दुःख से दृढ़ता तक...

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने समूचे राष्ट्र को गहरे शोक और आक्रोश में डुबो दिया। इस नृशंस हमले में कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिनमें पुणे के संतोष जगदाले और कौस्तुभ गणबोटे भी शामिल थे। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने पुणे पहुंचकर इन शहीदों के परिजनों से मुलाकात की और न केवल शोक व्यक्त किया, बल्कि राष्ट्र की ओर से उन्हें समर्थन और सहानुभूति का संदेश भी दिया। 

यह समय केवल शोक मनाने का नहीं, बल्कि धैर्यपूर्वक, दृढ़संकल्प के साथ आगे बढ़ने का है। आतंकवाद मानवता के विरुद्ध सबसे बड़ा अपराध है, और इसके उन्मूलन के लिए केवल कठोर कार्रवाई ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और वैश्विक सहयोग भी आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अतीत में भी आतंक के विरुद्ध निर्णायक कदम उठाए हैं, और जनता को इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए कि दोषियों को उनके कृत्यों का उचित दंड अवश्य मिलेगा।

हमारे समाज की शक्ति केवल हमारे आक्रोश में नहीं, बल्कि हमारे संयम और दूरदृष्टि में निहित है। नड्डा जी द्वारा पीड़ित परिवारों से मिलकर व्यक्त की गई संवेदनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि सरकार केवल सशक्त कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवीय करुणा के साथ भी साथ खड़ी है। संकट की इस घड़ी में, हमें अपने बीच एकता को और मजबूत करना चाहिए, ताकि शहीदों का बलिदान व्यर्थ न जाए।

पुणे के दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर में नड्डा जी द्वारा की गई प्रार्थना भी यही संदेश देती है  संकट चाहे जितना भी विकराल हो, आस्था, धैर्य और संकल्प के सहारे हम उसे परास्त कर सकते हैं। आज समय है कि हम अपने भीतर की शक्ति को पहचाने, एकजुट रहें और उन मूल्यों की रक्षा करें जिन पर हमारा देश गर्व करता है  मानवता, स्वतंत्रता और न्याय।

आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों से भी लड़ी जाती है। हमें नफरत नहीं, बल्कि कानून और नैतिक बल के सहारे आगे बढ़ना है। हमें आतंक से नहीं डरना है, बल्कि उसे समाप्त करने के लिए संगठित और सजग रहना है।  

आज, जब पूरा देश संतोष जगदाले और कौस्तुभ गणबोटे जैसे वीर नागरिकों के बलिदान को नमन कर रहा है, तब हमारी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम आतंक के विरुद्ध अपनी एकता, धैर्य और दृढ़ निश्चय को अडिग बनाए रखें। भारत अपने शहीदों को कभी नहीं भूलेगा  और आतंक के विरुद्ध यह संघर्ष तभी समाप्त होगा जब हम एक ऐसा समाज बनाएंगे, जहाँ भय नहीं, बल्कि शांति और विकास का वर्चस्व होगा।


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