विनोद कुमार झा
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और लेखक मनोज कुमार का हाल ही में निधन हो गया। उनका जाना न सिर्फ सिनेमा जगत के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है। वे न केवल एक उम्दा कलाकार थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने अभिनय के ज़रिए देशभक्ति, सामाजिक सरोकार और भारतीय मूल्यों को सिनेमा के माध्यम से जीवंत किया।
मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी था, लेकिन वह 'भारत कुमार' के नाम से मशहूर हुए। यह उपाधि उन्हें उनके देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों के कारण मिली, जिनमें उन्होंने भारतीय समाज, उसकी चुनौतियों और मूल्यों को बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया। उनकी सादगी, दृढ़ विचारधारा और गहरी समझ उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ थीं।
मनोज कुमार का फिल्मी सफर 1960 के दशक में शुरू हुआ और बहुत ही कम समय में उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में खास जगह बना ली। उन्होंने "शहीद", "पूरब और पश्चिम", "रोटी कपड़ा और मकान", और "क्रांति" जैसी कई यादगार फिल्में दीं। विशेष रूप से "उपकार" फिल्म ने उन्हें एक महान देशभक्त अभिनेता के रूप में स्थापित किया। इस फिल्म में उनका किरदार 'भारत' एक किसान और सैनिक दोनों रूपों में भारतीय आत्मा का प्रतीक बन गया।
उनकी फिल्मों में नायक सिर्फ एक चरित्र नहीं होता था, बल्कि एक विचार होता था—देश के प्रति समर्पण, परिवार के प्रति जिम्मेदारी और समाज के प्रति जागरूकता।
मनोज कुमार की फिल्मों में सामाजिक समस्याओं को बेहद संवेदनशील ढंग से उठाया गया। "रोटी कपड़ा और मकान" में उन्होंने बेरोज़गारी, गरीबी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर करारा प्रहार किया। "पूरब और पश्चिम" में उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति के टकराव को दिखाया और भारतीयता की गरिमा को ऊँचा उठाया। उन्होंने अपने सिनेमा को एक सामाजिक आंदोलन की तरह इस्तेमाल किया, जिससे दर्शक न केवल मनोरंजन पाते थे बल्कि प्रेरित भी होते थे।
मनोज कुमार का निधन भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत है। वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे—जो सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के परिवर्तन का माध्यम मानता था। उनके जाने से जो खालीपन बना है, उसे भरना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
भारतीय सिनेमा हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
श्रद्धांजलि!