीतर का डर) : रावण कहता है: तुम राम से डरती हो, मंदोदरी। तुम्हारे मन का भय ही तुम्हारी सलाह का कारण है। तुम्हारे मन में भय है कि राम तुम्हारे पुत्रों और मेरे प्राणों का नाश करेगा। इसीलिए तुम सीता को लौटाने की बात कर रही हो।
गूढ़ अर्थ: भय स्त्री को सावधानी देता है, विवेक देता है। यह भय ही है जो उसे अपने परिवार, समाज और बच्चों की रक्षा के लिए सतर्क रखता है। स्त्री का भय उसकी निर्बलता नहीं, उसकी संवेदनशीलता है। जो मनुष्य डरता है, वही जीवन को मूल्य देता है। भय नहीं होता तो ममता भी नहीं होती। भय स्त्री के भीतर का वह संवेदनशील भाग है जो उसे हर रिश्ते के प्रति सजग रखता है।
6. अविवेक (भावनात्मक निर्णय) :तुम हृदय से सोचती हो मंदोदरी, विवेक से नहीं। यही कारण है कि तुम बार-बार मुझे सलाह दे रही हो, जो व्यवहारिक नहीं है।
गूढ़ अर्थ: जब संसार पत्थर-सा कठोर हो जाए, तब स्त्री का यह अविवेक ही करुणा की ज्योति जलाता है। वह भावनाओं से निर्णय लेती है, क्योंकि भावनाएँ ही मानवता की नींव हैं। स्त्री का 'अविवेक' उसकी करुणा है। वह तर्क से नहीं, धर्म से सोचती है। हृदय से सोचती है, क्योंकि वही तो प्रेम का स्रोत है। मंदोदरी का आग्रह एक निर्णय नहीं था, वह धर्म की पुकार थी।
7. असौच (शारीरिक अपवित्रता)
स्त्रियाँ रजस्वला होती हैं। उनके शरीर में देवता का वास नहीं रह सकता, इसलिए वे पुरुषों जितनी पवित्र नहीं रह सकतीं।
गूढ़ अर्थ: प्रकृति ने स्त्री को सृजन का वरदान दिया है। यही 'असौच' कहलाने वाली प्रक्रिया सृष्टि का आधार है। इसमें अपवित्रता नहीं, एक महान यज्ञ का रहस्य छिपा है। क्या जो सृष्टि रचती है, वह अपवित्र हो सकती है? ऋतुकाल स्त्री के अंदर ब्रह्मांड की धारा है। वह पवित्रता नहीं, दिव्यता का प्रतीक है। यह सोच रावण जैसे अहंकारियों की सीमित दृष्टि है, जिन्होंने नारी को शरीर तक सीमित कर दिया।
8. अदाया (निर्दयता) : तुम इतनी निर्दयी हो कि पति की मृत्यु की आशंका होते हुए भी बार-बार मुझे आत्मसमर्पण के लिए कह रही हो। क्या तुम्हारे ह्रदय में कोई ममता नहीं बची?
गूढ़ अर्थ: यही ‘निर्दयता’ कभी-कभी आवश्यक होती है। जब अपने प्रिय को विनाश की ओर जाते देख स्त्री रोके, और न माने तो वह कठोर हो जाती है, ताकि भविष्य को बचा सके।
जब स्त्री सत्य के पक्ष में खड़ी होती है, तब वह अपनों से भी कठोर हो जाती है। मंदोदरी की ‘निर्दयता’ केवल उसका धर्म के प्रति निष्ठा थी। वह जानती थी कि अधर्म की रक्षा करना ही सबसे बड़ा अन्याय है।
रावण युद्ध में पराजित हुआ, श्रीराम के हाथों मारा गया। लेकिन वास्तव में वह पराजित उसी दिन हो गया था, जब उसने अपनी पत्नी की सत्यवाणी को ‘अवगुणों’ के रूप में खारिज कर दिया था। मंदोदरी नारी की वह छवि है जो विनम्र होती है, लेकिन मूर्ख नहीं। वह प्रेम करती है, पर सत्य को त्याग नहीं सकती। उसकी बातें भले रावण के कानों में कटु लगीं हों, पर वे आज भी एक स्त्री की दृष्टि, उसकी चेतना और उसकी नीति-बुद्धि की गवाही देती हैं।
रावण के वचनों से परे सत्य की खोज
रावण ने जो कहा, वह उसके अपने दृष्टिकोण, उसकी व्याकुलता और हठ का परिणाम था। उसने स्त्रियों के गुणों को दोष कहकर प्रस्तुत किया, परंतु वे ही गुण हैं जिन्होंने रामायण की कथा को आकार दिया सीता की धैर्य, मंदोदरी की सूझबूझ, तारा की नीति और शबरी की भक्ति। स्त्रियाँ दर्पण हैं जिसमें पुरुष स्वयं को देखता है। यदि उन्हें अवगुण दिखते हैं, तो संभव है, वे उसके अपने प्रतिबिंब हों।
(अगले भाग में पढ़ें मंदोदरी ने दिया रावण को उत्तर)